Chhattisgarh Raipur CG

पानाबरस बनाम धनबरस परियोजना मंडल कार्यालय भ्र्ष्टाचार के मामले में अव्वल

अलताफ हुसैन की कलम से… ✍

रायपुर। छग राज्य वन विकास निगम में वैसे तो अनेक फर्जीवाड़ा,भ्रष्टाचार, कार्यों में गड़बड़ी के प्रकरण प्रकाश में आते रहते है लेकिन नियम और कानून को बलाए ताक रख कर फर्जीवाडा किए जाने वाले प्रकरण के मामले में पानाबरस बनाम धन बरस परियोजना मंडल कार्यालय ने तो सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए यही नही फर्जीवाड़ा कर भ्रष्टाचार को अंजाम दिए जाने का यह खेल केवल वर्ष दो वर्ष ने नही बल्कि वर्ष 2015 से लेकर अनवरत कार्यों में अनियमितता एवं फर्जी बिल के माध्यम से सावन की झड़ी के मानिंद बरस रहे धन को लुटने का कार्य चल रहा है अब तक के इन पांच छ वर्षों के लंबे अंतराल में पाना बरस बनाम धन बरस परियोजना मंडल ने करोड़ों रुपयों का चूना शासन एवं छग वन विकास निगम को लगा चूके है इनमें कुछ अधिकारी,कर्मचारी, तो बेचारे दिवंगत हो गए शेष सेवानिवृत अधिकारी कर्मचारी, उन्ही भ्रष्ट राशि से विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे है फिर भी छग वन विकास निगम में ऊपर बैठे उच्च अधिकारी ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के कार गुजारी को देख कर भी अंजान बने केवल आंख मूंदे उन्हें मूक भ्रष्टाचार करने की अनुमति दिए जाने जैसा प्रतीत हो रहा है और वन विकास निगम जो स्वपोषित संस्था के रूप में चिन्हित है वह शासकीय विभाग के अधिकारियों,कर्मचारियों के लिए केवल आर्थिक अर्जित करने वाला एक चारागाह बन गया है जहां अधिकारी कर्मचारी दस्तावेजों में कूटरचना कर गड़बड़ी,अनियमितता, एवं घोटाला के माध्यम से भ्र्ष्टाचार,करने के नए नए अवसर तलाशते रहते है आश्चर्य तब और अधिक होता है कि जब विभागीय दस्तावेजो में इतना बड़ा खेल हो जाने के बावजूद निगम में ऊपर बैठे अधिकारी न ही मैदानी क्षेत्रों में संपादित किए गए कार्यों का समुचित भौतिक मूल्यांकन करते है और न ही उसकी गुणवत्ता की जांच की जाती है केवल आंख बंद कर कागजों पर साइन सिंगनेचर,से खेल हो जाता है तथा सब को अपना अपना कमीशन भी मिल जाता है अब निगम द्वारा संपादित कराए गए कार्य की क्या स्थिति होती है उसका कोई पुरसाने हाल नही सब भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है जब संपादित कार्यों की सुध लेने किसी आम जन द्वारा सूचना के अधिकार के माध्यम से जानकारी मांगी जाती है तो या तो अधिकारी गोलमोल या आधी अधूरी जानकारी प्रदान कर आवेदक को दिग्भ्रमित करने का प्रयास करते हैं या फिर बगले झांक कर टालमटोल की स्थिति निर्मित की जाती है ऐसा ही एक सूचना का अधिकार का प्रकरण सामने आया है जिसमे छह माह पूर्व आवेदक फॉरेस्ट क्राइम द्वारा दो पत्रों के माध्यम से दिनांक 05/02/2021 को पत्र क्रमांक क्रमशः 291/292 /सु.का.आ./02/2021/के माध्यम से 01 जनवरी वर्ष 2016 से 30 दिसंबर तक 5000 से अधिक का नगद,भुगतान, या चेक ड्राफ्ट,आर.टी.जी.एस. के माध्यम से किए गए उक्त व्यक्ति फर्म संस्था के नाम बैंक स्टेटमेंट की सत्यापित छायाप्रति मांगी गई थी जिस पर माह फरवरी माहान्त से कोरोना काल प्रारंभ होने तथा मानव दृष्टिकोण के चलते जवाब दो माह विलंब से प्रदाय किया गया परन्तु वह भी चाय,नाश्ता, भोजन,पेट्रोल,विधुत बिल इत्यादि के दस्तावेज दिए गए जिस पर आवेदक ने अपनी असन्तुष्टि व्यक्त करते हुए तत्काल राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया तथा राज्य सूचना आयोग के पत्र क्रमांक/54414/वा.02/प्र. क्र. A/528/रा./ 2021/ के दिनांक 03/06/2021 के माध्यम से पानाबरस वन विकास निगम राजनांदगांव तथा आवेदक को दिनांक 02/07/2021/ सुनवाई हेतु उपस्थित होने कहा गया जहां निर्धारित तिथि को माननीय महोदय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से निगम कर्मियों को फटकार लगाते हुए 30 दिवस के भीतर आवेदक को अवलोकन सहित चाही गई जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए पानाबरस मंडल कार्यालय द्वारा दिनांक 20/ 07/2021/ सुनिश्चित कर आवेदक को कार्यालयीन अवधि में उपस्थित होने कहा गया चूंकि वार्षिक त्योहार होने के कारण दिनांक 23/07/ 2021/ को आवेदक पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय में उपस्थित हुआ समयाभाव में संपूर्ण दस्तावेजों का अवलोकन नही हुआ तथा शेष वर्ष के दस्तावेजो के अवलोकनार्थ हेतु पानाबरस मंडल कार्यालय द्वारा आगामी दिवस को मोबाइल से यह जानकारी दी गई कि अवलोकन हेतु संपर्क कर निर्धारित तिथि बता दिया जाएगा जबकि राज्य सूचना आयोग का यह स्पष्ट निर्देश है कि सुनवाई पश्चात 30 दिवस के भीतर आवेदक को अवलोकन सहित चाही गई जानकारी उपलब्ध करावें परन्तु उक्त निर्देशों का भी खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही है निर्धारित समयावधि व्यतीत होने के पश्चात यदि उक्त दिवस अंतराल में आवेदक को अवलोकन सहित संबंधित चाही गई दस्तावेज प्रदान नही किया जाता है तो उक्त परिस्थिति में आवेदक राज्य सूचना आयोग को पुनः अपील सहित न्यायालयीन शरण मे जाने बाध्य होना पड़ेगा वही कुछ वर्षों पूर्व के दस्तावेजों का अवलोकन करने से यह ज्ञात हुआ है कि अर्दली भुगतान श्रमिक भुगतान सहित सामग्री क्रय भुगतान तथा निर्माण कार्य भुगतान में बड़ा खेल हुआ है उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 पश्चात केंद्र सरकार द्वारा देश भर के समस्त राज्यों के शासकीय विभागों मे उपरोक्त भुगतान बैंक के माध्यम से किए जाने हेतु सर्कुलर जारी किए गए थे परन्तु पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय में उक्त आदेशों को अनदेखा कर समस्त भुगतान नगद अथवा कार्यालयीन अधिकारियों,कर्मचारियों द्वारा बैंक से राशि आहरित कर किया गया जबकि भुगतान बैंक द्वारा संबंधित व्यक्ति,संस्थान, को किया जाना सुनिश्चित है परन्तु इसके विपरीत छग वन विकास निगम पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय के मैदानी कर्मचारियों द्वारा वर्ष 2016-17के जॉब प्रमाणक एवं बाउचर अवलोकन से यह ज्ञात हुआ है कि एक मुश्त राशि जो कार्यालय द्वारा जारी की जाती थी वह लाखों में होती थी उक्त राशि को एकमुश्त आहरित कर संबंधितों को भुगतान अब चाहे वह श्रमिक भुगतान हो सामग्री क्रय हो या व्यक्तिगत भुगतान हो सभी का नगद भुगतान किया गया है वर्तमान स्थिति में बैंक से भुगतान किए जाने के संदर्भ में कुछ अपवाद हो सकते है परन्तु इसका विकल्प भी निकाला जा चुका है यदि 30 अथवा 40 मजदूरो को श्रमिक भुगतान करना होता है तो मैदानी अधिकारी कर्मचारी, अपने रिश्तेदार,दोस्त,अहबाब के नाम जॉब कार्ड में जोड़ देते है तथा एक बड़ी राशि गड़बड़ घोटाला कर फर्जी तरीके से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है वही निर्माण अथवा सामग्री क्रय में ऊपर बैठे अधिकारीयों का कमीशन तो बंधा होता है वही फर्जी बिल तथा अन्य बैंक अकाउंट से राशि आहरित कर भ्रष्टाचार का बड़ा खेल हो रहा है जिसमे लाखों का लेनदेन परस्पर हो जाता है उदाहरण के लिए पाना बरस कार्यालय को ही ले लिया जाए उक्त दो मंजिला कार्यालय भवन निर्माण में लागत राशि लगभग 67 लाख रुपये है तथा दो तीन वर्ष ही हुए उक्त भवन का निर्माण किए मगर देखा जा रहा है कि यह भवन अभी से दरकने लगी है तथा निर्माणकर्ता ठेकेदार भी पानाबरस कार्यालय के पूर्व लेखाधिकारी कथरानी के सुपुत्र एव उन के मित्र के माध्यम से निर्माण एवं सामग्री प्रदाय किया जाना बताया गया नव निर्मित कार्यालय भवन के संदर्भ में तात्कालिक अधिकारियों द्वारा उसके गुणवत्ता एवं फिटनेस सर्टिफिकेट क्यो नही लिया गया ? इससे ज्ञात होता है कि भवन निर्माण में ऊपर बैठे अधिकारियों सहित अन्य कर्मचारियों द्वारा भारी भ्रष्टाचार का खेल खेला गया है कहा यह जा रहा है जितनी 67 लाख की लागत से पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय भवन का नव निर्माण किया गया उतनी राशि मे तो सुसज्जित महल खड़ा हो जाता था परन्तु देखने मे यह आ रहा है कि वही कार्यालय में रखे अलमारी कुर्सी टेबल क्रय किए गए जबकि उनकी स्थिति देखकर ज्ञात होता है कि पुराने अलमारी को ही रंग रोगन,डेंटिंग,पेंटिंग लगाकर एक बड़ी राशि आहरित कर डकार ली गई दस्तावेज अवलोकन में मैदानी वन क्षेत्र में भी प्रति वर्ष किए जाने वाले लगुण विदोहन कार्य जिनमे दस से चालीस वर्षीय परिपक्व सागौन ,बांस, अन्य ईमारती काष्ठों के पातन में माह सितंबर वर्ष 2017 में भी एक ही व्यक्ति के नाम को कई लगुण कार्य में एक ही तिथि मे कई जॉब वर्क कार्ड में नामांकित कर हजारों की राशि आहरित की गई जो निश्चित ही बड़े भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है आश्चर्य यह भी है कि समस्त भुगतान आधिकारिक तौर पर कार्यालयीन खाता संख्या से लाखों की राशि आहरित कर नगद भुगतान किया गया जबकि उन्हें ऑन लाइन उनके संबंधित बैंक खाता संख्या में भुगतान जारी किया जाना था फिर भी आवेदक को उक्त भुगतान से संबंधित दस्तावेज प्रदान नही किए गए जबकिं कोरल दण्ड नर्सरी के भुगतान संबंधित पत्रों के अवलोकन में भी बड़ी गड़बड़ी कर भ्रष्टाचार करने की आशंका है जुलाई वर्ष 2016 में मस्टररोल सहित बिल बाउचर में लाखों के भुगतान किए गए परन्तु जितने भुगतान किए गए उनमें श्रमिकों की संख्या भी कम बताई गई तथा खाद क्रय से लेकर अन्य कार्य भी सन्देह के दायरे में है जो बड़े फर्जीवाड़ा की ओर इशारा करते है क्षेत्र के काष्ठागर जो छग वन विकास निगम की आर्थिक रीढ़ मानी जाती है वहां पर भी दर्शाए गए विदोहन लगुण कार्य में सागौन सहित अन्य ईमारती काष्ठों की संख्या पृथक दर्शाई गई है तथा नीलामी काष्ठों की संख्या (अ) समान है यही नही बताया तो यह भी जाता है कि वन क्षेत्रों से दस वर्षीय बीस वर्षीय से लेकर चालीस वर्षीय परिपक्व सागौन एवं ईमारती काष्ठों का पातन पश्चात कुछ बेशकीमती काष्ठ तो मैदानी अमले के द्वारा बाला बाला सीधे वन परिक्षेत्र से व्यापारियों से सांठगांठ कर विक्रय कर देते है वही काष्ठागार में हुई नीलामी पश्चात एक टी.पी.में ही कई ट्रक काष्ठ पार हो जाते है जिसका आर्थिक लाभ अधिकारीयों सहित कर्मचारी उठाते है वही नीलामी पश्चात परिवहन किए जाने वाले नीलामी काष्ठ के व्यापारी द्वारा तत्काल काष्ठ परिवहन नही किया जाता इसे निर्धारित अवधि में काष्ठागार से उठाना अनिवार्य होता है यदि नियत तिथि में नीलामी काष्ठ व्यापारी द्वारा परिवहन नही किया जाता तब उससे अतिरिक्त राशि ली जाती है तथा यही से एक लाट पर एक फ्री वाली स्थिति निर्मित होती है जिसकी एक बड़ी राशि सब अधिकारियों कर्मचारियों के जेब मे जाता है बताते चले कि काष्ठों की गुणवत्ता के आधार पर लाट तैयार किए जाते है जिसमे नीलामी के दौरान किसी अन्य गुणवत्ता वाले काष्ठों की नीलामी होती है तथा परिवहन करते समय गुणवत्ता युक्त काष्ठ भी परिवहन हो जाते है इसकी संपूर्ण जानकारी नीलामी कर्ता अधिकारी को होती है तथा संपूर्ण लेनदेन तत्काल कर लिया जाता है शेष चट्टे बट्टे अन्य छोटे कर्मचारियों के द्वारा गड़बड़ कर आर्थिक लाभ अर्जित किया जाता है इसमें सर्वाधिक अहम भूमिका कार्यालयीन लेखाधिकारी,एवं वरिष्ठ प्रबन्ध लेखाधिकारी को होती है जो लाट की संख्या,उसके घनमीटर तथा गुणवत्ता के संबन्ध में होता है वही व्यापारियों को सैटिंग से लेकर परमिट जारी करने के दायित्वों का निर्वहन करता है ज्ञात तो यह भी हुआ है कि कुछ उंगली में गिनेचुने व्यापारी एवं काष्ठ मिलर है जो बेशकीमती काष्ठों को पूर्व सैटिंग से क्रय कर लेते है तथा केवल नीलामी की औपचारिकता भर निभाई जाती है यही स्थिति एव नियम बांस बंबू नीलामी के भी है जो राजनांदगांव परियोजना मंडल के अंतर्गत अधिक व्यापारी है यहां माउंट की भांति काष्ठागरों में बांस बंबू, के बड़े लाट देखे जा सकते है जो स्थानीय स्तर पर इसका क्रय कम बाहरी प्रदेशों में अधिक होता है जानकर एवं आम जन में यहां तक कानाफूसी है कि चंद निगम मंडल के अधिकारियों कर्मचारियों एवं विभाग की मिलीभगत से वन परिक्षेत्रों से सीधे माल यहां पहुंच जाते है जिनके कोई वैधानिक दस्तावेज भी नही होते इसकी आड़ में बेशकीमती ईमारती काष्ठ भी पार हो जाते है जो आरा मिल एवं इनके काष्ठागार में पृथक दिखाई दे जाते है यदि इस संदर्भ में छापामार कार्यवाही हुई तो कई बड़े राजफाश हो सकते है परन्तु संबंधित विभाग इस तारतम्य में किसी प्रकार की कोई छापामार कार्यवाही नही करते जिसका भरपूर आर्थिक लाभ काष्ठ व्यापारी और अधिकारी,कर्मचारी उठा रहे है निगम कर्मियों द्वारा दस्तावेजो में कूटरचना,एवं गड़बड़ी किए जाने के मामले में सबसे बड़ी हैरान करनें वाली बात यह है कि किसी भी विभाग में वार्षिकी अंकेक्षण हेतु प्रति वर्ष अंकेक्षण द्वारा (ऑडिट) रिपोर्ट तैयार कर दी जाती है परन्तु क्या ये ऑडिटर की नज़रों से भी इतने बड़े बड़े मामले और प्रकरण छूट जाते है या फिर इनकी भी आंखों में पैसों की पट्टी बांध दी जाती है ? इस प्रकार के गड़बड़ी घोटाला और भ्रष्टाचार की स्थिति केवल राजनांदगांव के पानाबरस परियोजना मंडल की ही नही अपितु प्रदेश भर के निगम मंडल कार्यालय में भी देखी जा सकती है बहरहाल, शेष तीन वर्षों के दस्तावेजों का अवलोकन शेष है जिसमे अनेक बड़े प्रकरण प्रकाश में आने की संभावना है जिसे दस्तावेज सहित प्रकाशन कर राजफाश किया जाएगा ? जिसमे कई अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार की ज़द में आएंगे।

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