COVID-19 Editorial

मां के कदमों के निशान है कि दिए रोशन है

गौर से देख यहीं पर कहीं जन्नत होगी

मातृ दिवस पर मातृ शक्ति को शत शत नमन

तिनका तिनका जोड़ा तुमने, अपना घर बनाया तुमने
अपने तन के सुन्दर पौधे पर हम बच्चों को फूल सा सजाया तुमने
हमारे सब दुःख उठाये और हमारी खुशियों में सुख ढूँढा तुमने हमारे लिए लोरियां गाईं और हमारे सपनों में खुद के सपने सजाये तुमने.

हम बच्चे अपनी अपनी राह चलते गये, और तुम?
तुम दूर खडीं चुपचाप अपना मीठा आर्शीवाद देतीं रहीं.
पल बीते क्षण बीते….
समय पग पग चलता रहा…अपना हिसाब लिखता रहा…और आज?

आज धीरे धीरे तुम जिन्दगी के उस मुकाम पर आ पहुंची
जहाँ तुम थकी खड़ी हो —शरीर से भी और मन से भी.

मेरा मन मानने को तैयार नहीं, मेरा अंतर्मन सुनने को तैयार नहीं…

क्या तुम्हारे जिस्म के मिटने से सब कुछ खत्म हो जायेगा?
क्या चली जाओगी तुम अपने प्यार की झोली समेट कर?
क्या रह जायेंगे हम तुम्हारी भोली सूरत देखने को तरसते हुए?
क्या रह जायेंगे हम तुम्हारी गोदी में छुपा अपना बचपन ढूँढते हुए?

बोलो माँ?
क्या कह जाओगी इन चंदा सूरज धरती और तारों से?
इन राह गुज़ारों से…..नदिया के बहते धारों से?
क्या कह जाओगी माँ? किसे सौंप जाओगी हमें माँ?

या फिर….? या फिर….?
बिखरा जाओगी अपना प्यार अपनी दुआएं और अपनी ममता
इस कायनात के चिरंतन समुन्दर की लहर लहर पर?

क्या इस जनम में चुन पायेंगे हम वो दुआएं?

मां- कितना रस है इस मां शब्द में लेते ही सारी थकन दूर हो जाती है और मुंह शहद की मानिंद हलक तक मीठा हो जाता है लेकिन अफसोस हम इस मां शब्द की मिठास को महसूस नहीं कर पा रहे हैं यूं तो भारतमुनि के नाट्यशास्त्र से पता चलता है की रसों की टोटल संख्या 9 एवं 11 है लेकिन मेरे हिसाब से रसों की संख्या 12 होनी चाहिए थी और सबसे मीठा रस जो है जिसको मैं 12वीं संख्या पर रखते हुए कह रही हूं तो वह है वालदैन जिनके पास है उनको कदर नहीं जिन्होंने खो दिए वह अपनी दुनिया वीरान बताते हैं मेरे वालिद साहब के जाने के बाद मेरी वाहिद दुनिया मेरी मां साहिबा है मैं अपनी मां के लिए जितना भी लिखूं वो कम ही होगा मातृ दिवस के इस शुभ अवसर पर मैं दुनिया भर की मातृ शक्ति को नमन करती हूं जरूरी नहीं किसी के गुजर जाने के बाद उसका उदाहरण पेश किया जाए इसलिए मैं आज दो बहुत ही बेहतरीन उदाहरण लिख रही हूं पहला हमारी ज़िला मजिस्ट्रेट रंजना राजगुरु मैम इनकी कामयाबी के पीछे इनके वालदैन का बहुत बड़ा सहयोग रहा पिता शिक्षक और मां ग्रहणी मां कृष्णावती जी ने घर के कामकाज देखते हुए बच्चों की परवरिश तरबियत बहुत ही बेहतरीन अंदाज में की जिसको हम उधम सिंह नगर मजिस्ट्रेट सीट पर फाइज देख रहे हैं वही दूसरा उदाहरण है चमोली निवासी उन दो जुड़वा बहनों का जो 2014 में पीसीएस परीक्षा टॉप कर इतिहास रच दिया जो इस वक्त उधम सिंह नगर और नरेंद्रनगर में SDM के पद पर काबिज हैं मां-बाप की गहरी तरबियत से आज युक्ता मिश्र जी और मुक्ता मिश्र जी की गिनती पहाड़ की काबिल महिला अफसरों में होती है और यह दोनों जुड़वा बहने पहाड़ की ही नहीं सारी बेटियों के लिए रोल मॉडल है दोनों बहनों ने एक साथ परीक्षा पास कर अपने मां-बाप की परवरिश पर चार चांद लगा दिए ऐसी रोल मॉडल बेटियों की मां ग्रहणी है जिनको मैं नोवल लेडी समझती हूं मां अपने बच्चे को हर हाल में अजीज मानती है अपनी औलाद के हर ऐब को ढकती है हर बुरे काम से और बुरे रास्ते पर जाने से हमेशा मना करती है दुनिया के तमाम विदुषी विद्वान मां के किरदार को लिखना चाहे तो मुकम्मल नहीं लिख सकते क्योंकि मां बेश कीमती कोहिनूर का वो हीरा है जो हर इंसान की तकदीर में शामिल होती है जो कदर जानते हैं वह कामयाब जिंदगी गुजारते हैं जो कदर नहीं जानते वह यूं ही भटकते रहते हैं।

इंडियन गवर्नमेंट वॉलिंटियर कोविड-19- अंजुम क़ादरी

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