महाराष्ट्र: प्रस्तावित सीमेंट फैक्ट्री का स्थानीय लोग क्यों कर रहे विरोध?
मुंबई के पास ठाणे ज़िले के कल्याण तालुका में एक सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट प्रोजेक्ट प्रस्तावित है. अदानी ग्रुप के अंबुजा सीमेंट के इस प्रोजेक्ट का मोहोने गांव और आसपास के 10 गांवों के लोग विरोध कर रहे हैं.
मोहोने में गांव के लोगों की कमेटी के अध्यक्ष और स्थानीय बीजेपी नेता सुभाष पाटिल ने बीबीसी से बातचीत में इस प्रोजेक्ट को “धीमा ज़हर” बताया. उनका कहना है कि गांव के लोग इसकी वजह से परेशान हैं.
कई स्थानीय राजनेता, पर्यावरणविद और किसान संगठनों ने इस सीमेंट ग्राइंडिंग प्रोजेक्ट को लेकर आधिकारिक तौर पर आपत्ति दर्ज कराई है.
वहीं अदानी ग्रुप ने कहा है कि इस प्रोजेक्ट के लिए प्रदूषण संबंधी सभी नियमों का कड़ाई से पालन किया जाएगा.
ऐसी आशंका जताई जा रही है कि अगर घनी आबादी वाले क्षेत्र में सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट चालू होगी, तो इसका स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. यह यूनिट पर्यावरण के साथ-साथ यहां के पानी और इसके स्रोतों को भी प्रदूषित करेगी.
हालांकि, प्रशासन ने कहा है कि इस प्रोजेक्ट के लिए अभी तक अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन इसकी प्रक्रिया जारी है.
जानते हैं कि यह मामला क्या है और इसका विरोध क्यों हो रहा है?
‘हमें पता है भविष्य में क्या परेशानी होगी’
ऐसा कहा जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट कल्याण में आंबिवली रेलवे स्टेशन के पास एक निजी कंपनी की ज़मीन पर प्रस्तावित है.
यह अदानी ग्रुप की ‘अंबुजा सीमेंट’ का सीमेंट ग्राइंडिंग प्रोजेक्ट है.
नियमों के अनुसार, 16 सितंबर को महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मौजूदगी में एक जन सुनवाई आयोजित की गई थी. इस दौरान बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ दलों के राजनीतिक नेता वहां मौजूद थे.
सुनवाई के दौरान कई लोगों ने प्रोजेक्ट को लेकर आपत्तियाँ और सवाल खड़े किए.
अटाली गांव के पराग पाटिल ने इस संदर्भ में गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर सवाल किए.
इस युवक ने कहा, “इस मामले में लोगों की ज़िंदगी पर कोई विचार नहीं किया गया है. वे इस प्रोजेक्ट को जल्दबाज़ी में आगे बढ़ाना चाहते हैं. हम इसका विरोध करते हैं. हम कुछ भी करेंगे, लेकिन इस प्रोजेक्ट को सफल होने नहीं देंगे.”
आगे उन्होंने कहा, “बुज़ुर्ग और छोटे बच्चे बहुत जोखिम में हैं क्योंकि जब यह सीमेंट फैक्ट्री बनेगी, तो वहां बेहद छोटे- छोटे पार्टिकल्स यानी पीएम 2.5 पैदा होंगे. ये पीएम 2.5 फेफड़ों में जाते हैं और गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं. यह कैंसर और फेफड़ों की बीमारियों की वजह बनते हैं. इसलिए हम इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं.”
उन्होंने पर्यावरणविदों से आंबिवली को बचाने के लिए आगे आने की अपील भी की. रिपब्लिक पार्टी ऑफ़ इंडिया के नेता श्यामदादा गायकवाड़ ने इस संदर्भ में कहा, “पंद्रह लाख टन कोयला जलाने से कितना धुआं निकलेगा? जबकि वे कहते हैं कि कोई प्रदूषण नहीं होगा.”
उन्होंने कहा, “अटाली, आंबिवली, मोहोने प्राकृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं, जहां 10 किलोमीटर के दायरे में सभी गांव हैं. उल्हास, कालू, भत्सा, वालधुनी जैसी नदियां यहां बहती हैं. ये नदियां महानगर को पानी उपलब्ध कराती हैं. इस प्रोजेक्ट के आने का मतलब है कि निश्चित रूप से प्रदूषण होगा.”
गायकवाड़ कहते हैं, “सीमेंट उत्पादन एक लंबी प्रक्रिया है, यह प्रदूषण पैदा करती है और कई बीमारियों का कारण बनती है.”
उन्होंने कहा कि जन सुनवाई में उनके एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया गया है.
उन्होंने कहा, “वे मेरे एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाए. हम सिर्फ़ विरोध के लिए विरोध नहीं कर रहे हैं. हम जानते हैं कि कल का संकट क्या है. यह पीढ़ी तो बर्बाद होगी ही इससे आने वाली पीढ़ियां भी बर्बाद होंगी. हम अपनी रोज़ी-रोटी के नाम पर ऐसा नहीं चाहते.”
उन्होंने दावा किया, “स्वास्थ्य तो एक बड़ा मुद्दा है ही. लेकिन तथाकथित विकास का क्या मतलब है? फैक्ट्री स्थापित होने के बाद केवल 150 स्थायी कर्मचारी होंगे. यह प्लांट 67 एकड़ ज़मीन पर बनना है. सीमेंट बनाते समय, चूना पत्थर, मिट्टी, राख निकलेगी. इसमें कोयला जलेगा और इससे प्रदूषण होगा.” राजनेता और पर्यावरण विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
प्रस्तावित सीमेंट फैक्ट्री प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ मोहोने और आसपास के 10 गांवों के ग्रामीणों ने भी हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है.
स्थानीय लोगों ने आशंका जताई है कि अगर सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट बनाई जाएगी, तो यह उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करेगी और पास की उल्हास और कालू जैसी नदियों के पानी को प्रदूषित करेगी.
स्थानीय बीजेपी नेता और मोहोने ग्राम कमेटी के अध्यक्ष सुभाष पाटिल ने कहा, “हम यहां उनके सीमेंट प्लांट की वजह से होने वाले प्रदूषण का विरोध करने आए हैं. वे अपना प्लांट लगाने की योजना बना रहे हैं. हम इसका विरोध करते हैं. ये धीमे ज़हर की तरह है.”
शिवसेना ठाकरे गुट की नेता और स्थानीय निवासी आशा रसले ने कहा, “अगर यह फैक्ट्री यहां बनेगी, तो इस फैक्ट्री से 15 किमोमीटर के दायरे में चारों तरफ़ हर तरह का प्रदूषण होगा.”
“फैक्ट्री से निकलने वाला प्रदूषण त्वचा रोगों और कैंसर का कारण बन सकता है. ध्वनि प्रदूषण भी होगा. उनकी फैक्ट्री में उत्पादन यहीं होगा और ढुलाई भी यहीं से होगी.” पर्यावरण से जुड़े जानकारों और कार्यकर्ताओं ने भी इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए हैं. कंज़र्वेशन एक्शन ट्रस्ट ने इस पर आपत्ति जताई है. इस मामले पर देबी गोएनका ने कहा, “60 लाख टन ग्राइंडिंग की जाएगी. इससे बहुत अधिक प्रदूषण होगा. हम मुंबई में भी देख रहे हैं कि कम क्षमता वाली फैक्ट्री भी प्रदूषण फैलाती है. यह आने वाला प्रोजेक्ट घनी आबादी वाले क्षेत्र में प्रस्तावित है. जब एनआरसी कंपनी आई थी, तब वह मुंबई से बहुत दूर थी, लेकिन अब हालात अलग हैं. अब यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है.”
“अगर 60 लाख टन कच्चा माल लाया जाएगा, तो सोचिए कितना ट्रैफ़िक जाम होगा. इससे वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण होगा और पास में रहने वाले लोगों के लिए भी समस्याएं खड़ी होंगी. इसलिए हमने सुझाव दिया था कि यह प्रोजेक्ट यहां नहीं होना चाहिए.”
उन्होंने यह भी कहा कि हमने संबंधित अधिकारियों के पास लिखित में आपत्तियां दर्ज कराई हैं.
उन्होंने आगे कहा, “हमसे कहा गया है कि संबंधित एजेंसियां प्रक्रिया के अनुसार दर्ज की गई आपत्तियों का जवाब देंगी. उसी के मुताबिक़ पर्यावरण से जुड़ी अंतिम रिपोर्ट तैयार की जाएगी. हमारा मुख्य मुद्दा यह है कि यह एक प्रदूषण फैलाने वाला काम है. इससे कालू नदी पर भी प्रदूषण होगा क्योंकि फैक्ट्री का सारा कचरा नदी में जाएगा.” प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने क्या कहा? महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि जन सुनवाई, प्रक्रिया का एक हिस्सा है और अभी तक इस मामले में कोई अंतिम अनुमति नहीं दी गई है.
बीबीसी से बात करते हुए महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी जयवंत हजारे ने कहा, “यह जन सुनवाई पर्यावरण से जुड़ी मंजू़री (ईसी) के लिए थी. इस प्रोजेक्ट की क्षमता प्रति वर्ष 60 लाख मीट्रिक टन है. पर्यावरण से जुड़ी मंज़ूरी के बाद, प्रोजेक्ट को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति मिलती है. जन सुनवाई इस प्रक्रिया का एक हिस्सा है.”
यहां क्या होने वाला है, इसे समझने के लिए आम जनता जन सुनवाई में भाग ले रही है.
हजारे ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण विभाग ने अभी तक कोई अनुमति नहीं दी है और इसकी प्रक्रिया फिलहाल जारी है.
कंपनी ने कहा, नियमों का पालन किया जाएगा
जन सुनवाई में अंबुजा सीमेंट की ओर से प्रकाश दयाल उपस्थित हुए थे.
उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “हम यहां जो यूनिट ला रहे हैं, वह केवल सीमेंट ग्राइंडिंग (सीमेंट को पीसने) के लिए है. यहां केवल सीमेंट ग्राइंडिंग और पैकिंग ही की जाएगी. केंद्र और राज्य स्तर पर वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से संबंधित सभी क़ानूनों का पालन किया जाएगा. उसी के अनुसार रिपोर्ट तैयार की जाएगी.”
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर उठाए जा रहे सवालों के बारे में उन्होंने कहा, “सीमेंट पीसने से बीमारियां होती हैं या नहीं, इस बारे में हमारे पास कोई वैज्ञानिक शोध नहीं है. इस स्थान पर सभी की स्वास्थ्य जांच की जाएगी. यहां एम्बुलेंस भी उपलब्ध कराई जाएगी.”
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस जगह पर धुएं से संबंधित कोई काम नहीं होगा और आग (जलाने) का कोई काम नहीं होगा, यह केवल एक ग्राइंडिंग प्रोजेक्ट है. उन्होंने कहा, “पानी का उपयोग करते समय भी हम सभी दिशानिर्देशों का पालन करेंगे.”
गौतम अदानी की कंपनी अमेरिका में फिर से जाँच के घेरे में, ग्रुप ने ख़बर पर क्या कहा
अमेरिकी अख़बार ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिकी अभियोजक ये जांच कर रहे हैं कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अदानी की कंपनियों ने मुंद्रा पोर्ट के रास्ते भारत में ईरानी लिक्विफ़ाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का आयात किया था.
हालांकि, अदानी एंटरप्राइज़ेज़ ने एक बयान में इस रिपोर्ट को ‘बेबुनियाद और नुक़सान पहुंचाने वाला’ बताया है. कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा है कि “हमें इस मामले पर अमेरिकी अधिकारियों की ओर से की गई किसी जांच के बारे में जानकारी नहीं है.”
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि उसे गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह और फ़ारस की खाड़ी के बीच चलने वाले टैंकरों में कुछ ऐसे संकेत दिखे हैं, जो एक्सपर्ट्स के अनुसार प्रतिबंधों से बचने वाले जहाज़ों में आम होते हैं.
मामले के जानकारों के हवाले से वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा है कि अमेरिका का न्याय विभाग अदानी समूह की प्रमुख इकाई अदानी एंटरप्राइज़ेज़ को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई एलपीजी टैंकरों की गतिविधियों की समीक्षा कर रहा है.
रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
अमेरिकी जर्नल ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में लिखा है कि एशिया के दूसरे सबसे अमीर शख़्स गौतम अदानी अपने ख़िलाफ़ अतीत में लगे आरोपों को ख़ारिज करवाने की कोशिशों में जुटे हैं.
बीते साल नवंबर में ही गौतम अदानी पर अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वत का मुक़दमा दायर किया गया था.
अख़बार ने लिखा है कि ब्रुकलिन में अमेरिकी अटॉर्नी कार्यालय की ओर से की जा रही जांच अदानी के लिए समस्या साबित हो सकती है. साथ ही ख़बर में अदानी को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी सहयोगी भी बताया गया है.
वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार उन्होंने बीते साल की शुरुआत में मुंद्रा पोर्ट से फ़ारस की खाड़ी जाने वाले जहाज़ों की गतिविधियों को जांचा था. जहाज़ों को ट्रैक करने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस आवाजाही के दौरान ऐसे संकेत मिले जो आमतौर पर ऐसे जहाज़ों में देखे जाते हैं जो आवाजाही के दौरान अपनी पहचान स्पष्ट नहीं रखते.
एलपीजी टैंकरों को ट्रैक करने वाली लॉयड्स लिस्ट इंटेलिजेंस में मैरिटाइम रिस्क एनालिस्ट टॉमर रानन के अनुसार, जहाज़ों के ऑटोमैटिक आइडेंटिकफ़िकेशन सिस्टम या एआईएस से छेड़छाड़ एक आम तरीका है. ये सिस्टम जहाज़ की पोज़िशन के बारे में जानकारी देता है.
रिपोर्ट में बीते साल अप्रैल महीने में अदानी के लिए एलपीजी लेकर आने वाले पनामा के झंडे वाले एसएमएस ब्रोस कार्गो शिप में कुछ ऐसे ही पैटर्न देखे जाने की बात कही गई है. जर्नल ने लॉयड्स लिस्ट के सीसर्चर प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके जहाज़ के एआईएस का विश्लेषण किया. इसमें पाया गया कि जहाज़ तीन अप्रैल 2024 को दक्षिणी इराक़ के खोर अल-ज़ुबैर में खड़ा था.
रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन अप्रैल 2024 की सैटेलाइट तस्वीरों में एसएमएस ब्रोस इराक़ में अपनी जगह पर नहीं दिख रहा है. लेकिन एक सैटलाइट ने एसएमसएस ब्रोस से मेल खाते एक जहाज़ की तस्वीरें ली हैं, जो ईरान के टोनबुक में एलपीजी टर्मिनल पर डॉक किया गया था.
इस ख़बर में सैटेलाइट इमेजरी से जुड़े एक्सपर्ट के हवाले से ये भी पुष्टि की गई है कि ईरान में खड़ा जहाज़ एसएमएस ब्रोस ही था.
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट पर अदानी समूह ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी है.
इसमें कहा गया है, “अदानी समूह की कंपनियों और ईरानी एलपीजी के बीच संबंध का आरोप लगाने वाली वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट निराधार और नुकसान पहुंचाने वाली है. अदानी जानबूझकर किसी भी तरह के प्रतिबंधों से बचने या ईरानी एलपीजी से जुड़े व्यापार में संलिप्तता से साफ़ इनकार करता है. हमें इस विषय पर अमेरिकी अधिकारियों द्वारा किसी भी जांच की जानकारी नहीं है.”
बयान में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट को पूरी तरह से गलत धारणाओं और अटकलों पर आधारित बताया गया है. इसमें कहा गया है, “हम इस दावे का खंडन करते हैं कि अदानी समूह जानबूझकर ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहा है. पॉलिसी के मुताबिक, अदानी समूह अपने किसी भी बंदरगाह पर ईरान से आए माल को नहीं हैंडल करता है. इसमें ईरान से आने वाले कोई भी शिपमेंट या ईरानी झंडे के तले चलने वाले जहाज़ भी शामिल हैं.” “अदानी समूह किसी भी ऐसे जहाज़ का प्रबंधन नहीं देखता न तो कोई सुविधा देता है, जिसके मालिक ईरानी हों. इस पॉलिसी का हमारे सभी पोर्ट्स पर सख़्ती से पालन किया जाता है.”
बयान में कहा गया है कि वॉल स्ट्रीट जर्नल की कहानी में जिस शिपमेंट का हवाला दिया गया है, वो थर्ड पार्टी लॉजिस्टिक पार्टनर की देखरेख में हुई गतिविधि थी. इसकी पुष्टि दस्तावेज़ों से होती है, जिसके मुताबिक, जहाज़ ओमान के सोहर से रवाना हुआ था.
अदानी एंटरप्राइज़ेज़ ने ये भी कहा है कि हम एसएमएस ब्रोस समेत किसी जहाज़ का संचालन नहीं करते और न तो ये हमारे हैं. इसलिए इन जहाज़ों की मौजूदा या अतीत में की गई गतिविधियों पर हम टिप्पणी नहीं कर सकते.
अदानी पर अमेरिका में पुराने मामले
बीते साल अमेरिका में अदानी पर अपनी एक कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए 25 करोड़ डॉलर की रिश्वत देने और इस मामले को छिपाने का आरोप लगा था. हालाँकि अदानी समूह ने एक बयान जारी कर इन आरोपों का खंडन किया और कहा था कि सभी आरोप बेबुनियाद हैं.
अदानी पहले भारतीय कारोबारी हैं, जिन पर अमेरिका में इस तरह के गंभीर आरोप लगे थे.
उस समय ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ न्यूयॉर्क के अमेरिकी अटॉर्नी के कार्यालय ने अपने बयान में कहा था कि गौतम अदानी और उनके भतीजे सागर के अलावा छह अन्य लोगों पर एक सोलर एनर्जी सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारत सरकार के अधिकारियों को 25 करोड़ डॉलर रिश्वत देने का आरोप तय हुआ है.
बीते महीने ही ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि गौतम अदानी के कुछ प्रतिनिधियों ने डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के कुछ अधिकारियों से मुलाक़ात की, जिसमें गौतम अदानी पर लगे आपराधिक मामलों को खारिज करने के बारे में चर्चा हुई. इस बैठक का ज़िक्र वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में भी किया है.
इससे पहले, अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग ने साल 2023 में अदानी पर एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें अदानी समूह के मालिक गौतम अदानी और विनोद अदानी पर गंभीर आरोप लगाए गए थे.
रिपोर्ट में कहा गया था कि अदानी समूह के मालिक गौतम अदानी ने 2020 से ही अपनी सात लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में हेरफेर के ज़रिये 100 अरब डॉलर कमाए. रिपोर्ट में गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी पर भी गंभीर आरोप लगाए गए थे और कहा गया था कि वो 37 शेल कंपनियां चलाते हैं, जिनका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ है.
रिपोर्ट आने के एक ही महीने के भीतर अदानी की नेटवर्थ में 80 बिलियन डॉलर यानी 6.63 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की गिरावट आई थी. गौतम अदानी रईसों की टॉप 20 लिस्ट से भी बाहर हो गए थे. हालांकि, हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी इस साल जनवरी में बंद हो गई.
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