Chhattisgarh

पानाबरस परियोजना मंडल में पांच करोड़ से ऊपर घोटाले के मामले को दबाने पूरा प्रयास

अलताफ हुसैन की कलम से ✍

रायपुर। वन विभाग का अनुषांगिक धड़ा वन विकास निगम वैसे तो अनेकों भ्रष्टाचार घोटाला और फर्जीवाड़े को लेकर सदैव सुर्खियों में रहा है परन्तु अब जो फर्जीवाड़ा कर घोटाले को अंजाम दिया गया है वह हतप्रभ करने वाला आया है वह भी लाख दो लाख नही बल्कि पांच करोड़ से ऊपर का खेला हो गया और किसी को कानों कान खबर नही मामला तब प्रकाश में आया जब बार नवापारा परियोजना मण्डल के डीएम आईएफएस अधिकारी शशि कुमार रोपण क्षेत्र का भौतिक मूल्यांकन हेतु गए जहां उन्होंने पाया कि सौ हेक्टेयर भूमि पर प्लांटेशन होना था वहां केवल बीस हेक्टेयर में ही प्लांटेशन किया गया वहां भी तीन वर्ष के व्यवस्थापन सुरक्षा,देखरेख, के आभव में दस से पन्द्रह प्रतिशत ही रोपण दिखायी दिया क्योंकि वन अधिनियम में यह स्पष्ट है कि कम से कम प्लांटेशन के रोपण क्षेत्र में अस्सी प्रतिशत रोपण शेष रहना चाहिए तभी उस प्लांटेशन को सफल माना जाता है परन्तु यहां अस्सी क्या पन्द्रह से बीस प्रतिशत ही रोपण दिखाई दिया जो सीधे सीधे फेल्वर एवं असफल माना जाता है बताते चले कि वन विकास निगम राजनांदगांव के पानाबरस परियोजना मंडल अंतर्गत मोहला,खडग़ांव परिक्षेत्र,घोसटोला परिक्षेत्र एवं मिस्पिरि परिक्षेत्र में वर्ष 2019-20-21को औद्योगिक वृक्षारोपण के तहत सागौन, प्रजाति के प्लांटेशन किया गया था जहां सौ एकड़ भूभाग में सागौन पौधा रोपण किया जाना था वहां उपरोक्त परिक्षेत्रों में एक तो कम भूभाग में प्लांटेशन किया गया उस पर प्लांटेशन क्षेत्र में प्रतिवर्ष किए जाने वाले कैज्युवलटी सहित निंदाई गुढाई,दवा,खाद,थाला बनाने जैसे कार्यों के लिए मिलने वाली राशि भी गड़बड़, घोटाले की भेंट चढ़ गई आज स्थिति यह है कि पूरा प्लांटेशन क्षेत्र उजड़ा.. चमन हो गया है मामला तब प्रकाश में आया जब भौतिक सत्यापन जो कि प्रतिवर्ष वन विकास निगम के पृथक परियोजना मंडलों से डीएम डीडीएम,सहित रेंजर स्तर के अधिकारीयों की टीम द्वारा कराया जाता है तथा वे ही भौतिक सत्यापन कर प्रमाणित करते है ऐसे बहुत से अधिकारियों द्वारा प्लान्टेशनों का फर्जी एवं झूठा मूल्यांकन कर सत्यपित कर बड़े बड़े घोटालों को अंजाम दे चुके है जो आज तक प्रकाश में नही आया एक प्रकार से देखा जाए तो मूल्यांकन करने गए अधिकारी वन विकास निगम को धोखे में रखकर निरीक्षण के एवज में बड़ी राशि लेकर अपना पौ बारह करते रहे तथा विभाग को भी चुना लगते रहे है परन्तु पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी ईमानदार आईएफएस अधिकारी द्वारा पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर बेबाक तरीके से सत्य एवं तथ्यपरक भौतिक मूल्यांकन रिपोर्ट दी तथा उपरोक्त प्लांटेशन क्षेत्र मोहला, खडग़ांव,घोसटोला,मिस्प्रि परिक्षेत्रों में हुए करोड़ों के घोटाले सार्वजनिक हो सके उक्त फर्जीवाड़ा घोटाले में बार नवापारा परियोजना मंडल के मंडल प्रबंधक आईएफएस अधिकारी शशि कुमार ल बधाई के पात्र है जिन्होंने अपने सोलह सदस्यीय टीम के साथ कथित प्लांटेशन परिक्षेत्रों का भौतिक मूल्यांकन एवं सत्यापन हेतु पहुंचे वहां प्लांटेशन के स्थान पर चटियल मैदान नज़र आया तब जाकर मामले का खुलासा हुआ मजे की बात यह है कि वन विकास निगम के प्रदेश भर के प्लांटेशनों का यही हाल है अति विश्वसनीय विभागीय सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि कथित तीनों क्षेत्रों में सम्पादित सागौन प्लांटेशनो से तात्कालिक वन विकास निगम कर्मियों द्वारा लगभग साढ़े पांच करोड़ रुपये से ऊपर का गड़बड़ घोटाला कर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जाने का आंकलन जानकारों द्वारा किया गया है यही नही तात्कालिक आईएफएस अधिकारी डीएम शशि कुमार बार नवापारा परियोजना मण्डल द्वारा अपनी रिपोर्ट उच्च स्तर पर भी सौंप दी जिस पर तत्काल संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पूर्व वर्षों में समस्त प्लांटेशन रोपण क्षेत्रों का भौतिक मूल्यांकन करने वाले अधिकारियों से लेकर मैदानी अमले के रेंजर सहित कर्मचारियों को अटल नगर नवा रायपुर स्थित वन विकास निगम मुख्यालय में तलब किया गया जहां सब से पूछ ताछ की गई जिसमे संलिप्त लगभग सभी कर्मचारियों की घिग्घी बंध गई है बताया जा रहा है कि यदि इन पर जांच की आंच आती है तो कई आधिकारी कर्मचारी लपेटे में आएंगे परन्तु अंदर खाने से यह भी खबर छन कर सामने आ रही है कि वन विकास निगम में अंगद की पांव की तरह पैर जमाए एवं निगम के खजाने में कुंडली मारकर बैठे सेवानिवृत्त तथा वर्तमान में संविदा नियुक्त प्रबंध वित्त लेखा अधिकारी भोजराज जैन मामले की लीपापोती करने लामबद्ध है क्योंकि उच्च स्तरीय कार्यवाही की बात आने से कई अधिकारियों की रात की नींद उड़ गई है तब उन्होंने गड़बड़ घोटाले में संलिप्त समस्त अधिकारियों, कर्मचारियों को आश्वस्त किया है कि तुम लोग पैसों का इंतज़ाम करो मैं मामले को सम्हालता हूं अंदर से खबर यह भी आई है कि मामले की लीपापोती के लिए समस्त कर्मियों से पैंतीस से चालीस लाख रुपये में सैटलमेंट हो गया अब लेनदेन की स्थित यह है कि चालीस लाख रुपये में पूरा मामला दबाने का प्रयास किया जा रहा है यही वजह है कि इन सारे प्रकरण के नायक मोहला परिक्षेत्राधिकारी जागेश गौड़ सहित मंडल प्रबंधक श्री पाठक को मुख्यालय अटैच कर दिया गया तथा परिक्षेत्राधिकारी जागेश गौंड की मुख्यालय नवा रायपुर में प्रतिदिन क्लास ली जाने लगी धीरे धीरे मामला को दबाने पूरा प्रयास किया गया इस पूरे मामले में मोहला खडग़ांव रेंजर जागेश गौड़ के ऊपर विभागीय कार्यवाही एवं संपूर्ण प्रकरण को दबाने के नाम पर अब तक चालीस लाख रुपये का लेनदेन कर लिया गया तथा मंडल प्रबंधक पानाबरस परियोजना मंडल के श्री पाठक एवं जागेश गौड़ के ऊपर अब तक किसी प्रकार कोई भी विभागीय कार्यवाही नही किया गया क्योंकि अपने बचाव और लीपा पोती के एवज में लगभग चालीस लाख रुपये का प्रसाद ऊपर तक पहुंचाया जा चुका है। जबकि देखा जाए तो वन विकास निगम पानाबरस परियोजना मंडल का यह मामला बहुत ज्यादा संगीन एवं अक्षम्य है यदि वन अधिनियम के तहत विधिवत इस पर कार्यवाही होती है तो बहुत से अधिकारी कर्मचारी सीधे नौकरी से बाहर किए जा सकते है लेकिन जब तक भोजराज जैन जैसे तीक्ष्ण बुद्धि वाले अधिकारी वन विकास निगम में रहेंगे तब तक ऐसे गड़बड़ घोटाले बाजों के संरक्षण और बचाव के नए नए हथकंडे अपनाए जाते रहेंगे क्योंकि ज्ञात हुआ है कि उन्होंने संलिप्त अधिकारी,कर्मचारियों से स्पष्ट पूछा था कि किसी दस्तावेज में उन्होंने कोई हस्ताक्षर या सही तो नही किया ? प्रत्युत्तर में संलिप्त अधिकारियों, कर्मचारियों ने न में सिर हिला कर समवेत स्वर मे हस्ताक्षर या सही नही करना बताया था वही वित्त प्रबंधक लेखा के भोजराज जैन ने उन्हें आश्वस्त किया था कि मामले को सुलझा लूंगा,, तुम लोग पैतीस से चालीस लाख रुपये तैयार रखो … मैं उस रिपोर्ट को झूठा साबित कर दूंगा … तुम लोग स्वयं जाकर अपने अपने प्लांटेशन क्षेत्रों का दौरा करके मुझे गणना मूल्यांकन की सत्यापित रिपोर्ट प्रस्तुत करो मैं बाकी सब सम्हाल लूंगा? अब सवाल उठता है कि क्या एक आईएफएस अधिकारी के द्वारा दी गई रिपोर्ट को अमान्य कर झुठलाया जा सकता है? क्या उन्ही अधिकारियों, रेंजरों और मैदानी अमले को जो करोड़ों के गड़बड़ घोटाले में संलिप्त है को भौतिक मुल्यांकन कर सत्यापित दस्तावेज बनाने का संवेदनशील जिम्मा दिया जा सकता है ? क्या एक जिम्मेदार आईएफएस अधिकारी के द्वारा प्लान्टेशनों का भौतिक मूल्यांकन झूठी एवं फर्जी हो सकती है? यह बात कुछ गले नही उतरती तात्कालिक आईएफएस अधिकारी शशि कुमार जो वर्तमान में रेग्युलर फॉरेस्ट दुर्ग डिवीजन में डीएफओ पद पर आसीन है यदि वे अकेले भौतिक मूल्यांकन हेतु गए होते तो एक बार प्रस्तुत रिपोर्ट को लेकर सन्देह व्यक्त किया जा सकता था परन्तु अपने सोलह सदस्यीय टीम के साथ उन्होंने संपूर्ण सागौन प्लान्टेशनों के रोपण क्षेत्र में स्वयं की उपस्थिति में भौतिक मूल्यांकन की रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमे उन सोलह सदस्यों के भी हस्ताक्षर है जो बिना हीला हवाला और विरोधाभास के रिपोर्ट सत्य मानी जा सकती है हालांकि इस संदर्भ में कुछ जानकारों का कथन है कि मैदानी अमले में रेंजर सहित अन्य कर्मचारी इतने बड़े घोटाले को बगैर किसी अधिकारी के शह पर कर ही नही सकते वही कुछ कर्मी दबी जुबान से पूर्व सेवानिवृत प्रबंध संचालक एवं सोमादास मैडम के कार्यकाल से ही गड़बड़ घोटाला किए जाने का अंदेशा व्यक्त कर चुके है जबकि उस वक्त पानाबरस परियोजना मंडल के डी.एम. ए. के. पाठक को लंबे वनवास के बाद पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय में कुछ माह ही हुए थे जब प्लांटेशन में रोपण कार्य संपादित किया गया था मामले में रोपण कार्यों को संपूर्ण अनदेखी कर उनकी निष्ठा, सहानुभूति मोहला रेंजर के प्रति अधिक रही अब इसके पीछे का मन्तव्य वे ही जाने परन्तु कहीं न कहीं उक्त घोटाले में उनकी संलिप्तता को देखते हुए उन्हें निगम मुख्यालय अटैच कर दिया गया तथा कुछ माह लेनदेन के पश्चात उन्हें भी पुनः पानाबरस परियोजना मंडल में मंडल प्रबंधक पद पर नियुक्त कर दिया जबकि रेंजर जागेश गौड़ के ऊपर कोई कार्यवाही अथवा जांच प्रक्रिया नही अपनाई गई वह यथावत अपने मूल मोहला खडग़ांव परिक्षेत्र का सफल निष्पादन कर करते रहा है वही देववंडवी परिक्षेत्राधिकारी हरीश कुमार जोशी जो कथित सागौन रोपण में संलिप्त था वह भी स्वयं को बचाने में सफल हो गया।
इसके एवज में विभाग में जोरदार सुगबुगाहट है कि मामले को दबाने अब तक चालीस लाख रुपये ऊपर पहुंचाया जा चुका है यही वजह है कि करोड़ों रुपये के सागौन रोपण घोटाले की रोपित पौधों की वार्षिकी गणना भी दो वर्षों से नही की गई जो विभागीय कार्यशैली पर अनेक सन्देह उत्पन्न करता है ज्ञात तो यह भी हो रहा है कि रूट – सूट की खरीदी कर कुछ स्थानों पर भरपाई की कोशिश की जा रही है वही यह भी बताया जा रहा है कि पूर्व में रोपित सागौन में वर्षा पश्चात नए कपोल फुटने का इंतजार किया जा रहा है ताकि उसे भी गणना में लिया जा सके इसके अलावा विभाग द्वारा नव नियुक्त रेंजरों को ट्रेनिंग में विभाग लगभग चार से छः लाख रुपये व्यय करता है परन्तु छग वन विकास निगम पानाबरस परियोजना मंडल के अन्तर्गत मोहला खडग़ांव में पदस्थ रेंजर जागेश गौड़ एक ऐसा एकलौता रेंजर है जिसने आपने दो वर्षों से ट्रेनिंग को टालते जा रहा है तथा विभाग के लाखों रुपये की क्षति अलग हो रही है जबकि उनके ही समकक्ष रेंजर जिनमे खटकर सहित अन्य लोग जिनका प्रकरण में कहीं न कहीं संलिप्तता थी वे ट्रेनिंग में जा चुके है बताते चले कि वित्त वर्ष 2019-20एवं 20-21 में मोहला और खडग़ांव परिक्षेत्र में लगभग 22 लाख सागौन पौधों का रोपण लगभग छह करोड़ की लागत से किया जाना था जिसमे दस से 15 प्रतिशत सागौन रोपण लगभग एक से डेढ़ करोड़ की लागत से ही संपादित कर दिया गया था शेष राशि तात्कालिक प्रबंध संचालक एवं आरजीएम सोमदास मैडम सहित अन्य अधिकारियों कर्मचारियों के कमीशन खोरी में भेंट चढ़ गई थी शेष करोड़ों की राशि मोहला खडग़ांव,रेंजर जागेश गौड़ सहित उल्लेखित अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा डकार लिया गया था जिसका आईएफएस अधिकारी शशिकुमार एवं उनके सोलह सदस्यीय टीम के द्वारा गणना के दौरान मात्र दस से पंद्रह प्रतिशत रोपण किए जाने का मामला प्रकाश में आने पर खुलासा हुआ रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर भ्रष्टाचार और घोटाले की बल्ली सीधे डीएम ए. के.पाठक सहित जागेश गौंड, के ऊपर गिरी जबकि हरीश कुमार जोशी,खटकर जैसे कर्मी साफ साफ अपने को बचाने सफल रहे फिर भी गड़बड़ घोटाला तो हुआ है जो वन विकास निगम के संपूर्ण प्रदेश के प्लान्टेशनों का यदि सूक्ष्मता से निष्पक्ष जांच की जाती है तो कई अधिकारी कर्मचारी लपेटे में आएंगे क्योंकि मोहला खडग़ांव के गड़बड़ घोटाले के इस बेहद संगीन मामले को गुपचुप तरीके से सैटलमेंट करने की कवायद अब तक चल रही है और किसी भी डीएम , रेंजर के ऊपर कोई कार्यवाही नही की गई केवल औपचारिक कार्यवाही कर प्रकरण लंबित रखा गया है पश्चात करोड़ों के घोटालों के इस प्रकरण में नाम मात्र रिकवरी आदेश जारी कर संपूर्ण करोड़ों के घोटाले को रफा दफा कर दिया जाएगा गौर तलब यह भी है कि विगत वर्षों में किए गए गड़बड़ घोटाला पर यदि वविनि समस्त संलिप्त अधिकारी कर्मचारियों से रिकवरी करता है जो करोड़ों की राशि में है उसमें संलिप्त कर्मचारी अपने कपड़े तक बेच देंगे तो भी इतने रुपये रिकवरी के रूप में नही दे सकते क्योंकि गड़बड़ घोटाला ही साढ़े पांच करोड़ रूपये के ऊपर का बताया जा रहा है अब इस गंभीर प्रकरण में ऊपर बैठे अधिकारी क्या कार्यवाही करते है यह अब आगे देखना होगा फिर भी इस संदर्भ में फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़ के द्वारा सूचना के अधिकार के तहत वित्तीय वर्ष 2019-20 एवं 20 21 के संपूर्ण बिल बाउचर प्रमाणक की छाया प्रति मांगी गई थी जिसे पानाबरस कर्मचारी देने में आज तक आनाकानी कर रहे है क्योंकि एक वर्षों से ऊपर हो चुके मांगे गए सूचना के अधिकार के तहत जानकारी को अब तक टालमटोल की स्थिति बनी हुई है फरवरी 22 में दिए गए छग राज्य सूचना आयोग के द्वारा फैसला आवेदक के पक्ष में भी दिए जाने का आदेश पारित किया जा चुका है परन्तु उसका भी अनुपालन पानाबरस परियोजना मंडल के कर्मियों द्वारा नही किया जा रहा है इसकी वजह यह है कि यदि मंडल कार्यालय द्वारा राज्य सूचना आयोग के उपरोक्त आदेश का पालन करता है तो करोड़ो रूपये के हुए एक बहुत बड़े घोटाले का पर्दाफाश बिल प्रमाणक,और बाउचर के माध्यम से हो सकता है जिसकी वजह से बहुत से चेहरे बेनकाब हो सकते है और कइयों के ऊपर राशि रिकवरी के साथ उनकी नौकरी भी खतरे में पड़ सकती है।

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