अंजुम कादरी ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड
पृथ्वी का नीला सोना अर्थात पानी या जल जीवन का मूलभूत आधार है पानी है तो प्राण है कि उक्ति सर्व विदित है हाइड्रोजन के दो तथा ऑक्सीजन के एक परमाणु से बना जल एक साधारण योगिक है इसे जिस पात्र में रखे यह वैसा ही आकार ग्रहण कर लेता है अनेक मायनों में इसके गुणों में ही विरोधाभास है जहां एक ओर जल के बिना हमारा जीवन असंभव है वहीं दूसरी ओर जल का अधिक होना भी हमारे ऊपर मृत्यु का कहर ढा देता है कहीं जल की कमी से त्राहि-त्राहि तो कहीं बाढ़ और अतिवृष्टि का प्रकोप है ना विचित्र बात लेकिन जनजीवन और जीविका के लिए जल अनिवार्य रूप से आवश्यक है मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ जनसंख्या और जल संसाधनों के पारस्परिक संबंधों में परिवर्तन होता रहा है विश्व के विभिन्न स्थानों में प्रारंभिक मानव सभ्यता प्रमुख नदियों के किनारे ही विकसित हुई ताकि जल की निरंतर आपूर्ति निश्चित रहे आदिम समुदाय में पानी केवल जीने के लिए जरूरी था लेकिन अब तो आर्थिक विकास के लिए भी पानी महत्वपूर्ण हो गया है पृथ्वी पर कुल पानी की मात्रा एक अरब 40 करोड़ घन किलोमीटर आंकी गई है धरती पर जितना पानी उपलब्ध है उसमें से लगभग 2.8 प्रतिशत ही मीठा पानी है और मनुष्य की खपत के योग्य है बाकी 97.2 प्रतिशत जल खारा है और समुद्रों में भरा है धरती के मीठे पानी के संसाधन भी अधिकतर बर्फीली चोटियों हिमनदो और भूजल के रूप में हैं पृथ्वी के मीठे पानी की कुल जलसंपदा का बहुत थोड़ा हिस्सा ही नदियों झीलों और अन्य जल स्रोतों में मिलता है नदी की धाराओं का पानी नवीनीकरण जल संसाधन है और यही विश्व की खपत का सबसे बड़ा हिस्सा है प्रतिवर्ष कुल 43,000 घन किलोमीटर होता है जोकि धरातल की कुदरती झीलों के पानी का लगभग आधा और सभी मानव निर्मित जलाशयों के आयतन का लगभग 10 गुना है जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता जल भंडारण की क्षमता पर निर्भर है विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में जल भंडारण की क्षमता काफी ज्यादा है उदाहरण के लिए भारत की जल भंडारण क्षमता 213 घन मीटर है जबकि इसके मुकाबले और ऑस्ट्रेलिया की 4,733 घन मीटर और अमेरिका की 1,964 मीटर है भारत में 1 वर्ष के कुल 8760 घंटों में 100 घंटे वर्षा होती है जो लगभग 40 करोड़ हेक्टर मीटर है इसमें से प्रतिवर्ष लगभग 15 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल का निस्पंदन होता है जिसमें से चार करोड़ हेक्टोमीटर भूमिगत जल में प्रतिवर्ष पहुंचता रहता है लगभग 7 करोड हेक्टर मीटर जल का वाष्पन होता है पृष्ठीय बहाव के द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 18 करोड हेक्टर जल पोखरो जलाशयों नदियों नालों से होता हुआ सागर में जाता रहता है कुल पृष्ठीय बहाव के जल का लगभग एक करोड़ 1000000 हेक्टेयर मीटर जलाशयों में रहता है इसका चार से 5% तालाबों में भरा रहता है इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि कुल पृष्ठीय बहाव का लगभग 10% से कम जल ही संरक्षित रहता है लगभग 11000000 हेक्टर मीटर जल मृदा जल के रूप में परिच्छेदिका में रहता है दूसरे शब्दों में कहें तो 40 करोड़ हेक्टर मीटर वार्षिक वर्षा का लगभग 45% पृष्ठीय बहाव 27.5% भूमि परिच्छेदिका में 17.5% वाष्पीकरण के द्वारा वायुमंडल में तथा मात्र 10% भूमिगत जल में जा मिलता है पृथ्वी के जल चक्र को दो भागों में विभाजित करके दो नामों से जाना जा सकता है पहला हरित जल ग्रीन वाटर वर्षा का जल भूमि में प्रवेश करता है तथा वनस्पतियों में रहता है तथा वाष्प उत्सर्जन से पुनः वायुमंडल में जा मिलता है दूसरा वर्षा जल का वह भाग जो भूमि से होता हुआ तालाबों नदियों नालों तथा सागरों में जा मिलता है अथवा भूमिगत जल में मिलता है इसे नीला जल ब्लू वाटर कहा जा सकता है दोनों प्रकार के जल का सही प्रबंधन करके जल असंतुलन से बचा जा सकता है पानी की मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में भारी मांग रहती है कृषि उद्योग और घरेलू मांग विश्व की जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ पानी की मांग भी बराबर बढ़ती रही है सन 1999 में विश्व की जनसंख्या 6 अरब के पार पहुंच गई और सन 2050 तक 10 अरब हो जाएगी मानव के कार्यकलापों में बढ़ती हुई विविधता के कारण भी पानी की मांग बढ़ गई है इन्हीं आंकड़ों को ध्यान में रखकर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 अगस्त को जनसंख्या विस्फोट जैसी बात कहकर हम सब को आगाह किया है इस चीज को ध्यान में रखकर आगे की योजनाएं की जा रही है इस समय मानवता के सामने वैश्विक जल संकट सबसे बड़ी समस्या है विश्व बैंक यू एन ए तथा आईएमएफ के अनुसार विश्व का 1 / 6 भाग जल रहित हो चुका है 31 देशों में घोर जल संकट है 2025 तक हालात भयावह होंगे 2050 तक दुनिया के 50 देशों में यह संकट और गहरा एगा टिकाऊ और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति का विकास दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है दुर्भाग्यवश विश्व के अनेक भागों में लोग बिना शुद्ध पेयजल के और बिना स्वच्छता के साथ जीवन बिताने को मजबूर हैं विश्व में जल विकास संबंधी संयुक्त राष्ट्र की तीसरी रिपोर्ट के अनुसार ऐसे लोगों की संख्या 66 करोड़ है यदि इन लोगों को फलाना फूलाना है तो अधिक सुरक्षित पानी की आपूर्ति उनके लिए सस्ते में करनी होगी संयुक्त राष्ट्र की जल विकास संबंधी वैश्विक रिपोर्ट हर 3 साल बाद दुनिया में मीठे पानी के संसाधनों के बारे में अधिकृत सर्वागीण मूल्यांकन प्रदान करती है मीठे पानी के वितरण में नदियों के पश्चात सबसे बड़ा योगदान भूजल का है यह आकलन किया गया है कि धरती के भूजल संसाधन लगभग 100 लाख घन मीटर हैं जो वर्षा से मिलने वाले वार्षिक नवीनीकरण है जल संसाधनों से 200 गुना अधिक हैं भूजल के निष्कर्षण से कृषि का विस्तार करना संभव हुआ है जिसने फिर ग्रामीण विकास और गरीबी घटनाओं को संभव बनाया लेकिन यह विस्तार हमेशा जारी नहीं रहेगा अब ऐसी स्थिति आ गई है कि आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त उपज के साथ भूजल के निष्कर्षण की आवश्यकताओं को संतुलित करना होगा लेकिन यह भी सच है कि भूजल का अत्यधिक दोहन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता रहा है विश्व में औद्योगिक क्षेत्र मीठे पानी की लगभग 22% खपत करता है भारत जैसे विकासशील देशों में भी औद्योगिक क्षेत्र में पानी की मांग में काफी बढ़ोत्तरी हो रही है अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पानी के लिए बढ़ती चिंता व्यक्त की जा रही है इस प्रकार की चिंता विश्व स्तर पर पहली बार स्टॉकहोम में 1972 में संपन्न हुए मानव विकास और पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र ने सन 2003 को मीठे पानी का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया भारत को सबसे जल वाले देशों में शुमार किया जाता है फिर भी यह पानी की गंभीर समस्या से घिरा हुआ है जनसंख्या का अधिक घनत्व वर्षा काल में परिवर्तन शीलता सतह पर के पानी और भूजल का तेजी से बढ़ते जाना और उसका प्रदूषक भारत के जल संकट के प्रमुख कारण है इसके अलावा जलवायु परिवर्तन जल चक्र को भी बदल रहा है सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि जल प्रबंधन को फिर से परिभाषित किया जाए इसके लिए संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है बेहतर जल प्रबंधन एवं जल संरक्षण के लिए जनता को जागरूक बनाना और उसे इस और शिक्षित करना तथा भागीदारी के लिए प्रेरित करना अत्यंत आवश्यक है इसीलिए मेरा यह आर्टिकल आम जनता तक पहुंचे ताकि वह पानी के महत्व को पहचाने अपने नल टंकी को खुला न छोड़ें दांत ब्रश करते समय नल को पहले से ना खोलें बर्तन धोने के समय टंकी खुली ना छोड़ें पानी को एक बर्तन में भर ले इसी तरह की बहुत सारी चीजों का ख्याल रखें जिससे कि आने वाली दिक्कत है खत्म हो सके ।
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