Health

डॉक्टर कफ़ील मामले की जांच पूरी नहीं हुई तो कैसे फैली ‘क्लीन चिट’ की ख़बर?

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दो साल पहले ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत के मामले में क्या उत्तर प्रदेश सरकार ने बाल रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर कफ़ील ख़ान को क्लीन चिट दे दी है?

शुक्रवार को दिनभर मीडिया में ये ख़बर छाई रही डॉक्टर कफ़ील ख़ान ने बीबीसी से बातचीत में यह दावा किया कि उन्हें विभाग की तरफ से क्लीन चिट मिल चुकी हैं. साथ ही उन्होंने ‘वास्तविक दोषियों को सज़ा दिलाने’ की सरकार से मांग भी की मगर सम्बन्धित विभाग का कहना है कि अभी जांच पूरी नहीं हुई है और किसी तरह की ‘क्लीन चिट’ के बारे में कोई बयान नहीं आया है इस मामले की जांच के लिए राज्य सरकार ने तत्कालीन प्रमुख सचिव, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग को जांच अधिकारी बनाया था आपको ये भी रोचक लगेगा स्कूल में बच्चों को नमक-रोटी देने का मामला, पत्रकार पर मुक़दमा मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की आठ लड़कियां जाएंगी घर, बाक़ियों का क्या? डॉक्टर कफ़ील ने बताया कि अप्रैल महीने में जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी और गुरुवार को बीआरडी मेडिकल कॉलेज की ओर से उन्हें ये रिपोर्ट दी गई है हालांकि डॉक्टर कफ़ील जिस रिपोर्ट का हवाला दे रहे थे उसमें जांच अधिकारी का नाम हिमांशु कुमार बताया गया है और उन्हें स्टांप विभाग का प्रमुख सचिव बताया गया है रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉक्टर कफ़ील ने बीबीसी को बताया, “जांच अधिकारी यानी प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार को यूपी के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 18 अप्रैल को 15 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि कफ़ील लापरवाही के दोषी नहीं थे और उन्होंने 10-11 अगस्त 2017 की रात को स्थिति को नियंत्रित करने की काफ़ी कोशिश की. रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि डॉक्टर कफ़ील ने अपने वरिष्ठ सहयोगियों को ऑक्सीजन की कमी से अवगत कराया था और अपनी व्यक्तिगत क्षमता से कई ऑक्सीजन सिलेंडर भी दिए थे.” डॉक्टर कफ़ील का ये बयान प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छाया रहा डॉक्टर कफ़ील की ओर से उपलब्ध कराई गई आठ पन्ने की रिपोर्ट भी वॉट्सऐप के ज़रिए लोगों तक घूमती रही, जबकि वास्तविक रिपोर्ट ख़ुद उन्हीं के मुताबिक 15 पन्नों की है ये भी पढ़ें:गोरखपुर में बच्चों की मौत पर विदेशी मीडिया
‘पूरी नहीं हुई है जांच’ वहीं जब सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों से इस बारे में सवाल हुआ तो पता चला कि ‘क्लीन चिट’ के बारे में कोई आधिकारिक बयान न तो आया है और न ही अभी जांच पूरी हुई है बाद में शासन की ओर से एक बयान जारी हुआ.
इसमें जानकारी दी गई है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत के मामले में डॉक्टर कफ़ील के ख़िलाफ़ चल रही विभागीय जांच और प्राइवेट प्रैक्टिस के मामले की जांच में अंतिम फ़ैसला नहीं हुआ है.
अगस्त 2017 में बच्चों की ऑक्सीजन की कमी से मौत के बाद डॉक्टर कफ़ील पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने, 100 बेड एईएस वार्ड का नोडल प्रभारी होने सहित चार मामलों में जांच की जा रही है शासन स्तर से कराई गई इस जांच में उन्हें दो मामलों में दोषी पाया गया है जिस पर अंतिम कार्रवाई अभी बाक़ी है जबकि दो मामलों में उन्हें निर्दोष बताया गया है.
जिन दो मामलों में उन्हें शासन के स्पष्टीकरण में दोषी पाया गया है, वो हैं प्राइवेट प्रैक्टिस का मामला और प्राइवेट अस्पताल यानी नर्सिंग होम संचालित करने का मामला.
इस बात का ज़िक्र डॉक्टर कफ़ील ने भी किया है. हालांकि दोनों ही रिपोर्ट ये कहती हैं कि घटना के एक साल पहले यानी अगस्त 2016 के बाद वो प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर रहे थे.
डॉक्टर कफ़ील पर दो अन्य मुख्य आरोप लापरवाही और ऑक्सीजन की कमी की सूचना वरिष्ठ लोगों को न देने के सम्बन्ध में थे शासन की ओर से मिले स्पष्टीकरण में भी इन दोनों मामलों में उन्हें दोषमुक्त बताया गया है. डॉक्टर कफ़ील भी दोषमुक्त होने की बात जब कह रहे हैं तो वो ख़ासतौर से इन्हीं दो आरोपों का ज़िक्र कर रहे हैं शासन की ओर से आए स्पष्टीकरण में साफ़तौर पर कहा गया है कि मीडिया में डॉक्टर कफ़ील को विभागीय जांच में क्लीन चिट दिए जाने सम्बन्धी समाचार सही नहीं हैं और उनके विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है यह भी कहा गया है कि चार आरोपों में से दो में वो दोषी पाए गए हैं, इसके अलावा अनुशासनहीनता की कार्रवाई भी उन पर होगी क्योंकि उन्होंने मीडिया में भ्रामक ख़बरें फैलाई हैं यही नहीं, शासन की ओर से जारी किए स्पष्टीकरण के अनुसार निलंबन के दौरान डॉक्टर कफ़ील ने बहराइच ज़िला चिकित्सालय के बाल रोग विभाग में 22 सितंबर 2018 को ज़बरन घुसकर मरीजों का इलाज करने का प्रयास किया, जिससे वहां अफ़रा-तफ़री मच गई और मरीज़ बच्चों का जीवन संकट में पड़ गया वहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं आधिकारिक रूप से बीआरडी मेडिकल कॉलेज के भी अधिकारी कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मेडिकल कॉलेज की ओर से डॉक्टर कफ़ील को कोई कागज़ या रिपोर्ट या दस्तावेज़ नहीं दिए गए हैं इन अधिकारी के मुताबिक, “उन्हें ये दस्तावेज़ कैसे मिले, ये भी जांच का विषय है.”
सबसे बड़ा सवाल ये कि सिर्फ़ कफ़ील ख़ान के बयान के आधार पर उन्हें ‘दोषमुक्त’ बता देने की ख़बरें कैसे मीडिया में वायरल हो गईं? इस बारे में सरकारी पक्ष शायद ही कहीं दिखा हो वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं, “दरअसल, वॉट्सऐप वाली पत्रकारिता टीवी चैनलों से चलकर वेब पोर्टलों के रास्ते अख़बारों तक आ गई है. ख़बरों की अपने स्तर पर पड़ताल करने या फिर सम्बन्धित पक्षों से उसकी सच्चाई और उनका पक्ष जानने की ज़रूरत नहीं महसूस की जाती.” शरद प्रधान दावा करते हैं कि यही वजह है कि ज़्यादातर वेब पोर्टलों पर एक ही तरह की कहानी छपी रहती है हालांकि शासन की ओर से आए स्पष्टीकरण और कफ़ील ख़ान की ओर से दिखाए जा रहे जांच अधिकारी के दस्तावेज़ और उनके निष्कर्षों में कोई बहुत अंतर नहीं है लेकिन ये कहना भी पूरी तरह से ठीक नहीं है कि जांच कमेटी ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया. वो भी तब, जबकि सरकार के अनुसार जांच प्रक्रिया अभी पूरी भी नहीं हुई है गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 10 अगस्त 2017 को ऑक्सीजन की कमी के चलते सत्तर बच्चों की मौत हो गई थी शुरुआत में अख़बारों और सोशल मीडिया में डॉक्टर कफ़ील को हीरो बताया गया क्योंकि उन्होंने बाहर से सिलेंडर मांगकर कई बच्चों की जान बचाई लेकिन कुछ ही दिन बाद उन्हें लापरवाही बरतने और तमाम गड़बड़ियों के आरोप में मेडिकल कॉलेज से सस्पेंड कर दिया गया बाद में उन्हें गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया गया. डॉक्टर कफ़ील क़रीब आठ महीने तक जेल में रहे

About the author

Mazhar Iqbal #webworld

Indian Journalist Association
https://www.facebook.com/IndianJournalistAssociation/

Add Comment

Click here to post a comment

Follow us on facebook

Live Videos

Breaking News

Advertisements

Advertisements

Recent Posts

Advertisements

Advertisements

Our Visitor

0552423