Chhattisgarh

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी द्वारा सिलगेर में पुलिस द्वारा निर्दोष नरसंहार की तीब्र निंदा की है, तथा दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग के साथ ही पार्टी समिति गठित कर राज्यपाल को देगी जानकारी

रायपुर (विशेष प्रतिनिधि द्वारा) / 19 मई 2021, सूत्रों के मुताबिक एक दिन पहले जो छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा और बीजापुर से सटा हुआ गांव सिलगेर जहाँ के जो बिना लाग लपेट के जीने वाले भोले भाले ग्रामीण आदिवासी जनता जिनके उपर केंद्र व राज्य के सतारुढ सरकार के पुलिस प्रशासन द्वारा जिस जेहादी तौर पर गोलियां ग्रामीणों के ऊपर गोली चलाने का मामला सार्वजनिक हुआ है। गौरतलब गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव डॉ एल एस उदय ने निर्दोष आदिवासी के उपर हुई निर्मम हत्या जैसे घटना की कड़ी निंदा की है। तथा उन्होंने एक एक प्रेस नोट में कहा है कि- हमारे पूर्वजों ने अग्रेजों के जमाने में भी ऐसी निर्मम घटना की उम्मीद कभी नहीं किया होगा। जो आज बस्तर अंचल में बिना लाग लपेट के जीवन जीने वाले भोले भाले आदिवासी जो दशकों से नरसंहार जैसे दंश को झेल रहे हैं। और सर्वाधिक यही समाज के लोग इस पीड़ा को भोग रहे हैं। विडंबना है कि बिना कुछ किये की सजा, आज इस वैश्विक आपदा की दौर में बस्तर के आदिवासी समाज काट रहा है। जो आज जिनके संवैधानिक मूल्यों की रक्षा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। आज यहां पर आदिवासियों के जंगलात के अधिकार के मामले में राजनीतिक हित पहले और राष्ट्रहित पीछे छुट गया है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ने कहा है कि आज सच सवाल तो यह है कि पूरी कवायद के साथ सरकार इन इलाकों में कार्पोरेट घराने को बसाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। तथा जगह जगह प्रपंच रच कर इन आदिवासियों को उनके भूमि से उन्हें हटाने के लिए भयभीत कर रही है। जो गोली चलाने जैसे घटना भी किसी हिस्से से कम नहीं है। और यही भय ही आज लोगों के जेहन में बार बार कौंध रहा है। बहरहाल बीजापुर जिले के सिलेगर में हुए घटना को लेकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव डॉ उदय का कहना है, कि कोरोना काल में आदिवासियों पर 18 मार्च से हो रहे लगातार फर्जी हत्या , फर्जी मुठभेड़, फर्जी समर्पण पुलिस द्वारा घटना की जानकारी है। जहां आदिवासियों को न्यायिक जांच रिपोर्ट नही दिया जा रहा है। न्यायिक जांच के नाम पर खाना पूर्ति किया जा रहा है, सोमवार को बीजापुर सुकमा सीमावर्ती गॉव की घटनाओं से आदिवासी जनता आकोशित हैं । फर्जी मुठभेड़ होने के बाद जब शिकायत की जाती है, तो पुलिस की टीम द्वारा उन्हें सही ठहरा दिया जाता है। ऐसी घटनाओं में पुलिस विभाग के आला अफसर ही न्यायदाता जैसे काम करने लग जाते हैं। जिनके मीडिया भी सच की पैरवी का गला घोंट देता है। यह कोई नया मामला नहीं है ऐसे मामले बस्तर में हजार हो सकते हैं, इसके पूर्व भी कई बड़े-बड़े हत्या हुए हैं, उनकी न्यायिक जांच आयोग बने हुए हैं। कई साल बीत जाने के बाद भी उन आयोगों की रिपोर्ट अभी तक नहीं आए हैं। 12 आयोग की रिपोर्ट आए हैं, लेकिन उसमें हत्यारे गुनाहगार को सजा देने के बजाय ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। बीजापुर सिलगेर में हुई इस घटना की गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कड़ी निंदा करती है। तथा तत्काल न्यायिक जांच करवायी जावे। उन्होंने कहा है कि इस घटना को लेकर पूरे राज्य व देश के आदिवासी समाज मे भारी आक्रोश है। उन्होनें कहा कि क्षेत्रीय आदिवासी जन प्रतिनिधियों को शीघ्र शासन प्रशासन से घटना को लेकर दबाव बनाना चाहिये। न कि फिफियाना चाहिये। लोकतंत्र में जो अपने समाज का आवाज न
उठा सके । यह याद रखना चाहिए, कि जिन जनप्रतिनिधियों को बस्तर में शांति एवं सामुदायिक विकास के लिए क्षेत्र की जनता ने वोट देकर जनप्रतिनिधि बनाया है। सच कहें तो वे जनप्रतिनिधि एक दिन बीत जाने के बाद भी जिनके द्वारा ऐसी घटना को लेकर कोई बयान या वक्तव्य नहीं आता। लिहाजा बहुत सारी आशंकाओं को जन्म देता है। अहम सवाल तो यह है कि अधि सूचित क्षेत्रों में फोर्स कैंप खोलकर संबंधित गांव की ग्रामीण आदिवासियों की मौलिक स्वतंत्रता को हनन कर फोर्स द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जाता है, जिसके कारण ग्रामीण आदिवासी की मूल संस्कृति प्रभावित होता है, जिससे त्रस्त होकर आदिवासी फोर्स का कैंप स्थापित करने का विरोध करते हैं। इस बात की जानकारी दी गई है, इस देश में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता पूर्वक उसके जन्मभूमि ग्राम में आने-जाने घूमने एवं आजीविका हेतु वनोपज एवं किसानी कार्य करने की स्वतंत्रता संविधान में प्रदत है। लेकिन बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों में जहां कैंप स्थापित है। वहां पर उनकी मौलिक स्वतंत्रता को ही छीन लिया जाता है। बाजार जाने आने से फोर्स की जांच से जनजाति लोग त्रस्त हो जाते हैं। पहली चीज उनकी भाषा और जनजातियों की भाषा कोई मेल स्थापित नहीं हो पाता है। इस स्थिति में फोर्स द्वारा द्वेष भावना से भोले भाले आदिवासियो को प्रताड़ित किया जाता है। जिसके कारण आदिवासी समुदाय कैम्प का विरोध करते हैं। व्यक्ति की मौलिक स्वतंत्रता पर जब हनन लगातार होती है,तो उसका विरोध होना लाजिमी है। और नैसर्गिक रूप से जायज है। इसलिए पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार को इस बात का आभास होना चाहिए, कि किसी भी व्यक्ति की मौलिक स्वतंत्रता पर हनन क्यों किया जा रहा है। इसका जवाब बस्तर के आईजी को देना चाहिए, गलत बयान देकर फर्जी मुठभेड़ को नक्सली बताया जा रहा है। जो घटना की वीडियो इस हत्याकांड की आज सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं। क्या यह झूठ है। उसमें साफ तौर पर पुलिस निर्दोष निहत्थे आदिवासी समाज के भीड़ पर गोलियां बरसा रही है। जिसके कारण 9 निर्दोष आदिवासी मारे गए। एवं 2 दर्जन से अधिक घायल बताए जा रहे हैं।और आधा दर्जन ग्रामीण अभी भी लापता की खबर है। और बस्तर के आईजी द्वारा मीडिया में अलग-अलग तरह की बयाने प्रकाशित हुई हैं। अलग-अलग तरह की बयान आ रही है। यह सब साबित कर रहे हैं, कि वहां पर निर्दोष आदिवासियों को खुले भीड़ में मारा गया है। पुलिस प्रशासन गोली चलाने वाले के ऊपर हत्या का मुकदमा दर्ज करें। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए टीम गठित कर घटना की रिपोर्ट राज्यपाल महोदया को सौंपने का निर्णय लिया है।और सिलगेर में जो घटना घटी है ,उससे साफ हो गया है,कि भाजपा और कांग्रेस के बीच में आदिवासियों पर अत्याचार करने की एक बड़ी राजनैतिक सांठगांठ है। जिनका नाकाब आज देखने को मिल रहा है। इस घटना को एक दिन बीतने जा रहा है। ना पूर्व सरकार भाजपा और न वर्तमान छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार ने भी निंदा नहीं की है । यह बड़ी दुख की बात है। तात्कालिन भाजपा शासन में भी निर्दोष आदिवासियों पर गोलियां चला था।आज उससे तो उम्मीद नहीं है, पर आज यहां कांग्रेस की सरकार है जिसको कि आज बहुत से बुद्धिजीवी और भी वामपंथी एवं भाजपा के दूसरे विकल्प के तौर पर सुनती है। और समाजवादी ताकत साम्यवादी ताकत विकल्प के तौर पर कई राज्यों में संस्था चलाती है। लेकिन आज कांग्रेसी किस प्रकार, किस तरह से आज पुरातन काल में भी सारे राज्य की लड़ाई लड़ रहे हैं । ऐसे समय में आज भूपेश बघेल की सरकार में भी आदिवासी समाज के लोगों को गोली मारवा रहे हैं, व कारपोरेट घराने को जमीन देने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण करवा रही है। भूपेश सरकार ग्राम सभा का अधिकार होते हुए भी उसको नजरअंदाज कर रही हैं। सच मायने में मनमाने तरीके से बस्तर के सारे आदिवासी इलाकों में भूपेश सरकार ने आदिवासियो का संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हुए, कारपोरेट घरानों को आदिवासियो की भूमि बेच रही है। सुकमा जिले के बॉर्डर पर 11 तारीख को अचानक जो है, बिना आदिवासियों के ग्रामसभा पंचायत के पूछे बिना कैंप खोल दिया। और उस कैंप के विरोध में हजारों आदिवासी 11 तारीख से ही विरोध में जुटे हुए थे, क्या इसकी खबर सरकार की गुप्त एजेंसी को नहीं था। जब कि सोशल मीडिया और समाचार पत्रों पर जानकारी सबके आंखो के सामने तैर रहा था। उसके बाद भी आईजी पी सुंदर राज आज कह रहे हैं कि माओवादियों ने हमला किया है, लोगों का कहना है कि माओवादी कभी भी ग्रामीणों के बीच में रह कर कभी हमला नहीं करते हैं। वहां आदिवासी थे अगर इसी प्रकार से ग्रामीणों के बीच में रहकर हमला करते, तो वह कब के उखड़ जाते। आपको आपकी बातें झूठ है। किस प्रकार के खूनी खेल को बस्तर की जनता सदैव याद रखेगी। राज्य सरकार व पुलिस प्रशासन बस्तर संभाग के अंदरूनी गांव में क्या चीज की जरूरत है? जिसके के लिए स्थानीय ग्रामीणों से चर्चा सरकार क्यों नहीं करती है। उनको क्या चाहिए? इस पर कभी बात नहीं करती है । सरकार जबरन थोपने वाला काम कर रही हैं। नक्सली व पुलिस आदिवासी समाज के लिए दोनों उतने ही जिम्मेदार हैं। जो आदिवासियों की हत्या इन दोनों सरकार और नक्सलियों के द्वारा ही हो रहा है। नक्सलियों को अगर पुलिस से लड़ाई लड़ाई लड़ना है,तो आमने सामने आकर लड़ाई लड़े। ग्रामीण लोगों का कहना है कि पुलिस को नक्सलियों से बीच लड़ाई लड़ना है तो वह आमने-सामने लड़ाई लड़े। बीच में आदिवासी लोगों को क्यों घसीटा जा रहा है। जब पाकिस्तान में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक कर के आतंकवादियों को मार सकते हैं, जो बड़े-बड़े नक्सलियों को सर्जिकल स्ट्राइक करके मार दो, 50- 60 हजार से ज्यादा फोर्स है, इतना फोर्स ढाई सौ,हजार नक्सलियों को काबू नहीं कर पा रहे हैं। कैसा रणनीति कैसा नक्सली उन्मूलन चलाया जा रहा है? नक्सली उन्मूलन की आड़ में आदिवासियों का उन्मूलन किया जा रहा है। ऐसा ही समझ आ रहा है। इस घटना को लेकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक जांच टीम गठित कर, वहां की बयान दर्ज कर, इसकी सीधे रिपोर्ट अनुसूचित क्षेत्र की संरक्षक व प्रदेश का राज्यपाल महोदया को भेजने का निर्णय पार्टी द्वारा लिया गया है। एक तरफ प्रदेश की सत्ताधारी दल,कांग्रेस अपनी चुनाव घोषणा पत्र में बस्तर संभाग में शांति स्थापित करने की बात करके सत्ता में आयी थी। अब शांति स्थापित करना तो दूर, आदिवासियों का नर संहार करवा रही है। इसका मुंहतोड़ जवाब आने वाले चुनाव में बस्तर संभाग की जनता देगी। चाहे कोई भी पार्टी हो, जिम्मेदारी से नहीं बच सकते, संविधान सर्वोपरि है। संविधान में पांचवी अनुसूची पेशा कानून ग्रामसभा वन अधिकार मौलिक प्रावधान है। इन प्रावधानों का खुलम खुला उल्लंघन करके संविधान के विरुद्ध जाकर कार्य किया जा रहा है। जो आदिवासी अनुसूचित जनजाति वर्ग को मंजूर नहीं । सुप्रीम कोर्ट कई बार इस बाबत निर्देश दे चुकी है, कि संविधान सर्वोपरि है, ना संसद, ना विधायिका कार्यपालिका ना -ही, न्यायपालिका। सबसे सर्वोच्च इस देश का संविधान है। संविधान के अनुसार सत्ताधारी दल के सरकार और प्रशासनिक अधिकारी इस क्षेत्र में प्रशासन चलाना सुनिश्चित करें। और संविधान की कसम खाकर पद को धारण करके भारत सरकार की ट्रेजरी से वेतन ले रहे हैं, तो भारत के संविधान का पालन भी सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य होता है। अब संविधान के विरुद्ध जाकर निर्दोष आदिवासियों का हत्या करना बंद किया जाए।

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