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DSP बनीं अनिता शर्मा

मैं समाज को बदलने का दावा नहीं करती, लेकिन ये सच है कि मैं समाज में चल रही बहुत सी बुराइयों को बदलना चाहती हूं। इस मंजिल तक पहुंचने से पहले मैं सिर्फ शिक्षाकर्मी की परीक्षा पास कर टीचर बनना चाहती थी। यह कहना है DSP अनिता प्रभा शर्मा का।
अनिता को DSP रैंक मिल गई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसारवे बताती हैं कि, मेरे पास इतने भी पैसे नहीं होते थे कि मैं बाजार से अपने लिए कुछ खरीद सकूं। इसीलिए दिन भर एक कमरे में बैठकर अलग-अलग किताबें पढ़ती थी। अब आप इसे पढ़ने का शौक कह लीजिए आदत या मजबूरी।
हालांकि मुझे उस वक्त से आज भी कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि उस वक्त ने मुझे हर बार बेहतर स्थिति के लिए तैयार किया है। मेहनत और लगन की वजह से मुझे पहले सूबेदार फिर एसआई और अब DSP रैंक मिली है।

मैंने समाज बदलने के लिए नहीं, बल्कि लोगों की मदद के लिए सिविल सर्विस को चुना है। मैंने कई बार ये देखा है कि लोग अपने साथ हो रहे अन्याय, अत्याचार को लेकर पुलिस के पास आने और एफआईआर लिखवाने से डरते हैं। मैं लोगों के मन से वो डर खत्म करना चाहती हूं। लोगों को बताना चाहती हूं कि पुलिस उनकी मदद के लिए है। पुलिस विभाग के प्रति लोगों की सोच में बदलाव लाना चाहती हूं।
मेरे माता-पिता दोनों टीचर रहे हैं लेकिन, परिवार में शुरू से ही बेटियों और बेटों को लेकर अलग-अलग मानसिकता थी। चूंकि मैं पढ़ाई में काफी अच्छी रही थी इसलिए घर में कम महत्व मिलने से थोड़ी दुखी रहती थी।कम उम्र में ही बहन की शादी हो गई, जिसकी वजह से उनसे भी ज्यादा अटैचमेंट रहा नहीं।
परंपरा के अनुसार 17 की उम्र में मेरी भी शादी कर दी गई थी। धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि उम्र के अंतर के कारण हमारे बीच सामंजस्य इतना अच्छा नहीं है। किंतु परिवार और पेरेंट्स की प्रतिष्ठा ने कुछ वक्त तक मुझे उस जीवन में बनाए रखा।
हालांकि दोनों की खुशी और अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए मैंने तलाक ले लिया। मैं अपने तलाक को अचीवमेंट के तौर पर नहीं बताना चाहती। बस यही कहना चाहती हूं कि लड़कियों को पढ़ने और आगे बढ़ने से मत रोकिए।

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