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सरकारी या प्राइवेट नौकरी – श्रेष्ठ कौन.. ?

Balwant Singh Khanna

हमारा समाज कभी भी कंपीटिटिव या प्रतिस्पर्धी नहीं रहा। हम तो हमेशा ही कोआपरेटिव यानि समाज के सहयोगी रहे हैं। शासकीय क्षेत्र हो या फिर निजी क्षेत्र हो, अनेक लोग नौकरी पेशा हैं या नौकरी करते हैं, लेकिन हमेशा से ही यह बहस का विषय रहा है कि शासकीय नौकरी ज्यादा सही है या फिर प्राइवेट नौकरी। हर किसी का अपना अपना तर्क होता है और हर किसी की अपनी अपनी पसंद, लेकिन भारत में लोग सबसे ज्यादा शासकीय नौकरी के पीछे भागते हैं। हर कोई शासकीय नौकरी पाने के लिए ही मेहनत करता है और उसी के अनुसार पढ़ाई भी। अपनी शिक्षा और कुशलता के आधार पर नौकरी मिलती है।शासकीय नौकरी में तनख्वाह भले ही कम हो लेकिन पद के हिसाब से रुतबा भी होता है। वैसे ही प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में रुतबा भले ही कम हो लेकिन तनख्वाह ज्यादा होती है। दैनिक भोगी से लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव हों या फिर छोटे से लेकर बड़े पद पर काम करनेवाले को आप जानते होंगे, हर पद पर लोग कार्यरत हैं। लेकिन शासकीय नौकरी हो या फिर प्राइवेट नौकरी दोनों के बीच में बहस है कि आखिर बेहतर कौन है? इसके लिए मेरा व्यक्तिगत विचार है और हो सकता है कि बहुत से लोग इससे समहत न हों। मैं किसी भी शासकीय हो या फिर निजी क्षेत्र में कार्यरत व्यक्ति के भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है, और ना ही मैं अपनी सोच किसी के ऊपर लादना चाहता हूं। आपके या मेरे हर किसी के अलग अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन जब हम शासकीय नौकरी या फिर निजी क्षेत्र की नौकरी के ऊपर बहस करते हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि दोनों के विषय पर अपनी सकारात्मक राय जाहिर करें।

शासकीय नौकरी में कहते हैं कि आप चोरी करना सीख सकते हो और प्राइवेट नौकरी में कहते हैं कि खुद को बेचना सीख सकते हो। यह शब्द शायद आपको या फिर सुनने वालों को बुरा लगे या फिर अजीब लगे लेकिन इसके पीछे बहुत बड़ी गहराई है। अगर आप इसको समझ सको तो। शासकीय नौकरी में आप चोरी करना सीखते हो का तात्पर्य है अगर आप शासकीय सेवा में रहते हुए आपके पास अपनी तनख्वाह या आय से अधिक संपत्ति अर्जित कर लेते हो तो इसका मतलब आपने कहीं न कहीं चोरी की है। अगर आपके पास आपकी संपत्ति का जायज विवरण नहीं है तो इसका मतलब चोरी करना सीख गए हो। कहने का तात्पर्य है कि अगर आप 20000 रूपये प्रति माह की तनखा प्राप्त करते हुए बहुत ही कम समय पर लाखों की संपत्ति बना लेते हैं और आपके पास आय का स्त्रोत केवल आपकी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं है तो इसका मतलब यह हुआ कि आप शासकीय सेवा करते हुए अनैतिक स्रोत से भी आय अर्जित करना सीख गए जिसको चोरी ही कहेंगे। हां अगर आप अपनी आय के एक ही स्रोत में अपना जीवन यापन कर लेते हैं, अपने घर परिवार संबंधी जरूरत की सभी आवश्यकताओं की पूर्णता कर लेते हैं तो शासकीय नौकरी ज्यादा बेहतर है। अब आते हैं प्राइवेट सेक्टर की नौकरी पर। प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में आप खुद को बेचते हैं अर्थात आप अपने समय को बेचते हैं अपने कौशल को बेचते हैं अपनी कला को बेचते हैं।

आप जिस भी संस्था, जिस भी कंपनी के लिए काम करते हैं, अगर वहां आपको 20000 रुपए प्रति माह तनख्वाह मिलती है तो वह संस्था आपसे महीने में 60000 रूपये प्रति माह का काम भी लेती हैं। अर्थात वह आपसे 40,000 की आमदनी करता है तब जाकर आपको 20000 की सैलरी देती है। अब अगर मुझसे मेरी व्यक्तिगत राय पूछो तो मैं कहूंगा हर वह काम जो ईमानदारी से किया जाए, जिससे आपका आपके परिवार का लालन-पालन सही तरीके से हो सके, जिसकी आपको वास्तव में आवश्यकता हो वह काम सबसे उच्च है और बेहतर है, चाहे वह नौकरी हो, स्वरोजगार हो या कोई खुद का व्यवसाय हो। छोटा हो या बड़ा हो लेकिन अगर आप नौकरी करते हो, शासकीय नौकरी करते हो, और अपनी आय से अधिक संपत्ति अर्जित करते हो अर्थात आप शसकीय सेवा करते हुए चोरी करना सीख गए हैं और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करते हैं और अपने आप को बेचना सीख गए हैं तो दोस्तों, जिसमें आपको खुशी मिलती है जिसमें आपको सुकून मिलता है वह काम बेहतर है। अगर शासकीय सेवा करते हुए आप आय से अधिक संपत्ति अर्जित कर लिए हैं और रात को सोते समय आपको सही ढंग से नींद ना आए, जब आप नौकरी करते हुए कार्यालय से अपने घर जाएं और अपने बच्चों से या परिवार के अन्य सदस्यों से नजर ना मिला पायें, आपके चेहरे पर खुशी ना झलके तो उस शासकीय नौकरी का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। आपके जीवन में आपको जितनी भी आवश्यकता है, धन की, भोजन की, संसाधन की, अगर उसी के लिए काम किया जाए तो, आप की तनखा आपके लिए पर्याप्त है।
आप जो नौकरी/रोजगार/कार्य कर रहे हैं और उससे प्राप्त तनख्वाह या आमदनी से आपके सिर पर छत है, तन पर कपडे हैं, पेट में भोजन पहुच रहा है, बीमार पड़ने पर इलाज करवा पा रहे हैं तथा अपने बच्चो को सही शिक्षा दे पा रहे हैं और इन सब के अलावा रात में सुकून की नींद ले पा रहे हैं तो सच मानिए आपका कार्य बेहतर से भी बेहतर है। कौन, कैसे और क्या बेहतर के बहस में मत पड़िये, जिस क्षेत्र में जिस कार्य में कार्यरत हों उसी को ईमानदारी से कीजिये यकीन मानिये आप और आपका कार्य भी सुंदर है और यह दुनिया भी। सारांश रूप में कहा जा सकता है कि शासकीय या निजी क्षेत्र की नौकरी या फिर स्वयं का व्यवसाय हो या स्वरोजगार, जीवन यापन, परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ईमानदारी से किए गए कार्यों के माध्यम से आप जिस भी तरीके से आय अर्जित करते हों, मन में सुकून की प्राप्ति हो रही हो, वही कार्य बेहतर है और उसी को सच्चे मन से कर्तव्य बोधपूर्वक आपके द्वारा की गई सच्ची पूजा है। क्योंकि लालसा और आवश्यकताओं का कोई अंत नहीं होता। जितनी ज्यादा लालसाएं होंगी, आवश्यकताएं भी उसी अनुसार अपने पैर फैलाएंगी जिसका परिणाम होगा, आप मानसिक सुकुन से दूर होते जाएंगे। आपकी अपनी क्षमता और काबिलियत के अनुरूप आपको प्राप्त हो रही आय के अनुसार ही आवश्यकताओं को सीमित रखने में ही मानसिक सुकून की प्राप्ति संभव है। और मेरा ऐसा मानना है कि मानसिक सुकून से बढ़कर कुछ भी नहीं।

बलवंत सिंह खन्ना
स्वतन्त्र लेखक, कहानीकार

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