Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम मुख्यालय में थम नही रहा संविदा नियुक्ति का खेल

अलताफ हुसैन की कलम से ✍

रायपुर/ एक कहावत बहुत ज्यादा मशहूर है …कहां राजा भोज …कहां गंगू तेली.. यहां किसी वर्ग समुदाय की भावना को आहत करने उक्त शब्द का प्रयोग नही किया गया बल्कि. प्रासंगिक वश शब्द को अक्षरशः सत्य साबित कर दिया प्रदेश के छग राज्य वन विकास निगम के वित्तीय प्रबंधक भोजराज जैन ने जो छग राज्य वन विकास निगम में लंबे सेवाकाल से सेवानिवृत्त होने के पश्चात भी अपनी संविदा नियुक्ति करवा कर अतिरिक्त लाभ अर्जित कर रहे है यथा नाम तथा गुण वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए न एक छोटे से कर्मचारी पद से सेवा परंभ करने वाले जैन साहब आज वस्तुतः गंगू तेली से भोजराज बन गए तथा संपूर्ण छग वन विकास निगम मुख्यालय सहित प्रदेश की वित्तीय बागडोर अपने हाथों में संभाले हुए है उनके द्वारा इस सेवाकाल में अनेक उपलब्धि प्राप्त की है राजेन्द्र नगर के पाश कालोनी में दो बंगले के अलावा अन्य क्षेत्रों में आलीशान बंगले तैयार करवाए है यह बात अलग है कि उसे अपने भ्राता श्री के होने की बात सार्वजनिक किया हुआ है यही नही इसके अलावा भी अनेक अचल संपतियां उन्होंने बनाई है ऐसी चर्चा विभाग कर्मचारियों के मध्य प्रचलित है फिर चल अचल संपति कितनी होगी यह तो अभी स्पष्ट नही है उल्लेखनीय है मध्यप्रदेश शासन काल से एक छोटे से पद से अपनी सेवा प्रारंभ करने वाले भोजराज जैन आज छग राज्य वन विकास निगम के वित्तीय आर्थिक प्रबन्धन का मूल स्तंभ है जिनके सेवा काल मे अनेक गड़बड़,घोटाले और भ्रष्टाचार हुए है अब चाहे वह ऑक्सिजोन निर्माण हो या प्रदेश भर के प्लांटेशन लगने वाली सामग्री, दवा खाद क्रय अथवा निर्माण कार्य ही क्यों न हो बगैर उनके राशि वितरण के कोई भी निगम का कार्य संपादित नही होता यही वजह है कि दूध देने वाली कामधेनु गाय को कोई छोड़ना नही चाहता और उनके सेवा निवृत्त पश्चात भी उन्हें पुनः संविदा नियुक्ति देकर उन्हें फिर से वितीय प्रबन्धन का दायित्व सौंपा दिया गया आज वे समस्त शासकीय लाभ उठा रहे है जिसका अधिकार उन अधिकारियों का बनता है जो अपने प्रमोशन की उम्मीद लगाए सेवारत जूनियर अधिकारी है गौर तलब है कि छग राज्य वन विकास निगम में बहुत से ऐसे जूनियर अधिकारी भी अपनी वरिष्ठता क्रमोन्नति की लाइन में लगे हुए है मगर उन सब को केवल निराशा ही हाथ लग रही है तथा वित्तीय प्रबंधन का संपूर्ण दायित्व उन्हें है सौंप दिया गया अब इसके पीछे क्या कारण है छानबीन करने पर ज्ञात हुआ कि सेवानिवृत होने के पूर्व ही इसी वर्ष किए गए विभागीय डीपीसी में छग राज्य वन विकास निगम के माननीय अध्यक्ष देवेंद्र बहादुर सिंह एवं छग राज्य वन विकास निगम के प्रबंध संचालक पी सी पांडे साहब ने बड़ी चतूराई से वित्त प्रबन्धक भोजराज जैन, कोठारे साहब एवं कोरबा में पिल्लई साहब सहित एच. आर नेताम जो मंडल प्रबन्धक पद पर नियुक्त किए गए है उन्हें सेवा निवृत्त के पूर्व पुनः संविदा हेतु नाम प्रस्तावित कर दिया जबकि बताया जाता है कि मंडल प्रबन्धक पद हेतु दो वर्ष की ट्रेनिंग एवं अन्य जानकारी आवश्यक होता है फिर भी उनकी नियुक्ति कर दी गई तथा उन्हें मुख्यालय ही अटैच कर दिया गया इस सिलसिले में कार्यालय में वर्षों से अपनी क्रमोन्नति की बाट जोहने वाले अधिकारी भी मौजूद है परन्तु उन्हें किसी प्रकार की क्रमोन्नति न देना इसके पीछे एक बहुत बड़े लेनदेन सहित कमीशन खोरी की बू आ रही है वही छग राज्य वन विकास निगम से पूर्व अनुभवी कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार सेवानिवृत अधिकारी भी मौजूद है जो संविदा हेतु आवेदन दिए हुए है परन्तु उन सब को अनदेखा कर वित्तीय प्रबन्धक भोजराज जैन तथा कोठारे साहब,एवं कोरबा से पिल्लई एवं एच. आर. नेताम जैसे अधिकारीयों की नियुक्ति करना एक बहुत बड़े षड्यंत्र रचने के समान माना जा रहा है छग राज्य वन विकास निगम के प्रबन्ध संचालक पी सी पांडे साहब की छग राज्य वन विकास निगम मे नियुक्ति के समय कर्मचारी यह कयास लगा रहे थे कि उनकी नियुक्ति से छग राज्य वन विकास निगम की बदतर होती आर्थिक दिशा और दशा में कुछ सुधार होगा तथा कर्मचारियों के विसंगतियां दूर कर उन्हें राहत पहुंचाई जाएगी परन्तु उनके पदस्थ होते ही अल्प वर्षों में ही छग राज्य वन विकास निगम की आर्थिक दशा में सुधार तो दूर वह और अत्यंत दयनीय स्थिति में पहुंच गया पूर्व अधिकारियों की अनवरत भ्रष्ट कार्यशैली की वजह से बताया तो यह जा रहा था कि वर्तमान में निगम मुख्यालय आर्थिक कमी के चलते निगम में वर्षों से संचित की गई राशि (एफ डी) तोड़कर राशि की व्यवस्था किया गया तथा व्यवस्था को संभाला गया अर्थात जमा पूंजी भी निवेश कर दिया गया अब उसकी भरपाई कहां तक होती है यह अब देखना होगा आर्थिक विपन्नता की ऐसी परिस्थिति में भी छग राज्य वन विकास निगम मुख्यालय द्वारा कंपनी सिकरेट्री (चीफ सिकरेट्री रेवेन्यू) की नियुक्ति अब तक नही की गई इसके पीछे का कारण यही माना जा रहा है कि यदि कंपनी सिकरेट्री की नियुक्ति होने से संपूर्ण वित्तीय अधिकार उपरोक्त पदस्थ अधिकारियों से छीन जाएंगे तथा निगम में गड़बड़ घोटाला एवं भ्रष्टाचार करने के समस्त मार्ग अवरुद्ध हो जाएंगे यही वजह है कि मुख्यालय वन विकास निगम में किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति न करके संविदा नियुक्ति का यह खेल खेला गया तथा अपने चहेतों को ही पुनः अवसर प्रदान कर भ्रष्टाचार घोटाले का मार्ग प्रशस्त किया गया है चर्चा यह भी आम है कि संविदा नियुक्ति प्राप्त अधिकारियों कर्मचारियों को वे समस्त पूरी वेतन सहित अन्य सुविधाएं,दिया जा रहा है जो एक सेवारत अधिकारियों को उक्त पोस्ट में रहते हुए दिया जाता है जबकि वन विकास निगम में लंबे समय से अधिकारियों और कर्मचारियों का टोटा होना भी बताया जा रहा है इसके बावजूद नवीन भर्ती भी नही किया जाता केवल छोटे अनुभव हीन,कर्मचारियों, अधिकारियों को अतिरिक्त प्रभार नियुक्ति देकर सीनियर अधिकारियों को अपने जूनियर के हाथ के नीचे कार्य करने विवश होना पड़ रहा है यह स्थिति सिर्फ वन विकास निगम मुख्यालय में ही नही बल्कि प्रदेश भर के आठ से नौ परियोजना मंडल कार्यालयों में सहजता से देखी जा सकती है जहां जूनियर फॉरेस्ट गार्ड को रेंजर का अतिरिक्त प्रभार देकर अपने मन मुताबिक गड़बड़ घोटाला और भ्रष्टाचार करने का अवसर दिया जा रहा है एक प्रकार से डमी अधिकारियों के रूप में इनका उपयोग केवल सही हस्ताक्षर हेतु किया जाता है बाकी समस्त दूध मलाई ऊपर बैठे अधिकारियों को प्राप्त होता है तथा इन्हें तो छाछ भी नसीब नही होता रेंजर को उप वन मंडल प्रबन्धक तथा जूनियर लेखा अधिकारी को प्रबन्धक लेखापाल के पद सौंप कर दस्तावेजों में कूटरचना कर मनमाने तरीके से खुलकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है जिसका कोई पुरसाने हाल नही है तथा स्थिति … सईंया भयो कोतवाल तो फिर डर काहे का… वाली निर्मित हो गई है न ही गड़बड़ घोटाला भ्रष्टाचार करने पर इन्हें कोई बोलने वाला और न ही कोई इन्हें रोकने वाला वही नियुक्ति के नाम पर दोहरा लाभ सो अलग मिल जाता है ज्ञातव्य हो कि सब संविदा और अतिरिक्त प्रभारी नियुक्तियां एक बड़ी राशि लेकर की जाती है जो ऐसे पैसों की सीढ़ी से ऊंचे पद में पहुंचते है वे अपने ऊपर बैठे आका की हुक्म बरदारी और तीमारदारी में समर्पित भाव से सेवा करता है और अधिकारियों को अर्थ लाभ पहुंचाते रहता है जिसका ही परिणाम है कि छग राज्य वन विकास निगम के कोष खाली होते जा रहे है और ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों के पेट और वेट दोनों बढ़ रहे है तथा खाली कोष होने की वजह से योजनाओं पर विपरीत असर तो दिखता ही है साथ ही प्रदेश सरकार को भी लाभांश राशि देने में अगलबगल देखना पड़ता है यही नही कोषालय में आर्थिक निम्नता के चलते दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को वेतन के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहा है वही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों द्वारा जब इस संदर्भ में आक्रोश व्यक्त करते हुए कहते है कि संविदा सहित अन्य अतिरिक्त प्रभारी नियुक्तियों के लिए छग राज्य वन विकास निगम के पास पैसे है तथा दैनिक वेतन भोगियों को वेतन सहित अन्य बड़ी हुई राशि देने में निगम को परेशानी है इसका आशय स्पष्ट है कि संविदा नियुक्ति एवं प्रभारी नियुक्ति खेल में ऊपर बैठे अधिकारियों कर्मचारियों के आर्थिक लाभ मिलता है तथा दैनिक वेतन भोगी कर्मियों को राशि देना पड़ता है इसलिए भी दैनिक वेतन भोगी जो अपने जीवन का आधा समय व्यतीत कर चुके है इनमें कुछ तो रिटायरमेंट होने के कागार पर है उन्हें आज पर्यंत नियमित नही किया गया है केवल इसी आशा पर शेष सेवाकाल व्यतीत कर रहे है कि आज नही तो कल वे अवश्य नियमित होंगे उल्लेखनीय है कि नियमितीकरण के संबन्ध में प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों से वादा किया था कि उनकी सरकार आते ही उन्हें नियमितीकरण किया जाएगा परन्तु ढाई वर्ष व्यतीत होने के बावजूद सरकार अपना वायदा नही निभा रही है केवल औपचारिक रूप से जांच कमेटी बना दिया गया जो अब तक निष्क्रिय है वही प्रदेश दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के महामंत्री ने नियमितीकरण को लेकर माननीय वन मंत्री से लेकर अध्यक्ष वन विकास निगम एवं प्रबंध संचालक को ज्ञापन सौंप कर चर्चा और अन्य संबंधित विभागों में पत्राचार कर वस्तुस्थिति से अवगत किया जाने की बात कही उन्हें प्रबन्ध संचालक एवं अध्यक्ष वन विकास निगम द्वारा यह आश्वासन दिया गया था कि इस विषय को मीटिंग में प्रस्तावित करेंगे परन्तु दैनिक वेतनभोगी कर्मियों की समस्या को रखना तो दूर उसे एक किनारे रख केवल संविदा नियुक्तियो पर ही अधिक ध्यान दिया गया तथा श्री भोजराज जैन, कोठारे, पिल्लई एवं एच. आर. नेताम के नामों को हरी झंडी दे दी गई जबकि अन्य प्रस्तावित दस्तावेजों के लिफाफे तक नही खोले गए इस बात को लेकर भी मुख्यालय एवं कार्यालयों में कर्मचारियों के मध्य कानाफूसी जोरो पर है कि नेताम साहब को मंडल प्रबंधक पद पर नियुक्ति दी गई परन्तु उन्हें मुख्यलय में ही पदस्थ कर सेवा ली जा रही है जो समझ से परे है जबकि उन्हें गाड़ी से लेकर अन्य सुविधाओं से पूरा लाभ दिया जा रहा है बताया यह भी जा रहा है कि कोरबा से डिप्टी रेंजर से सफर तय करने वाले नेताम साहब बिलासपुर में डीडीएम फिर वही आज मुख्यालय की ड्योढ़ी पहुंच गए कोरबा में रहते हुए इन्होंने भी बहुत राशि गबन घोटाला कर अर्जित की है उन्ही पैसों की सीढ़ी पर आज यहां तक पहुंचे है यही नही पूर्व सेवानिवृत्त एम डी. राजेश गोवर्धन साहब आज भी विभागीय लाभ अब तक उठा रहे है उनके यहां ऐसे भी कर्मचारी कार्यरत है जो वेतन तो छग राज्य वन विकास निगम मुख्यालय से लेते है परन्तु चाकरी सेवानिवृत्त अधिकारियों के यहां करते है जिनमे पूर्व अधिकारी राजेश गोवर्धन,दास साहब सहित अन्य अधिकारियों के नाम प्रमुखता से सामने आए है अब वर्तमान प्रबन्ध संचालक पी सी पांडे साहब बताए कि यह राशि तथा ड्राइव्हर का वेतन किस अधिकार से सेवा निवृत्त अधिकारियों के यहां कार्य करने वाले कर्मचारियों को दिया जाता है बार नवापारा मंडल के रेंजर ऋषि शर्मा द्वारा ऐसे अनेक बिल बाउचर के माध्यम से इसका भुगतान अनवरत करते आ रहे है कर्मचारियों को प्रदाय की जाने वाली राशि क्या वे सेवानिवृत अधिकारी अपनी जेब से करते है या रेंजर ऋषि शर्मा द्वारा बिल बाउचर के माध्यम से सरकारी राशि मे यह एडजस्ट किया जा रहा है जो नियम विरुद्ध है संविदा और अतिरिक्त प्रभार नियुक्ति का यह खेल बहुत वर्षों से चल रहा है जिसका मास्टर माइंड भोजराज जैन को माना जा रहा है बताया जाता है कि उनकी वर्तमान आवक प्रति माह लाखों रुपये है वही बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में अपनी पहुंच रखने वाले श्री जैन अभी कुछ सहायक लेखाधिकारी की संविदा नियुक्ति में लगे हुए है उन्हें संपूर्ण ज्ञान पूर्व आई एफ एस अधिकारी राजेश गोवर्धन से प्राप्त हो रहा है तभी तो सेवा निवृत्त अधिकारी की सेवा सुश्रुषा सरकारी पैसे और कर्मचारियों से अनवरत जारी है लेकिन सरकारी राशि का यह दुरुपयोग पर भी अंकुश लगाना अनिवार्य है अब सवाल यह उठता है कि ऐसी अनियमितताओ पर प्रतिबंध लगाए तो कौन लगाए क्योंकि छग राज्य वन विकास निगम की इस काजल की काली कोठरी में जो भी अधिकारी कर्मचारी आता है उसके सफेद दामन में दाग तो लगना स्वभाविक है फिर भ्रष्टासुरों की चौकड़ी केवल निगम मुख्यालय में ही नही बल्कि प्रदेश भर के समस्त परियोजना मंडल कार्यालय में संविदा, अतिरिक्त प्रभारी नियुक्ति के खेल हो रहे है इससे न ही वन विकास निगम का मूल कार्य ठीक से संपादित हो रहा है बल्कि ऐसे भ्रष्टासुरों की नियुक्ति कर वन विकास निगम को पूरी तरह खोखला करने में जुटे है जो शनैः शनैः छग वन विकास निगम को दीमक की भांति पूरी तरह खोखला कर चट करने में लगे है पूर्व अधिकारियों और जानकारों का मत है कि यदि वन विकास निगम में यही स्थिति चलती रही तो एक दिन छग राज्य वन विकास निगम में कहीं ताला न लग जाए।

We have constituted 29 new tehsils and four new sub-divisions in the state for convenience of people: Chief Minister Bhupesh

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