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Mahatama Gandhi Birth Anniversary : चंबल के बीहड़ों से होती हुई लंदन-इटली पहुंची खादी

महात्मा गांधी ने देश को खादी दिया तो 27 साल की उमंग श्रीधर ने उसे बुंदेलखंड के चंबल के बीहड़ों और नर्मदा के किनारों से निकालकर लंदन-इटली तक पहुंचा दिया। गांधीजी ने महिला सशक्तीकरण का पाठ पढ़ाया तो उमंग ने 250 महिलाओं को चरखा थमाकर उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना दिया। यह नई पीढ़ी के बीच गांधी को लौटा लाने की एक युवती की सच्ची कोशिश, जिसने उन्हें युवा उद्यमियों की फोर्ब्स की अंडर 30 सूची में जगह बनाने और पहचान पाने में मदद की।

बदलते परिवेश में लुप्त होती जा रही खादी पर शोध करते हुए दमोह के किशनगंज की रहने वाली उमंग श्रीधर को लगा कि खादी गुम होने वाली चीज नहीं है। इसे संजोकर नए रूप में दुनिया को दिखाया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने गुना जिले चंदेरी, खरगोन जिले के महेश्वर और मुरैना जिले में मुरैना, जावरा और जाबरोल की 250 महिलाओं के साथ काम खादी बनाने और उसे पहचान दिलाने की शुरुआत की। वहां कताई, बुनाई, फिनिशिंग, डिजाइनिंग, विपणन, व्यवसाय, उत्पादन तक सभी काम महिलाओं को ही सौंपा।

2017 में प्रदेश के मुरैना के जावरा के गांधी सेवा आश्रम से काम की शरुआत की। उसके बाद महेश्वर, चंदेरी, जाबरोल में भी काम किया। 2020 तक प्रदेश में 10 केंद्र स्थापित करने की योजना है। उमंग की उद्यमिता से प्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी महिलाओं को रोजगार मिल रहा है।

इसलिए खादी की मांग बढ़ेगी

शोध के मुताबिक तापमान परिवर्तन के दौर में सिर्फ सूती (खादी) ही एकमात्र फैब्रिक है, जो राहत देती है। अन्य शोध के अनुसार 2020 तक टेक्सटाइल और फैशन सेक्टर का बिजनेस 20 ट्रिलियन डॉलर आंका गया है। यह सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्र में से एक है। सिलाई, कढ़ाई में निपुण भारतीय महिलाओं के लिए उद्यमी बनने की अपार संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र असंगठित है। यह अन एक्सप्लोर्ड है। इसे तराशा जाना चाहिए।

महिलाएं 15 हजार कमाने लगीं

उमंग बताती हैं कि उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई जरूर की, लेकिन ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी होने से यह साफ था हर किसी को शहर जाने की जरूरत नहीं है। दो साल पहले तक जिन महिलाओं की आमदनी 4 हजार रुपए मासिक थी, वो खादी निर्माण से 15 हजार रुपए महीने तक कमाने लगीं।

खादी का डिजिटलाइजेशन

उमंग बताती हैं खादी को नए बाजार की जरूरत थी। मैंने खादी पर डिजिटल प्रिंटिंग प्रोसेस से फैब्रिक तैयार करवाए। इसे टेक्सटाइल स्टोर्स और फैशन डिजाइनर्स को दिया। देश के अलावा लंदन, इटली में उनका फैब्रिक जा चुका है। अब अन्य देशों में भारत की खादी को उतारने की तैयारी में है।

फोर्ब्स की अंडर 30 में

महज दो साल में ही उमंग खादी को गांवों के दायरों से निकालकर उस स्तर पर ले गईं कि फोर्ब्स 30 की सूची में उन्हें तीस वर्ष से कम उम्र की उद्यमियों की सूची में शामिल किया गया। इसका प्रकाशन इसी वर्ष अप्रैल में हुआ। वे बताती हैं कि इस कार्य में उनकी मदद मुंबई की रहने वाली फैशन डिजाइनर तानिया चुघ ने की।

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