छत्तीसगढ़ी राजभाखा दिवस बिसेस
तरुण कौशिक, संपादक, सर्वव्यापी
तुमन अंतस ले बताहा के जब रईपुर , भेलई , बेलासपुर जईसे सहर मँ पढ़े लँ , समान बिसाये ल, बुता करे ल जाथा त तुमन काबर लगथे कि इहा लँ हमन ल छत्तीसगढ़ी नई गोठियाना चाही , अगर मय छत्तीसगढ़ी गोठिया देहु त मोला अढ़हा झन समझ लेवय । जबकि ये उप्पर के सहर मन छत्तीसगढ़ के ही सहर आंय , ओई छत्तीसगढ़ जेखर सिरजे के प्रमुख अधार ए छत्तीसगढ़ी भासा ही हर आंय । अवईया 28 नवम्बर के छत्तीसगढ़ी लॅ ए राज्य के राजभासा बने 13 बछर पुरा हो जाही त हमन ल ए चिन्तन खच्चित करना चाही कि हमरे सहर, हमरे राज्य , हमरे भासा तभो ले हमन छत्तीसगढ़ी बोले लॅ काबर लजाथन ? आखिर ए हीनभावना के सोच कईसे आईच्च ? ए जम्मों सवाल के एके जवाब हे छत्तीसगढ़ी मँ पढ़ई लिखई नई होना !!
असल मँ अविभाजित मधपरदेस के राजकीय भासा हिन्दी रहिच्च फेर जब छग राज सिरजिस त कायदा ले अऊ संगे संग संविधान सम्मत घलो ओई बछर ले इहा के हर चीज के छत्तीसगढ़ीकरन हो जाना रहिच्च जईसे ईहा के राजकाज के भासा , पढ़ई लिखई के भासा , सरकारी बोर्ड , सड़क के आरो देवईया बोर्ड , थाना , कोर्ट कचहरी के भासा छत्तीसगढ़ी फेर एहर तत्कालिन छत्तीसगढ़िया समाज के भासाई ताकत के प्रति उदासीनता ही आंय जऊंन अईसनहा नई हो पाईच्च जेखर भोगना लँ आम छत्तीसगढ़िया हर आज भोगत हे।
अविभाजित मधपरदेस के बेरा ले इहां पढ़ई लिखई के भासा हिन्दी रहिच्च , माने पढ़े लिखे के भासा हिन्दी अऊ अनपढ़ या कम पढ़े लिखे के भासा छत्तीसगढ़ी । धीरे धीरे अनपढ़ छत्तीसगढ़िया के मन मँ ए भाव भरे गईच्च कि देखव मय पढ़े लिखे हव त मोला हिन्दी आथे तुमन पढ़े लिखे नई हव त तुमन ल हिन्दी नई आवय अऊ धीरे धीरे अईसनहे माहोल बनगे कि छत्तीसगढ़ी मतलब गँवार के भासा ! त सारा खेल ओ भासा के सिक्छा ले जुड़े के हवय
कोनो भी समाज के मुल चिन्हारी होथे ओखर भासा फेर भासा ही हमर सिरा जाही त हमर पहिचाने का रह जाही ? दुर्भाग्य ए हवय कि अईसनहा समान्य मनोबिग्यान ल जानते हुये भी राज्य सिरजन के कोरी बछर बाद भी छत्तीसगढ़िया समाज हर अपन भासा के प्रति उदासीन बने हुये हवय अऊ उल्टा हमन अपन सरकार ल दोस देथन , अरे भाई बिना रोये तो महतारी घलो हर अपन लईका लँ दुध नई पीयावय , ओईसनहे हमन सरकार सो सवाल काबर नई करन ? हमर एहर मुद्दा आजतक काबर नई बनिच्च कि जम्मों राज्य असन छत्तीसगढ़ मँ कम से कम सुरुवाती सिक्छा के माध्यम ईहा के महतारी भासा , घर के भासा छत्तीसगढ़ी , गोन्डी , कुडुख होवय । काहे कि जेन दिन छत्तीसगढ़ी हर पढ़ई लिखई के भासा बन जाही ओ दिन ले सब छत्तीसगढ़ी ल सम्मान के नजर ले देखही, इतिहास गवाह हे कि बिना पढ़ई लिखई वाला भासा कभु न कभु नंदायेच्च खोजथे। त होना ए चाहिए कि छत्तीसगढ़ी हर मैदानी छत्तीसगढ़ मँ कक्छा 1 ले 5 तक पराथमिक सिक्छा के माधियम बनय ईहा जम्मों स्कूल मँ कक्छा 6 ले तक 10 तक अनिवार्य बिसय घलो बनय ।
काहे कि छत्तीसगढ़ी मँ पढ़ई लिखई नई होय के सेतिर ही छत्तीसगढ़ी ले छत्तीसगढ़िया छिटक गये हवय फेर जेन दिन छत्तीसगढ़ी हर राज्य के बुनियादी सिक्छा के माधियम बन जाही त आने वाला 15-20 बछर मँ एक अईसे छत्तीसगढ़िया समाज के सिरजन हो जाही जऊंन अपन भासा अस्मिता , अऊ आत्मविस्वास ले सरोबार रही, छत्तीसगढ़ी हर छत्तीसगढ़िया लँ जोड़े के बुता करही अऊ इतिहास गवाह हवय कि अईसे जोड़ माने संगठित समाज के सोसन कोई नई कर सकय ।
आज हमन अपन भासाई ताकत ल ओईसनहा न समझ पायेन जईसहा हमर परोसी राज्य समेत पुरा भारत हर समझिच्च तेखने भोगना ल आज भोगत हन कि हमन अपने भासा बर हीनभावना भावना भर डारेन।
छग सरकार ल ए गंभीर स्वाभिमानी मुद्दा मँ तुरते चेत करना चाही काबर कि एहर हमर संविधानिक , कानुनी सिक्छा अधिकार तो आंय ही संगे संग नवा सिक्छा नीति घलो हर कहत हे ।
कई झन हमरे समाज के लोगन मन के सोच हवय कि लईका हर छत्तीसगढ़ी पड़ही त पछुवा जाही ! फेर ईमन बतावय कि का बंगाली , ओडिया, तेलुगु , मराठी मन पिछवा गईच्च काबर कि इमन अपन महतारी भासा म ही सिक्छा पाथे , त हमन कईसे पछुवा जाबो । दरअसल ए सोच हर हमर पचासों साल ले चलत आवत भासाई गुलामी के सोच के नतीजा आंय कि हमन हिन्दी के आड़ मँ अपन महतारी भासा ल हमेसा दोयम दरजा मँ रखेन , ए लंग हिन्दी के विरोध के बाते नई हे । हिन्दी मँ हमन ल गरब हे फेर हमर हमर महतारी भासा छत्तीसगढ़ी लs ही चपक दिही तेन हर स्वीकार नई हे।
Add Comment