COVID-19 Economy

पूरा हो सकता है रोजगार सृजन का वादा

कोरोना काल की कशमकश के बीच सफलतापूर्वक संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र और प्रशासन की मजबूती के प्रतीक बने। अब नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार ने राज्य की कमान भी संभाल ली है। उम्मीद है कि सरकार अब जनता की उन परेशानियों को दूर करने की दिशा में तेजी से काम करेगी, जिन वादों पर भरोसा करके जनता ने सत्ता में उसकी वापसी कराई। देश भर में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार से ही जाते हैं। कोरोना महामारी की भयावहता के शिकार हुए ऐसे तमाम मजदूरों को विकट परिस्थितियों में वापस अपने गृह राज्य में लौटना पड़ा। आर्थिक मुश्किलों के कारण उनके त्रासद जीवन की दर्दनाक दास्तान सुनकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल पसीज जाएगा। शायद इसी वजह ने विभिन्न राजनीतिक दलों का घोषणापत्र तैयार करने वालों को उसमें रोजगार सृजन के मुद्दे को व्यापकता के साथ शामिल करने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप महागठबंधन ने जहां अगले पांच वर्षों के दौरान 10 लाख नए रोजगार सृजित करने का वादा किया तो वहीं राजग ने उससे कहीं बढ़कर 19 लाख नए रोजगार सृजन की बात कही। निश्चित ही इन आंकड़ों पर बहुत गंभीरता से काम किया गया होगा। बिजनेस रिफॉम्र्स एक्शन प्रोग्र्राम (बीआरएपी) रिपोर्ट, 2019 में बिहार को ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेसÓ के मामले में देश भर में 26वें स्थान पर रखा। इस रैंकिंग को लेकर बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन यानी बीआइए के प्रेसिडेंट आरएल खेतान ने कहा कि उन्हें इस पर कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि राज्य में अन्य पहलुओं के साथ ही बुनियादी ढांचे की हालत बहुत खस्ता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, ‘राज्य में प्लास्टिक और परिवहन से लेकर कई अन्य उद्योगों से जुड़ी हमारी करीब 11 इकाइयां हैं और मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि कारोबारियों को निम्न स्तरीय सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं।Ó खेतान के अनुभव से स्पष्ट है कि अगले पांच वर्षों के दौरान राज्य में निजी क्षेत्र द्वारा रोजगार सृजन की संभावनाएं कमजोर हैं। ऐसे में कारोबारी परिदृश्य के लिए अनुकूल परिवेश तैयार करने की प्राथमिकता के साथ ही यह भी मुख्य रूप से सरकार का ही दायित्व है कि अगले पांच वर्षों में रोजगार सृजन के वादे की जिम्मेदारी उसे ही उठानी चाहिए। बुनियादी ढांचा केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है। देश भर में एक्सप्रेस-वे के जरिये व्यापक रूप से सड़कों का जाल बिछाने के काम पर अपेक्षित रूप से ध्यान दिया जा रहा है। भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 1,320 किलोमीटर लंबे निर्माणाधीन नई दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के तमाम फायदों में से एक फायदा यह भी गिनाया कि इससे 50 लाख कार्यदिवसों के बराबर रोजगार सृजित होंगे। जहां तक बिहार की बात है तो वहां कोई ऐसा एक्सप्रेस-वे नहीं है और न ही कोई ऐसा मार्ग निर्माणाधीन है, जबकि पड़ोसी उत्तर प्रदेश में इससे उलट स्थिति है। इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विकसित किए जा रहे पूर्वांचल एक्सप्रेस की कड़ी को आगे बढ़ाकर पटना को नई दिल्ली से जोडऩे की चर्चा भी चल रही है। वहीं पटना एयरपोर्ट के मौजूदा हालात ऐसे हैं कि अगर किसी मुसाफिर की मजबूरी न हो तो वह शायद ही दोबारा वहां आना चाहे। वहां नया टर्मिनल मार्च 2023 तक तैयार होने का अनुमान है। फिलहाल यही आसार दिखते हैं कि जब तक यह तैयार नहीं होता तब तक मांग क्षमता को पार नहीं करेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी राज्य का आधुनिकीकरण सड़क, बंदरगाह और हवाई अड्डे आदि के निर्माण से ही आरंभ होता है। अनुभव से उपजे साक्ष्य भी यही दर्शाते हैं कि बुनियादी ढांचे का विकास बड़ी तादाद में रोजगार सृजन का आधार बनता है। बिहार का एक प्राचीन और समृद्ध इतिहास रहा है। यहां राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के ध्वंसावशेष, बोधगया और सीतामढ़ी जैसे तमाम स्थल हैं, जिनमें देसी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचने का पर्याप्त आकर्षण है। राज्य के पर्यटन क्षेत्र में भी रोजगार सृजन के लिए भारी संभावनाएं विद्यमान हैं। राज्य के पास मौजूद कौशल के लिए भी यह कारोबार उपयुक्त है, परंतु खस्ताहाल बुनियादी ढांचे के कारण राज्य इसका लाभ उठाने से वंचित बना हुआ है। नीतीश सरकार को कम से कम चार एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर विचार करना चाहिए। इसमें गाजीपुर-पटना, पटना-गया, पटना-भागलपुर और पटना-सीतामढ़ी का चुनाव किया जा सकता है। यह तकरीबन 800 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे होगा, जिसमें 30 लाख रोजगार दिवसों के बराबर रोजगार सृजन की संभावनाएं होंगी। वहीं पटना, गया, भागलपुर और मुजफ्फरपुर में चार नए हवाई अड्डों और इन शहरों की कनेक्टिविटी को लेकर संबंधित बुनियादी ढांचे का विकास और उससे निजी क्षेत्र को होने वाले फायदे से सृजित हुए रोजगार मिलकर अगले पांच वर्ष में 19 लाख नौकरियों के वादे को पूरा करने का माद्दा रखते हैं। कोरोना संकट ने घर से काम करने को एक आवश्यकता बना दिया है। ऐसे में कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों की बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग यानी बीपीओ इकाइयां गांवों की ओर रुख कर रही हैं। केंद्र सरकार पहले ही वादा कर चुकी है कि वह देश में प्रत्येक पंचायत को ब्रॉडबैंड से जोड़ेगी। ऐसे में बिहार के अद्र्धशहरी क्षेत्र इस अवसर को लपक सकते हैं। हालांकि इसे भुनाने के लिए कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा क्षमताएं विकसित करनी होंगी। वैसे भी इन बीपीओ में तमाम प्रवासी बिहारी ही कार्यरत हैं। वास्तव में बुनियादी ढांचे का विकास निराशा के माहौल को जीवंत आर्थिक परिवेश में बदल देगा। इससे अवसरों को भुनाने में दिलचस्पी रखने वाले तमाम खिलाड़ी राज्य की ओर आकर्षित होंगे। यदि इसके साथ-साथ ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ई-गवर्नेंस के मोर्चे पर भी आवश्यक सुधार संभव हो सके तो राज्य तेजी से तरक्की करने वाले गतिशील सूबों की सूची में अवश्य शामिल हो जाएगा। बुनियादी ढांचे और गवर्नेंस में सुधार के अभाव में आयोजित किए जाने वाले निवेशक सम्मेलन मात्र फोटो खिंचाने के अवसर और सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर करने वाले जलसे ही बनकर रह जाएंगे।
प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि यह उनका आखिर चुनाव है। ‘सुशासन बाबूÓ के रूप में उनका उपनाम तभी इतिहास में दर्ज होगा, जब वह अपने शासन को समृद्धि बढ़ाने वाली विरासत के रूप में छोड़ें। तभी वह संतुष्टि के साथ विदाई लेने के साथ उस कर्ज को उतार सकते हैं, जो राज्य के मतदाताओं ने बीते दो दशकों में उनमें भरोसा दिखाकर उन पर चढ़ाया है।

लेख- जीएन वाजपेयी
पूर्व चेयरमैन
सेबी और एलआइसी पूर्व चेयरमैन

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