Editorial

बढ़ती आर्थिक सुस्ती

मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के आर्थिक विकास दर के आंकड़े निराश् करने वाले तो हैं, लेकिन उनसे हैरानी इसलिए नहीं, क्योंकि कुछ ऐसा ही होने का अंदेशा था। यह अंदेशा तभी उभर आया था जब पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर पांच प्रतिशत पर आ टिकी थी। वास्तव में तभी स्पष्ट हो गया था कि अगली तिमाही में भी आर्थिक विकास दर में गिरावट का सिलसिला कायम रहने वाला है। जुलाई-सिंतबर माह की 4.5 प्रतिशत जीडीपी दर बीते छह वर्षों में सबसे कम है। इतनी कम विकास दर इसलिए सरकार की चिंता बढ़ाने वाली है, क्योंकि अनुमान यह लगाया था कि विकास दर 4.7 प्रतिशत रह सकती है। अनुमान से भी अधिक गिरावट के बाद सरकार पर ऐसे कदम उठाने का और अधिक दबाव होगा, जिनसे विकास दर में गिरावट का सिलसिला थमे। इस दबाव के बावजूद इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि सरकार ने अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिए जो कदम उठाने शुरू किए, उनका असर आनन-फानन नहीं हो सकता। ध्यान रहे कि उसकी ओर से ये कदम उठाने की शुरूआत ही तब हुई, जब दूसरी तिमाही खत्म होने वाली थी। इसकी संभावना है कि सरकार के इन कदमों के साथ त्योहारी खरीद का सकारात्मक असर अगली तिमाही के आंकड़ों में दिखेगा, लेकिन इसके बावजूद अर्थव्यवस्था के फिर से पटरी पर आने में और वक्त लग सकता है। इसकी बड़ी वजह मैन्यूफैक्चरिंग के साथ कृषि क्षेत्र का खराब प्रदर्शन है। यह सामान्य बात नहीं पिछले साल के मुकाबले इस साल कृषि विकास दर लगभग आधी रह गई है। आर्थिक सुस्ती के कारण किसी से छिपे नहीं। इन कारणों में सबसे चिंताजनक यह तथ्य सामने आना है कि उपभोक्ता खर्च कम हो रहा है। यह कमी शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में हो रही है। इसका मतलब है कि लोग भविष्य को लेकर आशंकित हैं और बचत करना पसंद कर रहे हैं। इससे इनकार नहीं कि बीते दो-तीन महीनों में सरकार एक के बाद एक करीब दो दर्जन कदम उठा चुकी है और इनमें कुछ कदम ऐसे रहे जिन्हें क्रांतिकारी कहा गया, जैसे कॉर्पोरेट टैक्स दरों में व्यापक कटौती। इस कटौती से कॉर्पोरेट जगत को प्रोत्साहन तो मिला है, लेकिन इस तथ्य को ओझल नहीं कर सकते कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जो भी कदम उठाए गए हैं, वे आपूर्ति बढ़ाने वाले हैं। ऐसे में सरकार को कुछ ऐसे भी उपाय करने चाहिए, जिससे मांग बढ़े। यह तभी होगा, जब उपभोक्ता अपना खर्च बढ़ाएंगे। उचित होगा कि कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती के बाद व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती करने के साथ अन्य वे उपाय किए जाएं, जिससे लोग खपत बढ़ाने को प्रेरित हों।
विकास दर में अनुमान से अधिक गिरावट के बाद सरकार पर ऐसे कदम उठाने का और अधिक दबाव होगा, जिनसे गिरावट का सिलसिला थम सके।

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