Editorial

8 मार्च महिला दिवस पर कुछ चुभते हुए फूल

ख़ुद पे गुज़रे अज़ाब लिखती हूँ,
आज कर के हिसाब लिखती हूँ।

बहर- ए – दिल में है इक सन्नाटा,
और मैं इज़्तिराब लिखती हूँ।

ख़ुद को ज़र्रे सा मुख़्तसर कर के,
आप को आफ़ताब लिखती हूँ।

जब कोई फूल मुस्कुराता है,
उस को अपना शबाब लिखती हूँ।

नाज़ कर कर के आज कल ख़ुद को,
आपका इंतिख़ाब लिखती हूँ।

मेरी अच्छाई की सनद ये है,
ख़ुद को सबसे ख़राब लिखती हूँ।

उन को कोई लिखे कुछ भी,
मैं वफ़ा की किताब लिखती हूँ।

8 मार्च यानी महिला दिवस बनता जा रहा है समाज पर एक बोझ यूं तो अल्लाह पाक ने औरत को बहुत बुलंद दर्जा अता किया है लेकिन औरत से पैदा हुए बहुत सारे लोग औरत की उरूजगी को ना पसंद करते हैं
जबकि सभी जानते हैं हर एक जानदार चीज दुनिया पर अल्लाह ताला ने मादा के जरिया से भेजी है
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए कई बजाएं इस कारण है महिला स्त्री नारी
शब्द कुछ भी हो मां बहन बेटी पत्नी
रिश्ता कोई सा भी हो वह हर जगह सम्मान की हकदार है चाहे वह शिक्षिका वकील डॉक्टर पत्रकार सैनिक सरकारी कर्मी इंजीनियर आईएएस पीसीएस जैसे किसी पेशे में हो या फिर ग्रहणी ही क्यों ना हो सम्मान का अधिकार उन्हें भी उतना ही है जितना कि पुरुषों का है आधी आबादी के तौर पर महिलाएं हमारे समाज जीवन का एक मजबूत आधार है महिलाओं के बिना इस दुनिया की कल्पना करना ही असंभव है कई बार महिलाओं के साथ जिंदगी में भेदभाव होता है घर परिवार में भी कई दफा उन्हें समान हक और सम्मान नहीं मिल पाता है फिर भी वह मजबूती से संघर्ष करती हैं और इस दुनिया को खूबसूरत बनाने में महिलाओं का सबसे बड़ा योगदान है संस्कृत में श्लोक कहा जाता है जिसको मैं हिंदी में पेश कर रही हूं जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं लेकिन आज के जो हालात दिखाई देते हैं उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है उसे भोग की वस्तु समझकर आदमी अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहा है और विवाह के सिस्टम में वर्जिनिटी चाहता है यह बेहद चिंताजनक बात है लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किया जाए इस पर विचार करना बहुत जरूरी है
औरत अपने एक जीवन में कई सारी जिंदगी जीती है पहले किसी की बेटी फिर किसी की पत्नी फिर किसी की बहू फिर किसी की मां जब वह लड़की होती है तब उस पर डबल जिम्मेदारी यानी घर के कामकाज के साथ पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी निभानी होती है इस नजरिए से देखा जाए तो नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तो चलती ही है बल्कि उनसे भी अधिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती है नारी इस तरह से भी सम्मानीय है
वैसे भी हम गर्व के साथ कह सकते हैं आज हर एक क्षेत्र में नारियां लड़कियां बाजी मार रही हैं एक समय था जब नारी को कमजोर समझा जाता था लेकिन बहुत सारी महिलाओं ने बहुत सारा स्ट्रगल किया और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए
नारी का सारा जीवन पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है पहले पिता की छाया में उसका बचपन बीता है फिर पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है और साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है
अत्याचारों को सहने की आदि होती है नारियां
बचपन में पापा की रोक टोक बड़े होकर भाई की रोक टोक फिर शोहर की रोक टोक साथ में बेटे कि रोक टोक
सोचे इन सब के बावजूद इन सब का मुस्तकबिल होती है नारियां इसीलिए कहते हैं 8 मार्च को मजबूरी ना समझे इसको अपनी जिम्मेदारी बनाएं और अपने विचारों को चेंज करें
स्वयं से वादा करें
1. इतने मजबूत बने कि कोई भी आपके मस्तिष्क की शांति भंग ना कर सके
2. हर एक इंसान से मिले स्वास्थ्य खुशी और खुशहाली की बातें करें
3. अपने सभी दोस्तों को महसूस कराएं कि उनमें कुछ विशेष है
4. हमेशा किसी भी चीज के उजले पहलू को देखें और आपका सकारात्मक रुख सामने आए
5. दूसरों की सफलता के प्रति भी उतने ही उत्साहित रहे जितनी स्वयं की
6. स्वयं के उत्थान के लिए ज्यादा समय दें जिससे कि दूसरों की आलोचना के लिए समय ही ना बचे
नींद और निंदा पर जो विजय पा लेते हैं उन्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता

*अंजुम क़ादरी*

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