कांग्रेस पार्टी

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से अपनी नेतृत्व क्षमता साबित…

राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए अपनी उस छवि से उबारने की कोशिश कर रहे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी ने उनका मजाक उड़ाते हुए बना दी थी. उनकी कोशिश एक जननेता की इमेज बनाने की दिख रही है. एक ऐसा नेता जिसके पीछे भीड़ एकत्रित हो सकती है.

लोगों के बीच उनकी इस यात्रा को लेकर क्या असर दिख रहा है, इसकी झलक बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक में दिखी है. कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3570 किलोमीटर लंबी यात्रा में से राहुल गांधी 1000 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं. इस यात्रा में कर्नाटक ऐसा पहला राज्य है जहां बीजेपी शासन में है.

कर्नाटक में राहुल गांधी की यात्रा को उन इलाकों में भी जनसमर्थन मिला है, जहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इस वजह से राज्य के बीजेपी नेताओं को राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर सक्रिय होना पड़ा.

बीजेपी ने मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में आनन फानन में जनसंकल्प यात्रा की घोषणा की. इससे पहले भारत जोड़ो यात्रा के कर्नाटक पहुंचने पर बोम्मई ने मीडिया से कहा, “महात्मा गांधी के बारे में बात कीजिए, फर्जी गांधी के बारे में नहीं.”
राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि बीजेपी की राज्य सरकार एससी/एसटी समुदाय के लोगों के लिए आरक्षण बढ़ाने संबंधी जस्टिस नागमोहन दास की अनुशंसाओं को दबा रही है.

इसके 24 घंटे के भीतर बोम्मई सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई, इस बैठक में नेता प्रतिपक्ष सिद्धारमैया और जनता दल सेक्यूलर के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी शामिल हुए. इस बैठक में आरक्षण बढ़ाने की स्थिति में उत्पन्न क़ानूनी मसलों पर चर्चा हुई.

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने से राज्य में कुल आरक्षण की सीमा सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी. इस बैठक में सिद्धारमैया ने ज़ोर देते हुए कहा कि राज्य की कैबिनेट को अगले दिन इस पर प्रस्ताव पास करके नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजना चाहिए. बोम्मई सरकार ने ठीक यही किया.

राजनीतिक विश्लेषक और जागरण लेकसाइड यूनिवर्सिटी भोपाल के उप कुलपति डॉ. संदीप शास्त्री ने बताया, “अब तक बीजेपी एजेंडा सेट करती रही थी और कांग्रेस एजेंडे के मुताबिक प्रतिक्रिया जताती थी लेकिन अब यह उलट दिख रहा है. राहुल गांधी एजेंडा सेट कर रहे हैं और उस पर बीजेपी प्रतिक्रिया जता रही है. यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है. एक तरह से यह अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की कोशिश हो सकती है. अगर कुछ नहीं भी हुआ तो कम से कम कार्यकर्ता तो उत्साहित होंगे.”
लोगों का कितना समर्थन मिल रहा है

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ के प्रोफेसर नरेंद्र पानी, राहुल गांधी की यात्रा को मिल रहे समर्थन को लेकर बहुत अचरज में नहीं हैं. वे कहते हैं, “बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व को कई मुद्दों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. आठ साल पहले जिस तरह मुद्दों को लेकर जो उम्मीद थी, वह अब कहीं नहीं है.”

“अगर आप अतीत को देखेंगे तो आपको महसूस होगा कि सत्ता में वापसी के बाद गिरावट का दौर शुरू होता है. दूसरे कार्यकाल तक लोगों की उम्मीदें भी बढ़ जाती है तो मोहभंग होने लगता है. ऐसा हर किसी के साथ हुआ है. इंदिरा गांधी जब 1980 में सत्ता में लौटीं तो महज ढाई साल के अंदर उन्हें कर्नाटक में हार का सामना करना पड़ा था, जबकि इससे पहले कांग्रेस इस राज्य में कभी नहीं हारी थी.”

नरेंद्र पानी यह भी कहते हैं, “आज विपक्ष नहीं है तो चुनौती ज़मीनी स्तर पर आम लोगों से ही आएगी. राष्ट्रीय स्तर पर चुनौतियों के सामने आने में राहुल गांधी की यात्रा अहम पड़ाव साबित हो रही है. जो भी बीजेपी का विरोध कर रहे हैं या फिर हिंदुत्व की राजनीति का विरोध करते हैं, उन सबके लिए इस यात्रा ने उम्मीद जगाई है. उन्होंने मुद्दों की बात शुरू करके, बीजेपी से असंतुष्ट लोगों को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.”

पानी के दूसरे अहम बिंदु की ओर भी इशारा करते हुए कहते हैं, “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ देशों ने हमारे लिए मुश्किलें बढ़ानी शुरू कर दी है. दो साल से अमेरिका ने भारत में अपना राजदूत तैनात नहीं किया है. जबकि इसी दौरान अमेरिका पाकिस्तान को एफ-16 विमान दे रहा है. भारतीय लोगों के लिए अमेरिकी वीज़ा के लिए इंतज़ार 400 से ज़्यादा दिनों का हो चुका है, जबकि चीन के नागरिकों के लिए यह महज तीन दिन में उपलब्ध है. ऐसे में भारतीय छात्र करियर संबंधी मौक़े गंवा रहे हैं. छात्रों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा.”

बारिश में भीग कर दिया गया राहुल का भाषण कर्नाटक में कांग्रेस को कितना फायदा पहुंचाएगा
राहुल गांधी के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को चुनौती देने की बात पर डॉ. शास्त्री मानते हैं, “राहुल गांधी अभी उस तरह से चुनौती नहीं दे रहे हैं जिस तरह से बीजेपी के नेताओं को दी जानी चाहिए. वे उनके एजेंडा का जवाब भी नहीं दे रहे हैं, बल्कि वे एक वैकल्पिक एजेंडा तैयार कर रहे हैं. वे मुद्दों के आधार पर सत्तारूढ़ दल को चुनौती दे रहे हैं. वे नेता को चुनौती नहीं दे रहे हैं कि क्योंकि अगर लीडरशिप के मुद्दे पर वे सवाल करेंगे तो लड़ाई हार जाएंगे.”

डॉ. शास्त्री ने कहा, “बीजेपी ने उन्हें पप्पू कह कर प्रचारित किया और एक तरफ़ ये हैं तो दूसरी ओर हमारे पास मोदी हैं. लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं. राहुल गांधी किसी पद पर नहीं है. इसलिए आप जो भी चाहें उन्हें कह सकते हैं, उसका कोई असर नहीं होगा.”
पद यात्रा से कितना फ़ायदा होगा
मैसूर यूनिवर्सिटी के कला विभाग के डीन प्रोफेसर मुजफ़्फ़र असादी ने बताया, “महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू जिस तरह से खुद को आम लोगों से जोड़ा था, उसी तरीके को राहुल गांधी अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. महात्मा गांधी खुद तो सत्ता से दूर रहे थे लेकिन पार्टी में वे सबसे ताक़तवर बने रहे. मेरा ख्याल है कि अगर राहुल गांधी की पदयात्रा से कांग्रेस को बहुत फायदा नहीं भी हुआ तो भी यह समाज में मनमुटाव को कम करके भारत की मदद करने वाला होगा.”

असादी कहते हैं, “राहुल गांधी भारतीय राजनीति में नया मुहावरा गढ़ रहे हैं. वे महज भाषणबाजी नहीं कर रहे हैं, बल्कि अनुभवों की बात कर रहे हैं. वे आम आदमी की भाषा शैली को चलन में ला रहे हैं. यह भी सच्चाई है कि अगर जनता उनको देखने और सुनने पहुंच रही है तो देश में एक नए नेता के उभरने की जगह मौजूद है, ऐसे नेता की जो हर किसी की बात सुनने को तैयार हो.”

हालांकि असादी एक कमी की ओर भी इशारा करते हैं, “उन्हें सड़क किनारे ताल्लुका स्तर पर लोगों से मिलने के बदले गांवों में जाना चाहिए था.”

कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा क्या कम हो गया है?
बहरहाल, राहुल गांधी की यात्रा एक तरह से लोगों से जुड़ने का कार्यक्रम है, जो वे कई साल बाद कर रहे हैं. पार्टी के सदस्य अनौपचारिक चर्चा में बताते रहे हैं कि उनके नेता सुरक्षाकर्मियों के साथ-साथ वरिष्ठ नेताओं के घेरे के चलते आम पार्टी कार्यकर्ता से नहीं मिल पाते थे. राहुल गांधी 2017 से 2019 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे लेकिन वे उस दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं की नब्ज उस तरह से नहीं पकड़ पाए थे, जिस तरह से इन दिनों पकड़ रहे हैं.

राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से 2019 में इस्तीफ़ा दिया था. जबकि उनकी पार्टी को 543 सदस्यीय लोकसभा में महज 52 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि बीजेपी को 303 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, “बड़ी चुनौती लीडरशिप को लेकर ही है. यह बीजेपी के मनगढंत अभियान से बने छवि की लड़ाई भर नहीं है. क्या वे खुद को सक्षम नेता के तौर पर साबित कर पाएंगे? क्या वे खुद को नए सिरे से तैयार कर पाएंगे? उम्मीद है कि इन सबका जवाब इस यात्रा में मिल जाएगा.”
क्या राहुल लोगों की सुनते हैं?
राहुल गांधी अपनी यात्रा के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता, जन स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने वाले प्रोफेशनल्स, वस्त्र उद्योग के श्रमिकों, कुटीर उद्योग चलाने वालों और खानाबदोश जनजाति के लोगों से मुलाकात कर चुके हैं. क्या वे इन लोगों की बातों को सुनते हैं? सामाजिक कार्यकर्ता तारा कृष्णास्वामी बताती हैं, “राहुल गांधी छोटे समूहों में जिन लोगों से मिलते हैं, उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं. उसके बाद एक मुद्दे को पकड़ते हैं और उस पर बोलते हैं. फिर लोगों से उसका समाधान पूछते हैं.”

“उदाहरण के लिए वे महिलाओं और जन स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने वाले प्रोफेशनल्स से मिले. मैंने उनसे कहा कि आधी आबादी को साथ लिए बिना भारत जोड़ो संभव नहीं है. जब उन्हें इसके असर के बारे में बताया गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए सहमति जताई. हमलोगों ने कहा कि जब केवल पुरुषों की सुनी जाएगी तो वे सैनेटरी नैपकिन पर 15 प्रतिशत जीएसटी लगाएंगे और सॉफ्ट ड्रिंक पर कोई जीएसटी नहीं लगेगी. कोविड संकट के दौरान महिलाओं की स्वास्थ्य से जुड़ी सभी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची में नहीं रखा गया था.”

तुमाक्कुरु पदयात्रा के दौरान मांड्या में जन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से वे चर्चा तो नहीं कर पाए लेकिन इन लोगों को उनकी यात्रा में शामिल होने का मौक़ा मिला.

जनस्वास्थ्य कार्यकर्ता गुरूमूर्ति ने बीबीसी हिंदी को बताया, “हमने उनसे कहा कि राजस्थान में स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक लाया गया है. स्वास्थ्य का अधिकार, स्वास्थ्य की देखभाल के अधिकार से अलग होता है. स्वास्थ्य की देखभाल के जरूरत लोगों को कोविड संकट में महसूस हुई.”

“हमलोगों ने सुझाव दिया कि प्रवासी मज़दूर सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए और उन्हें इस के दायरे में लाना चाहिए. उन्होंने इस पर होने वाले ख़र्च के बारे में पूछा. उन्हें बताया कि भारत जीडीपी का 0.7 प्रतिशत राशि ही स्वास्थ पर ख़र्च करता है, स्वास्थ्य की देखभाल को शामिल करने पर यह जीडीपी का तीन प्रतिशत होगा. करीब 2.6 से लेकर तीन लाख करोड़ रुपये ख़र्च होंगे, जो माफ किए गए कारपोरेट टैक्स से भी कम है. उन्होंने ध्यान से सुना.”
क्या आप राहुल के प्रशंसक रहे चुके हैं?

गुरुमूर्ति ने बताया, “मैं उनका प्रशंसक नहीं हूं. लेकिन वे काफी गंभीर शख्स लगे. वे एक अच्छे इंसान भी हैं. वे स्मार्ट नेता भले नहीं हों लेकिन उनके ख़िलाफ़ जो अभियान चलाया गया, वे वैसे बिलकुल नहीं हैं. ये बात स्पष्ट हो गई है.”

राहुल गांधी बेल्लारी में कपड़ा उद्योगों के श्रमिकों से भी मिले. यहां बड़े पैमाने पर जींस वैगरह तैयार किए जाते हैं. अपनी कंपनी चलाने वाले श्रीनिवास रेड्डी बताते हैं, “मैं दक्षिण भारतीय बाज़ार में कपड़े सप्लाई करता हूं. मैंने उन्हें बताया कि हमारे साथ जो श्रमिक काम करते थे वे कोविड संकट के दौरान दिहाड़ी मजदूरी करने लगे थे. कुशल श्रमिक भी यहां से चले गए थे. हमारी श्रमिक प्रधान इंडस्ट्री है, उन्हें इस पहलू के बारे में पता नहीं था.”

अगले दिन कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के चलते आराम का दिन था और रेड्डी तब अचरज में पड़ गए जब उन्हें पता चला कि राहुल गांधी कपड़ा उद्योग के श्रमिकों से मिलने पहुंच गए थे. रेड्डी बताते हैं, “वे चार-पांच मशीनों के साथ काम करने वाली महिलाओं से मिलने के लिए पहुंचे थे, ताकि उनकी समस्याओं को समझ सकें. यह बताता है कि वे गंभीरता से हमलोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं.”

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