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कांग्रेस नेता ने बघेल पर उठाए गंभीर सवाल, सत्ता सिमट गई थी मंत्रियों को अधिकार नहीं दिए

‘बघेल के अहंकार को जवाब’
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, “जनता ने भूपेश बघेल के अहंकार को जवाब दिया है. पांच सालों तक कांग्रेस के भ्रष्टाचार को जनता ने जवाब दिया है. यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में लड़ा गया था, उनकी गारंटी पर जनता ने भरोसा जताया और भूपेश बघेल की सरकार और उनके अधिकांश मंत्रियों को नकार दिया.” ताज़ा चुनाव में कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज़ नेता हार गए हैं.
ताज़ा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने अपनी उपस्थिति ज़रूर दर्ज़ कराई लेकिन दूसरी पार्टियों का बड़ा असर होने की संभावना धरी रह गई.इसके उलट अधिकांश सीटों पर भाजपा ने बड़े अंतर से चुनाव जीतने में सफलता पाई है और भारी अंतर से हार के कई रिकॉर्ड भी बने हैं.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार के बाद अब पार्टी में अंतर्कलह सामने आने लगी है। राज्य में मंत्री रहे जय सिंह अग्रवाल ने शुक्रवार को निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधते हुए कई सवाल उठाए हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस की हार के बाद अब पार्टी में अंतर्कलह सामने आने लगी है। राज्य में मंत्री रहे जय सिंह अग्रवाल ने शुक्रवार को निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधते हुए दावा किया कि सत्ता केंद्रीकृत हो गई थी और मंत्रियों को पांच साल के शासनकाल के दौरान अधिकार नहीं दिए गए। जय सिंह अग्रवाल, भूपेश बघेल कैबिनेट के उन नौ मंत्रियों में शामिल हैं, जिन्हें हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। अग्रवाल ने शुक्रवार को कोरबा में मीडिया कर्मियों से बात करते हुए यह भी दावा किया कि कांग्रेस सरकार 2018 में मिले जनादेश का सम्मान नहीं कर सकी।
छत्तीसगढ़ चुनाव में सत्ताधारी दल कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 90 में से 54 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की है। वहीं राज्य में 2018 में 68 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार महज 35 सीटों पर ही सिमट गई। राज्य में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) एक सीट जीतने में कामयाब रही।

2018 में मिले जनादेश का सम्मान नहीं कर सकी सरकार- अग्रवाल ने कहा कि 2018 में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष (भूपेश) बघेल साहब, तत्कालीन विपक्ष के नेता (टीएस) सिंहदेव जी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार चुनाव केंद्रीकृत हो गया था। उन्होंने कहा कि पांच साल में सरकार की ओर से कई काम किए गए। कुछ काम शेष भी थे। हमारी सरकार उस जनादेश का सम्मान नहीं कर सकी जो हमें (2018 में) मिला था। मंत्रियों को जो अधिकार मिलने चाहिए थे, वह नहीं मिले। पूरे पांच साल तक सत्ता केंद्रीकृत रही और कुछ चुनिंदा लोगों के हाथ में रही और खींचतान का माहौल कायम रहा। किसानों पर पार्टी के फोकस पर सवाल उठाते हुए अग्रवाल ने कहा कि कोरबा समेत शहरी सीटों पर पार्टी पिछड़ गई, क्योंकि सरकार ने किसानों पर ज्यादा ध्यान दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि हमारे मुखिया (मुख्यमंत्री) को विश्वास था कि हम ग्रामीण इलाकों में सभी सीटें जीतेंगे और शहरी सीटों की ज्यादा जरूरत नहीं होगी।

डीएम और एसपी पर लगाए गंभीर आरोप- कोरबा विधानसभा सीट से विधायक रहे जय सिंह अग्रवाल ने आरोप लगाया कि प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने विकास कार्यों को बाधित किया और कोरबा जिले में अपराध को पनपने दिया। उन्होंने कोरबा में पदस्थ जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों का नाम लेते हुए उन पर इस तरह के कृत्य में शामिल होने का आरोप लगाया।

सीएम के सर्वे पर भी उठाए सवाल- अग्रवाल ने कहा कि उन सर्वे (जिनके आधार पर उम्मीदवारों का चयन किया गया था) पर कभी चर्चा नहीं की गई। मैंने कोरबा पर संशोधित रिपोर्ट मुख्यमंत्री बघेल को सौंपी थी और कहा था कि आपने जो सर्वे कराया है, वह गलत है। अगर उन्होंने वास्तविक सर्वे किया होता, तो मुझे लगता है कि हमारी पार्टी और सरकार को (चुनावों के संभावित नतीजे) पता चल गया होता। राज्य में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस नेताओं के अलग-अलग बयान आ रहे हैं। पार्टी के पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह ने भी पार्टी के कुछ नेताओं पर अपने कार्यों से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है।

भूपेश बघेल और कांग्रेस क्यों नहीं समझ पाए हवा का रुख, बीजेपी ने कैसे मारी बाज़ी
यह 2003 का किस्सा है. छत्तीसगढ़ में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी से मैंने पूछा था कि ताज़ा चुनाव में कांग्रेस को 90 में से कितनी सीटें मिलेंगी?
48 विधायकों के साथ सत्ता की कमान संभालने वाले अजीत जोगी ने भाजपा विधायकों को तोड़ कर, कांग्रेस विधायकों की संख्या को 62 तक पहुंचा दिया था.
अजीत जोगी ने जवाब दिया,’अभी से ज़्यादा !’
लेकिन विधानसभा चुनाव में 62 सीटों वाली कांग्रेस, 37 सीटों पर सिमट कर रह गई और भाजपा ने 50 सीटें हासिल कर के राज्य में अपनी सरकार बना ली थी.
2018 के चुनाव में 68 सीटें हासिल कर के सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी ने, ताज़ा चुनाव में 75 पार का नारा दिया था. लेकिन हालत 2003 जैसी हो गई.

दिग्गज हारे चुनाव- हालत ये है कि पिछले चुनाव में पूरे राज्य में सर्वाधिक 59284 वोटों के अंतर से कवर्धा से जीत हासिल करने वाले मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मोहम्मद अक़बर भी 39,592 वोटें के अंतर से चुनाव हार गए हैं. कवर्धा में पिछले दो सालों से सांप्रदायिक तनाव का वातावरण बना हुआ था.
उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव अंबिकापुर से चुनाव हार गए हैं.
इसी तरह कवर्धा के पड़ोस की साजा सीट से, राज्य के दूसरे कद्दावर मंत्री और सरकार के दूसरे प्रवक्ता रवींद्र चौबे भी चुनाव हार गए हैं. इसी साल अप्रेल में, साजा के बीरनपुर गांव में हुए सांप्रदायिक दंगे में एक युवक भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई थी. दो दिन बाद इसी गांव में दो मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी. राज्य सरकार ने हिंदू युवक के परिजनों को 10 लाख रुपये और नौकरी देने की घोषणा की थी लेकिन मुसलमानों के लिए सरकार ने कोई मुआवज़ा घोषित नहीं किया और परिजनों को हाइकोर्ट जाना पड़ा. भारतीय जनता पार्टी ने इस साजा सीट पर भुवनेश्वर साहू के मज़दूर पिता ईश्वर साहू को अपना उम्मीदवार बनाया था. हिंदुओं के साथ खड़ी दिखने की कोशिश करने वाली कांग्रेस सरकार, अपनी इस पारंपरिक सीट साजा को भी नहीं बचा पाई और रवींद्र चौबे हार गए.

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