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$$ गजल $$

$$ गजल $$

रखा है उसने शाने पे सर मुद्दतों के बाद
अपना मुझे समझा है मगर मुद्दतों के बाद/

रुख पर तेरे पड़ी है नजर मुद्दतों के बाद
यह दिल हुआ है जेरो-जबर मुद्दतों के बाद/

शिद्दत से याद जिंदगी करती है आज भी
हमको खबर मिली ये मगर मुद्दतों के बाद/

हम भी तुम्हारे चाहने वालों की सफ में है
ये तुम समझ सकोगे मगर मुद्दतों के बाद/

नक्शे कदम से जिसके हो हर जर्रा आफताब
आता है कोई ऐसा बशर मुद्दतों के बाद/

साहिल पर आकर डूब रहे हैं यह गम नही
हम से गले मिला है भंवर मुद्दतों के बाद/

दुश्मन पर फतह पाएंगे आरिफ यकीन है
लड़ने का हमको आया हुनर मुद्दतों के बाद//

मोहम्मद आरिफ
असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर (बी.एस.एफ.)

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0512007