बिलकिस बानो मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 में से 10 दोषी पेरोल, छुट्टी और अस्थायी जमानत पर एक हज़ार दिनों से ज़्यादा बाहर रहे थे. मामले में 11वां दोषी 998 दिनों तक जेल से बाहर रहा था.
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने गुजरात सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे के हवाले से बताया है कि 11 दोषियों में से एक रमेश चांदना 1576 दिनों के लिए पेरोल और छुट्टी पर जेल से बाहर थे.
छोटी अवधि की सज़ा के लिए आमतौर पर अधिकतम एक महीने की पेरोल दी जाती है. वहीं, लंबी अवधि की सजा में एक तय समय जेल में बिताने के बाद अधिकतम 14 दिनों की छुट्टी मिलती है.
साल 2002 दंगों में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
इन सभी दोषियों को इस साल 15 अगस्त को अच्छे आचरण के कारण गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था. सरकार के इस फ़ैसले की काफ़ी आलोचना भी हुई थी.
गुजरात सरकार ने अपने फ़ैसले का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफ़नामे में बताया कि सभी दोषियों ने 14 साल या इससे अधिक समय जेल में बिताया और उनके अच्छे व्यवहार को देखते हुए रिहाई दी गई है. साथ ही ये फ़ैसला केंद्र सरकार की सहमति के बाद लिया गया था.
हालांकि, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई स्पेशल ब्रांच मुंबई और स्पेशल सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे’ ने बीते साल मार्च में कैदियों की रिहाई का विरोध किया था.
दोषियों ने जो समय जेल से बाहर बिताया है वो करीब तीन साल से ज़्यादा का है. 58 साल के रमेश चांदना ने करीब चार साल बाहर बिताए हैं. वहीं, जनवरी और जून 2015 के बीच 14 दिनों की छुट्टी 136 दिनों में बदल गई थी. उन्हें जेल वापस लौटने में 122 दिनों की देरी हो गई थी.
हलफ़नामे के मुताबिक सभी 11 दोषियों को औसत 1176 दिनों तक बाहर रहने की इजाजत मिली थी. 58 साल के राजूभाई सोनी 1348 दिनों तक छुट्टियों पर थे. सितंबर 2013 से जुलाई 2014 के बीच 197 दिनों की देरी के बाद आत्मसमर्पण किया था. नासिक जेल से उनकी 90 दिनों की पेरोल 287 दिनों की हो गई थी.
सभी दोषियों में सबसे उम्रदराज 65 साल के जसवंत नाई 1169 दिनों के लिए बाहर थे. साल 2015 में उन्होंने नासिक जेल में 75 दिन देरी से आत्मसमर्पण किया था.
वहीं, इस मामले पर राजनीति गरमा गई है. पहले दोषियों की रिहाई में केंद्र सरकार की मंज़ूरी पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए थे. हालांकि, केंद्र सरकार ने इस क़ानूनी प्रक्रिया के तहत लिया गया फ़ैसला बताया है.
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