Chhattisgarh Raipur CG

गोढ़ी नर्सरी में विलुप्त प्रजाति के 82 से ऊपर वन संपदा का अकूत खजाना

रायपुर/ पृथ्वी का श्रृंगार पेड़ पौधे वृक्ष की हरियाली है यदि इस धरा पर पेड़ पौधे न रहे तो पूरी धरती मरुस्थल एवं नीरस सी प्रतीत होगी क्योंकि इस धरती पर वृक्ष और पेड़ पौधे की हरियाली ही हमारे मन को आल्हादित कर आकर्षित करते है और ईश्वरीय संरचना के अद्भुत अविश्वसनीय कलाकृति के ऐसे अलौकिक तार्किक उपहार के प्रति हमारा मस्तिष्क श्रद्धानवत हो जाता है हालांकि ऐसे प्राकृतिक संरचना के मात्र निर्माण कल्पना से ही मानव स्वयं को असहाय,एव निःशक्त मानता है फिर भी इस ईश्वरीय संरचना के पेड़ पौधों के संरक्षण संवर्धन कर उसके अस्तित्व को अक्षुण्य बनाए रखने में अपना महती योगदान अवश्य प्रदान कर सकता है इसके लिए भारत के लोकतांत्रिक देश में पृथक वन एवं जलवायु विभाग का गठन किया गया है जिनका कार्य ही प्राकृतिक को सहेज संरक्षण संवर्धन कर ईश्वरीय देन अमूल्य,प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षा प्रदान करना है ताकि मानव को प्राकृतिक से ऑक्सीजन सहित,पेड़ पौधे से मिलने वाली अमरत्व प्रदान करने वाली जड़ी,बूटी, एवं औषधि जैसे अदृश्य लाभ प्राप्त हो सके साथ ही पर्यावरण,प्रदूषण मुक्त शुद्ध जलवायु वातावरण निर्मित किया जा सके है। इसके लिए हमारे प्रदेश के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग एवं उसके अनुषांगिक धड़ा इस संदर्भ में बड़ी मुस्तैदी के साथ कार्य कर रहे है मैदानी क्षेत्रों में प्लान्टेशन सहित अनेक नर्सरियों में पेड़ पौधों का बीजारोपण कर उन्हें आधुनिक तकनीक से पैदावार कर प्रदेश को हराभरा बनाने दृढ़ संकल्पित है प्रदेश भर में लगभग तीन सौ नर्सरीयों में बीज, रायजोम,रूट सूट के माध्यम से ऐसे पेड़ पौधों का उत्पादन पैदावार कर संरक्षित किया जा रहा है जो या तो वनों से प्रायः लुप्त हो रहे है या फिर उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है ऐसे पेड़ पौधे जिनका धार्मिक मान्यता सहित औषधि युक्त भी माना जाता है उसे भी संरक्षित किया जा रहा है ऐसे आधुनिक नर्सरी में प्रदेश भर मे अपनी एक पृथक पहचान रखने वाले नर्सरी में रायपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम गोढ़ी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है जहां अति आधुनिक तकनीक से टेशू कल्चर लैब के माध्यम से पैदावार ली जा रही है तथा विलुप्त प्रजाति के पेड़ पौधों का संरक्षण संवर्धन किया जा रहा है अनुसंधान एव वन विस्तार वन मंडल रायपुर के अन्तर्गत संचालित गोढ़ी नर्सरी वन विभाग का ही धड़ा है जहां पर ऐसे पौधों को संरक्षित किया जा रहा है जो प्राकृतिक वनों से लगातार विदोहन के कारण उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका था इस सन्दर्भ में अनुसंधान एवं विस्तार केंद्र वन मंडल रायपुर की डीएफओ सलमा फारुखी ने बताया कि अनुसंधान एवं विस्तार केंद्र रायपुर में हमारे दो फेस नर्सरी बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ कार्य कर रही है फेस वन ग्राम जोरा की केंद्रीय रोपणी जहां पर आधुनिक तरीके से पेड़ पौधों का संरक्षण कर संवर्धन किया जा रहा है विशेष कर विलुप्त प्रजातियों के पेड़ पौधों के अस्तित्व बचाने विशेष प्रयास किए जा रहे है वही फेस टू ग्राम गोढ़ी नर्सरी जहां की स्थिति और भी कहीं ज्यादा बेहतर है वहां वनों के भिन्न भिन्न प्रजाति के विलुप्त होते पेड़ पौधों को अति आधुनिक तकनीक से उपचार रखरखाव सहित उसके उपज पर विशेष प्रयोग कर उनके अस्तित्व को बचाया जा रहा है इसमें विभाग को बड़ी सफलता मिली है वही विभाग द्वारा अन्य संचालित नर्सरियों की दशा दिशा सुधारने भी मुख्यालय में पत्र व्यवहार किया गया है डीएफओ सलमा फारुखी ने बताया कि यदि स्वपोषित नर्सरी के रूप में अन्य नर्सरी का नियमित संचालन सुचारू ढंग से होता है तो भविष्य में नर्सरी आर्थिक रूप से स्वावलंबी ,एवं आत्मनिर्भर बन सकती है तथा अर्जित आय से नर्सरी में नए आधुनिक प्रयोग कर पेड़ पौधे और वनों का विस्तार में सहभागी बन सकती है। वही अनुसंधान वन विस्तार केंद्र के उप वन मंडलाधिकारी जयजीत आचार्या साहब जो वन विभाग में 35 वर्षों से प्रदेश के भिन्न भिन्न वन मंडलों के अंतर्गत अपनी सेवाएं देते आए है तथा उन्हें वानिकी,एवं प्लांटेशनो सहित विभागीय कार्यों का एक लंबा अनुभव रहा है कर्तव्यनिष्ठ,ईमानदार, समर्पित सेवा भाव,एवं कार्यों के प्रति अनुशासन का मूलमंत्र अंगीकार किए श्री जे.जे.आचार्या साहब ने कार्यों के प्रति कभी समझौता नही किया जिसकी वजह से वे अनेक लोगों के आंखों की किरकिरी बने रहे तथा अनेक वैधानिक प्रक्रियाओं से भी उन्हे दो चार होना पड़ा फिर भी इन सब को बलाए ताक रख अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहे तथा लंबे समय तक अनुसंधान एवं विस्तार केंद्र वनमंडल रायपुर में पदस्थ रहते हुए विभागीय कर्मियों के मध्य अपना अनुभव साझा कर रहे है उन्होंने बताया कि छग प्रदेश में प्राकृतिक वनों में मानव द्वारा घुसपैठ कर अवैध कटाई और विदोहन के कारण ऐसी प्रजाति के पेड़ पौधे विलुप्त होने के कागार पर पहुंच चुके है जिससे वनों की आभा दमकती थी इन्ही विलुप्त प्रजाति के क्लोन, पत्तो, तनों से टेशू कल्चर एवं आधुनिक पद्धति से उसका संरक्षण संवर्धन किया जा रहा है जिनमे साल वृक्ष के अलावा विभिन्न 24 प्रकार के बांस का उत्पादन एवं फसल ली जा रही है जिनमे देहरादून पालम पुर,हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों से क्रय कर लाए गए बांस ग्राम गोढ़ी में मौजूद है जिनमे बाल्टी बांस,नार्थ स्टिक बन्गोसा,बामिन,लोटा या कलश बांस,इत्यादि प्रमुख है जो त्रिपुरा मेघालय राज्यों से क्रय कर मंगवाए गए इनकी पैदावार आधुनिक पद्धति से टेशू कल्चर लैब के माध्यम से की जा रही है उप वन मण्डलाधिकारी जे जे आचार्या साहब ने बताया कि ग्राम गोढ़ी जो मुरुमी स्थल होने से वहां नर्सरी संचालन एक दुरूह एवं चुनौतीपूर्ण कार्य था फिर भी उपजाऊ मिट्टी के साथ रसायनिक एवं बर्मी कंपोस्ट खाद से क्षेत्र में हरियाली प्रसार किया गया यहां तक नर्सरी के आसपास नमी बनी रहे इसके लिए एक बड़ा तालाब खनन करवाया गया जो नर्सरी के लिए प्राणवायु साबित हो रही है उन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक वनों से लगातार विदोहन की वजह से चार, गोलू,गोंद, शीशम,मैदा,अश्वगंधा,शमी फूल, त्रिखुर,कपूर,वज्र,चन्द्रमुल,गुल बकावली, जिसे अमरकंटक से लाया गया था हथजोड़ा,जंगली लहसुन, हींग,लौंग,इलायची, जैसे औषधि पेड़ पौधे विलुप्त हो रहे है इसके लिए विभाग द्वारा इनका पैदावार कर विस्तार किया जा रहा है वही दहिमन, पेड़ जो प्राचीन काल मे घाव के उपचार में अति उपयोगी माना जाता था उसका भी संरक्षण कर संवर्धित किया जा रहा है।
धार्मिक मान्यता वाले पेड़ों में कृष्ण वट वृक्ष की अति महत्वता बताई गई है वेदों पुराणों में उल्लेख मिलता है कि श्री कृष्ण भगवान अपने बाल सखा,भक्तों को इसी कृष्ण वट वृक्ष के पत्तो में दही, घी खिलाया करते थे आश्चर्य का विषय यह है कि कृष्ण वट वृक्ष के पत्ते दोना का आकार लिए होते है वही अन्य धार्मिक मान्यता प्राप्त वृक्षों में शिवलिंगी,रुद्राक्ष,भद्राक्ष, सहित भिन्न भिन्न प्रजाति के अनेक पेड़ वृक्ष मौजूद है वही कल्पवृक्ष भी है जिसकी मान्यता यह बताई गई कि यह बारहमास हरा होता है इसके तना एवं शाखाएं स्निग्ध होती है तथा वर्षा जल को अपने अंग सहित शाखाओं एवं जड़ परिसर क्षेत्र में सवशोषित कर रखता है इसके नीचे बैठने से व्यक्ति निरोग एवं प्यास विहीन रहता है यही कारण है कि अनेक इष्ट देवी देवता ऋषि मुनियों ने इसके नीचे बैठ कर कठिन तप किया श्री जे.जे. आचार्या ने बताया कि आम लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग बनाए जाने हेतु नर्सरी में प्रशिक्षण शाला भी समय समय पर लगाए गए जिनमे चार वर्ष पूर्व शाला के बच्चों को किस तरह पेड़ पौधों का रोपण किया जाता है उन्हें प्रशिक्षण दिया गया यही नही मृदा एवं खाद मिश्रण युक्त उपजाऊ मिट्टी के पॉलीथिन बैग में रखकर बीजारोपण एवं उस से अंकुरित पेड़ का विक्रय भी किया गया तथा विभाग की ओर से उन्हें दस हजार रुपये नगद राशि देकर प्रोत्साहित किया गया साथ ही उनके द्वारा क्रय किए गए पेड़ की राशि भी शाला प्रबन्धन को सौप दी गई ताकि शाला के नन्हे बच्चों को पेड पौधों के पैदावार,कर प्राप्त आय पर्यावरण क्षेत्र के विकास में सहयोग प्राप्त हो सके परंतु, इसके निराशाजनक परिणाम सामने आए उन्होंने आगे बताया कि पलाश के दुर्लभ प्रजाति के भी सफेद पीला रंग के पलाश भी ग्राम गोढ़ी नर्सरी में है जो जबलपुर से मंगाया गया था अभी उसे भी संरक्षित कर संवर्धन किया गया है जो अपने आप मे एक उदाहरण है गोढ़ी नर्सरी प्रभारी सी.एस. धुरंदर ने बताया कि नर्सरी में भिन्न प्रजाति के बेंगुसा, कलकोआ,एस्पर, न्यूटांग्स,जैसे पौधों को रिसर्च किया गया है जिसके सारगर्भित परिणाम सामने आए है टेशू कल्चर जैसे आधुनिक पद्धति के संदर्भ में नर्सरी प्रभारी सी.एस. धुरंदर ने बताया कि किसी भी पेड़ के कलम को लेकर अनेक बार रसायनिक मिश्रित शुद्ध जल से उसे धोना पड़ता है ताकि कलम को बैक्टीरिया फंगस, रहित बनाया जा सके पश्चात उसे लेमिनार (थियेटर) ले जाते है वहां केमिकल से पुनः सफाई कर कांच के मर्तबान जिसमे जेल होता है उसमें कलम रोप दिया जाता है साथ ही उसमे हार्मोन डाल कर उसकी वंश वृद्धि की जाती है उक्त एक कलम से ढाई सौ से पांच हजार पौधे तैयार किए जा सकते है नर्सरी प्रभारी सी.एस. धुरंदर ने आगे बताया कि नव रोपित कलम शाखा से हमने विलुप्त प्रजाति के पेड़ पौधों को संरक्षित किया है तथा उसकी वंश वृद्धि की है इसके लिए हमेशा कल्चर रूम,मिस्ड चेंबर,एवं हार्ड चेंबर का तापमान पच्चीस से तीस डिग्री के तापमान (ट्रेम्प्रेचर) में ही रखा जाता है पश्चात इसे मिस्ड चेंबर में ले जाया जाता है जहां सामान्य तापमान में इन्हें स्ट्रिंकलर पद्धति से सिंचाई की जाती है अधिक तापमान होने स्वचालित एक्जास्ट पद्धति से गर्म हवा बाहर निकल जाती है वही चेंबर में स्टिंकलर पद्धति से स्वचालित सिंचाई प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है पश्चात इन्हें मिस्ड चेंबर में रख सामान्य तापमान में 30-से 35 डिग्री में रखा जाता है ताकि उक्त वातावरण को नन्हे पौधे स्वशोषित कर सर्वाइव करे उन्होंने बताया इस टेशू कल्चर प्रक्रिया में बांस एक माह तथा केला के पौधे तैयार होने में छ माह लग जाते है नर्सरी प्रभारी धुरंदर ने आगे बताया कि गोढ़ी नर्सरी में वर्तमान में लगभग पुरानी एवं नई हरियर योजना अतर्गत एक लाख पचास हजार पौधे भिन्न भिन्न प्रजाति के वन संपदा उपलब्ध है जो ग्राम गोढ़ी के नर्सरी में एक ही स्थान पर उपलब्ध है।
जिनमे मुख्यतः बिरहा, मुंडी,कुल्लू,गोंद,काला शीशम, बीजा, लौंग, तेजपत्ता,ज़िंगो, बाइलोबा, मोहगनी, कुसुम, तेंदू,भेलवा, अध कपारी, सहित 80 प्रकार के वन औषधि संपदा संग्रहित है जो स्वमेव एक उदाहरण है इसका निरीक्षण करने भी अनेक विद्यार्थी,और पर्यावरण प्रेमी नर्सरी आते है नर्सरी प्रभारी सी एस. धुरंदर ने बताया कि क्षेत्र के परिक्षेत्राधिकारी पुनीत राम लसेल है जिनका मार्ग दर्शन समय समय पर मिलता है तथा उनके ही मार्ग दर्शन में यहां कार्य संपादित होता है रेंजर लसेल साहब एक कर्तव्य निष्ठ एवं सुलझे हुए अधिकारी है उनके लंबे अनुभव का लाभ नर्सरी को प्राप्त हो रहा है वही सहायक नर्सरी प्रभारी गणेशराम वर्मा ने बताया कि प्रतिदिन रोपण कार्य हेतु चार से पांच मजदूर लगाए जाते है कार्य अधिक होने पर इनकी संख्या में भी वृद्धि की जाती है सहायक प्रभारी गणेशराम वर्मा ने बताया कि रोपण कार्य हेतु उपजाऊ खाद एवं मिट्टी मिश्रण युक्त पॉलीथिन में भरा जाता है पश्चात उसमे पौधे रोपे जाते है यही नही मदर बेड में भी नई तकनीक से रोपण कार्य कर उन्हें पॉलीथिन बैग में भरा जाता है तथा रोपे गए पौधों में नियमित सिंचाई की जाती है तथा मांग अनुसार पौधे सशुल्क प्रदान किया जाता है सहायक प्रभारी ने बताया कि अर्जित आय से ही नर्सरी की व्यवस्था एवं संचालन कार्य निष्पादित होता है सिंचाई व्यवस्था के नाम पर चार बोर है तथा संकलित तालाब के पानी का उपयोग भी समय समय पर किया जाता है निश्चित ही ग्राम गोढ़ी स्थित नर्सरी अपने वृहद भूभाग में हरियाली के प्रसार में विलुप्त प्रजाति के 82 से ऊपर वन संपदा का अकूत खजाना समेटे हुए है जो काबिले तारीफ है।

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