हाल के दिनों में धार्मिक सभाओं के दौरान अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल की गई अभद्र भाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता व्यक्त की है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को जल्द कार्रवाई करने के लिए कहा है.
धार्मिक भड़काऊ भाषणों पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि धर्म के नाम पर हम किस स्तर तक पहुंच गए हैं.
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, “हम कहां पहुंच गए हैं? धर्म को कहां लेकर आ गए हैं?”
“हाल ही में कुछ धार्मिक सभाओं के दौरान अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ दिए गए कुछ बयानों और अभद्र भाषा पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “बयान निश्चित रूप से एक ऐसे देश के लिए बहुत चौंकाने वाले हैं जो धर्म के प्रति न्यूट्रल है.”
याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी
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सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ किए गए आपत्तिजनक भाषणों को रोकने के लिए तत्काल निर्देश, हस्तक्षेप या आदेश देने की मांग की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “एक देश जो लोकतंत्र और धर्म के मामले में न्यूट्रल है, आप कह रहे हैं कि आईपीसी के तहत कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन यह एक समुदाय के ख़िलाफ़ है. यह दुखद है.”
याचिकाकर्ता अब्दुल्ला की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने हाल ही की एक ‘हिंदू सभा’ का एक उदाहरण दिया, जहां पश्चिमी दिल्ली के बीजेपी सांसद परवेश वर्मा ने ‘इन लोगों’ के ‘पूर्ण बहिष्कार’ का आह्वान किया था, उनका इशारा मुसलमानों की तरफ़ था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा
नफ़रती भाषणों पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों से कहा वो ख़ुद से संज्ञान लेकर कार्रवाई करें.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों से कहा कि वो भारत की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को बरक़रार रखने का प्रयास करें.
याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ये बात कही.
याचिका में मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक भाषणों को रोकने के लिए तत्काल निर्देश देने की मांग की गई थी.
हाल ही में बीजेपी सांसद परवेश वर्मा ने एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक भाषण देते हुए उनके पूर्ण बहिष्कार की मांग की थी.
संबंधित सरकारों को आदेश
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “प्रतिवादी (अधिकारी) अभियुक्त के धर्म को देखे बिना इस संबंध में अपने अधीन अधिकारियों को निर्देश जारी करेंगे, ताकि भारत की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को बरकरार रखा जा सके.”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि संबंधित सरकारों और पुलिस अधिकारियों को आपत्तिजनक भाषणों के मामलों में स्वत: कार्रवाई करनी चाहिए और उन्हें औपचारिक शिकायत दर्ज होने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए.
जिस तरह से हेट स्पीच दी जा रही है, उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने, आश्चर्य व्यक्त किया. कोर्ट ने कहा, “देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए इस तरह की कार्रवाई की ज़रूरी है.”
याचिकाकर्ता अब्दुल्ला ने कहा कि नफ़रत भरे भाषण देने में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के सदस्यों की भागीदारी से मुस्लिम समुदाय ‘आतंकित’ है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस को शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा किए बिना राज्य में अभद्र भाषा की किसी भी घटना के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेने का निर्देश दिया है.
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कार्रवाई नहीं हुई तो मानी जाएगी अवमानना
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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पुलिस और अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई पर्याप्त नहीं है, तो यह संबंधित अधिकारी या व्यक्ति के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना के तहत देखा जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के सांसद परवेश वर्मा और दूसरे लोगों द्वारा 9 अक्टूबर को दिल्ली में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दिए गए कथित आपत्तिजनक भाषणों पर दिल्ली पुलिस से कार्रवाई रिपोर्ट भी मांगी है.
सिब्बल ने तर्क दिया कि उन्होंने कई शिकायतें दर्ज की हैं लेकिन न्यायालय या प्रशासन कभी कार्रवाई नहीं करता. सिर्फ़ स्टेटस रिपोर्ट मांगी जाती है और ये लोग अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहते हैं.
सिब्बल ने कार्रवाई की मांग करते हुए कहा, “प्रशासन कुछ नहीं करता. हम कोर्ट आते रहते हैं.”
सांसद परवेश वर्मा के कथित भाषणों को कोर्ट ने पढ़ा जिनमें से एक में लिखा था, “अगर जरूरत पड़ी, तो हम उनका गला काट देंगे.” कोर्ट ने कहा कि ये बहुत दुखद है.
सिब्बल ने इसके बाद कहा, “हां, वह और उनकी टीम. वह बीजेपी के सांसद हैं.”
सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि “यह सुनिश्चित करने के लिए कि इसे न दोहराया जाए, हमें एक एसआईटी की ज़रूरत है.”
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