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फूलोदेवी नेताम ने राज्यसभा में संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश संशोधन विधेयक, 2022 पर चर्चा में भाग लिया

देश के आदिवासी, दलित और पिछडे समुदाय के लोग आरक्षण का लाभ लेने और उसे बचाने की लडाई लड रहे हैं। 35 प्रतिशत आदिवासी भूमिहीन, 74 प्रतिशत बेहद गरीब, 86 प्रतिशत आदिवासियों की आमदनी 5 हजार से भी कम है। निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है। पदोन्नति में आरक्षण नहीं है। न्यायपालिका में आरक्षण नहीं है। आदिवासियों के लिए बनी योजनाओं पर आवंटित बजट को खर्च नहीं किया रहा। अत्याचार की घटनाऐं बढ रही है। आबादी में 8.6 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले आदिवासी समुदाय को आबादी के हिसाब से बजट में हिस्सेदारी दी जाए।

छत्तीसगढ सरकार द्वारा भारिया, भूमिया, धनवार, नगेशिया, सौंरा, धांगड, बिंडिया, गदवा, कोंद, कोडाकू, पंडो, सवर और गोंड आदि जनजातियों को अनुच्छेद 342 में अधिसूचित करने के प्रस्ताव केन्द्र के पास लम्बित। केन्द्र सरकार शीघ्र संविधान संशोधन विधेयक सदन में लेकर आए।

त्रिपुरा की डार्लोंग को जनजाति सूची में जोडे जाने पर बधाई।

दिनांक 06 अप्रैल, 2022, नई दिल्ली। राज्यसभा सांसद श्रीमती फूलोदेवी नेताम ने सदन में संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 पर चर्चा में भाग लिया।
श्रीमती नेताम ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजाति की सूची है और अनुच्छेद 342 (2) में प्रावधान है कि संसद द्वारा कानून बनाकर लिस्ट संशोधित की जा सकती है। इस बिल के माध्यम से संविधान संशोधन करके त्रिपुरा की अनुसूचित जनजाति की सूची में कुकी जनजाति की उपजातियों में डार्लोंग समुदाय को शामिल किया जा रहा है। इससे डार्लोंग जनजाति को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
श्रीमती नेताम ने कहा कि हम आदिवासी, दलित और पिछडे समुदाय के लोग आरक्षण की लडाई लड रहे हैं क्योंकि इससे हमारा सामाजिक और आर्थिक पिछडापन दूर होगा। लेकिन हमें तो दो तरफ से लडना पडता है। पहले तो संविधान से मिले अधिकारों का लाभ लेने के लिए और दूसरा उन अधिकारों की सुरक्षा के लिए। कई व्यक्ति, संगठन कभी भी आरक्षण समाप्त करने की बात शुरू कर देते है।
श्रीमती नेताम ने कहा कि आदिवासियों के सामने आज बहुत समस्याएं हैं। 35 प्रतिशत लोग भूमिहीन है और मजदूरी कर रहे हैं। 74 प्रतिशत लोग बेहद गरीब हैं। 86 प्रतिशत आदिवासियों की आमदनी 5 हजार से भी कम है और आजकल तो वह भी नहीं मिल रही। हमारे युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। सरकारी कम्पनियां बेची जा रही है। निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है। पदोन्नति में आरक्षण नहीं है। न्यायपालिका में आरक्षण नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 312 में ’अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन’ का प्रावधान दिया गया है। उसका गठन भी नहीं हो रहा। 2020 में अदिवासियों पर 9.3 प्रतिशत अत्याचार बढा है। अत्याचार के 96.5 प्रतिशत केस तो न्यायालयों में ही लंबित है।
श्रीमती नेताम ने यह भी कहा कि आदिवासियों के लिए बनी योजनाओं पर आवंटित बजट को पूरा खर्च नहीं किया जाता तो लाभ कैसे मिलेगा। वित्तीय वर्ष 2022-23 के आदिवासियों के विकास के लिए कुल 89 हजार 265 करोड रूपए का बजट दिया गया है लेकिन जनजातीय कार्य मंत्रालय को उसमें से केवल 8 हजार 451 करोड रूपए, यानि 9.46 प्रतिशत ही दिया गया है। आदिवासियों के विकास के लिए जो पैसा मिला उसका 10 प्रतिशत भी उन पर खर्च नहीं हुआ 90 प्रतिशत पैसा ऐसी योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है जो सब लोगों के लिए बनी हैं।
श्रीमती नेताम ने बिल के वित्तीय ज्ञापन पर कहा कि सरकार ने लिखा है कि संभावित अतिरिक्त व्यय का ऐस्टिमेट लगाना संभव नहीं है। इसलिए यदि कोई व्यय होगा तो उसे अनुमोदित बजटीय परिव्यय के अन्दर समायोजित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि हमारे घर कोई परिजन आता है तो हम एक कटोरी चावल और बना देते है कि उसे भी भूख लगी होगी उसे भी खाना खिलाना है। यहां जब डार्लोंग जनजाति को जोडा जा रहा है तो त्रिपुरा को अतिरिक्त धनराशि पहले ही मुहैया करानी चाहिए।
श्रीमती नेताम ने डार्लोंग जनजाति के लिए त्रिपुरा को अतिरिक्त बजट नहीं देने पर कहा कि मैं हमेंशा कहती हूं कि देश की आबादी में 8.6 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले आदिवासी समुदाय को आबादी के हिसाब से बजट में हिस्सेदारी दी जाए।
श्रीमती नेताम ने छत्तीसगढ की जनजातियों की समस्याओं पर भी अपनी बात रखी और कहा कि आज त्रिपुरा की डार्लोंग जनजाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में जोडा जा रहा है। इसके अलावा छत्तीसगढ सहित कई राज्यों ने भी प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजे हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ में भारिया, भूमिया, धनवार, नगेशिया और सवर जनजातियों को अनुच्छेद 342 में अधिसूचित करने के लिए मोदी केबीनेट ने 13 फरवरी, 2019 को छत्तीसगढ सरकार के अनुरोध को अप्रूव कर दिया था। उसके बाद छत्तीसगढ सरकार ने सौंरा, भारिया, भूमिया, धनवार, नगेशिया, धांगड, बिंडिया, गदवा, कोंद, कोडाकू, पंडो, भारिया और गोंड आदि समुदायों को भी जोडने के लिए जनजाति कार्य मंत्रालय से दिनांक 15 अक्टूबर 2020, 8 फरवरी 2021 और 6 दिसम्बर 2021 को पुनः पत्राचार किए हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति की सूची में महार जाति को जोडने के लिए भी प्रस्ताव भेजे गए हैं। लेकिन सभी प्रस्ताव केन्द्र के पास लम्बित हैं।
श्रीमती नेताम ने कहा कि डार्लोंग को जनजाति सूची में जोडने के लिए मोदी कैबीनेट ने 2016 में अप्रूवल दिया था लेकिन पास नहीं किया। एक साल बाद मार्च, 2023 में त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव है तो सरकार को वहां के आदिवासियों की याद आ गई और इस बिल को सदन में चर्चा के लिए लाया गया है। हमारे छत्तीसगढ में तो दिसम्बर 2023 में चुनाव है। चुनाव को देखते हुए संविधान संशोधन प्रस्ताव लाया जाएगा तो आदिवासियों को न्याय मिलने में बहुत देर हो जाएगी।
श्रीमती नेताम ने बिल का समर्थन करते हुए सरकार से मांग की है कि केन्द्र सरकार छत्तीसगढ सहित अन्य राज्यों से भेजे गए प्रस्तावों पर भी शीघ्र विचार करे और सदन में संविधान संशोधन विधेयक लेकर आए जिससे मुख्यधारा से छूट चुके आदिवासी, दलित, पिछडे समुदायों को आरक्षण का लाभ दिया जा सके।

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