नई दिल्ली। एक तरफ केंद्र सरकार लगातार देश की बेहतर आर्थिक व्यवस्था और विकास का दावा कर रही है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ तमाम सरकारी संस्थाएं एक के बाद एक बड़े घाटे से गुजर रही हैं। हालात ये हैं कि पहले जेट एयरवेज तो अब बीएसएनएल और एमटीएनएल के बंद होने की नौबत आ गई है। दरअसल डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन ने बीएसएनएल और एमटीएनएल को आर्थिक संकट के दौर से बाहर निकालने के लिए 74000 करोड़ रुपए की आर्थिक मदद की मांग की थी, जिसे वित्त मंत्रालय ने ठुकरा दिया है। जिसके बाद बीएसएनएल और एमटीएनएल के बंद होने की नौबत आ गई है।
सूत्रों की मानें तो अगर इन दोनों ही कंपनियों को बंद किया जाता है तो इसकी कीमत 95000 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं आएगी। जबकि इसे आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए 74000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी। 95000 करोड़ रुपए का खर्च दोनों कंपनियों के कर्मचारियों को वीआरएस देने और कंपनी पर बकाए को पूरा करने में आएगा। लेकिन यह वीआरएस दोनों ही कंपनियों के हर कर्मचारी को देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसकी वजह है कि दोनों ही कंपनियों में तीन अलग-अलग श्रेणी के कर्मचारी हैं।
पहली श्रेणी में वह कर्मचारी आते हैं जिनकी सीधे कंपनी में भर्ती हुई है, दूसरी श्रेणी में वह कर्मचारी आते हैं जो दूसरी सरकारी विभाग से आए हैं और तीसरी श्रेणी में वह कर्मचारी आते हैं इंडियन टेलीकम्युनिकेशन सर्विस के जरिए कंपनी में आए हैं। पहली श्रेणी के कर्मचारियों की कुल संख्या तकरीबन 10 फीसदी है, ऐसे में इन कर्मचारियों के वीआरएएस पर बहुत अधिक खर्च नहीं आएगा। तीसरी श्रेणी के कर्मचारियों को दूसरे विभाग में ट्रांसफर किया जा सकता है, लिहाजा उन्हें वीआरएस लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन दूसरी श्रेणी के कर्मचारियों को वीआरएस लेना पड़ेगा।
दूसरी श्रेणी के कर्मचारी मुख्य रूप से टेक्निशियन और काफी जूनियर स्टाफ हैं और उनकी सैलरी काफी कम है, इनकी कुल संख्या 10 फीसदी से भी कम है। लेकिन पहली श्रेणी के कर्मचारियों के लिए खासी दिक्कत है जो दूसरे विभाग से आए हैं। सूत्रों की मानें तो दोनों ही कंपनियों से कहा गया है कि वह अपने कर्मचारियों को इन श्रेणी के आधार पर आंकलन करके सही जानकारी दें, जिससे कि कंपनी को बंद करने पर कुल खर्च का सही अंदाजा लगाया जा सके।
साभार : hindi.oneindia
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