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हेल्थ कार्ड क्रांतिकारी हो सकता है

हेल्थ कार्ड

हम धीरे-धीरे पश्चिमी तौर-तरीकों को अपनाते जा रहे हैं. हर प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाओं को सहज और आसान बनाने के ऐसे ही उपाय हमारे देश में भी हो रहे हैं. हर चीज को एक-दूसरे के साथ जोड़ते जा रहे हैं. अभी आधार कार्ड से पैन कार्ड, मोबाइल नंबर, बैंक खाता, ड्राइविंग लाइसेंस आदि जरूरी दस्तावेजों को जोड़ा जा रहा है. बीते कुछ वर्षों से धीरे-धीरे यह बदलाव हो रहा है. उसी तरह से अब हेल्थ कार्ड को जोड़ने की कवायद हो रही है. ऐसा नहीं कि यह कोई नयी चीज है, बस उसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा रहा है और यह बहुत ज्यादा जरूरी भी है. उदाहरण के तौर पर देखें, तो जैसे हमारे पास कोई मरीज आया और उसका इलाज किया गया. कुछ वर्षों वह जब वह दोबारा आयेगा, तो उसकी पुनः जांच करनी पड़ेगी और मेडिकल हिस्ट्री लेनी होगी. इसमें समय और पैसा दोनों खर्च होगा. लेकिन, हेल्थ कार्ड के माध्यम से यह जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जायेगी, यहां तक कि अगर मरीज दूसरे डॉक्टर के पास भी जाता है, तो उसे पहले वाले डॉक्टर के इलाज की जानकारी मिल जायेगी. इसके आने के बाद डॉक्टर को इलाज से जुड़ी जानकारी डिजिटली दर्ज करनी होगी. होम्योपैथी या आयुर्वेदिक डॉक्टर, जो एलौपैथी दवाई नहीं लिख सकते हैं, उन्हें भी इससे जुड़ी जानकारी आसानी से प्राप्त हो जायेगी.
डिजिटल हेल्थ कार्ड से कब-कब क्या हुआ, वह प्राप्त करना आसान होगा. अब किसी के साथ बचपन में क्या हुआ था, वह किसी को याद नहीं रहता, अगर याद भी है, तो वह बताना आसान नहीं होगा. लेकिन, अगर आपके पास डिजिटल हेल्थ कार्ड है, तो डॉक्टर को केवल एक नंबर मात्र से ही ब्योरा मिल जायेगा. शायद यह भी अन्य दस्तावेजों की तरह ही आधार से लिंक हो जायेगा. विशेषकर, गरीबों के लिए यह योजना अधिक फायदेमंद होगी. भारत में यह बिल्कुल क्रांतिकारी बदलाव की तरह होगा. इसके तहत सब कुछ देश के लिए करना होगा.
अभी डॉक्टर और मरीज का संबंध चेहरे को देखकर यानी संपर्क और व्यवहार से चलता था. जहां डिजिटल रिकॉर्ड दर्ज करना होगा, वहां डॉक्टर की जिम्मेदारी अधिक होगी. जब डॉक्टर कंप्यूटर पर दर्ज करेगा, तो उसका मरीज के साथ इंटरेक्शन कम हो जायेगा. आप इस बात पर ध्यान देंगे कि कहीं कोई गलती न हो जाये. दूसरा, कंप्यूटर पर रिकॉर्ड दर्ज करने में समय लगेगा. इससे मरीज का खर्च थोड़ा बढ़ जायेगा. तीसरा नुकसान यह होगा कि अब डॉक्टर कंज्यूमर एक्ट के अंतर्गत आ गये हैं. नये एक्ट के तहत प्रावधान है कि जैसे हम किसी बिहार के मरीज का दिल्ली में इलाज कर रहे हैं, तो वह बिहार जाकर भी मामला दर्ज कर सकता है. इससे ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होगी. डॉक्टर के साथ-साथ अन्य लोग इसे कमाई का जरिया बनायेंगे. कानूनी अड़चनों का भी डर रहेगा. कहीं यह व्यवस्था पश्चिमी देशों की तरह न हो जाये, जहां डॉक्टरों के अप्वॉइंटमेंट बहुत महंगे हैं. जहां पर भी ऐसी सुविधाएं हैं, वहां मेडिकल सेवाएं बहुत महंगी हैं. यहां भी ऐसे प्रावधानों को लागू करने के बाद खर्च बढ़ना स्वाभाविक है. मरीज को समय से इलाज नहीं मिल पायेगा. भारत में मेडिकल टूरिज्म क्यों है, क्योंकि यहां सस्ता और कम समय में इलाज हो जाता है. बाहर स्वास्थ्य सेवाएं बहुत अच्छी हैं, लेकिन अगर ऑपरेशन कराना है, तो कम से कम तीन से छह महीने का इंतजार करना होता है. वह चीजें हमारे देश में भी बढ़ेंगी. इसके लिए जरूरी है कि डॉक्टरों की नियुक्ति पे-रोल पर की जाये. डॉक्टरों के निजीकरण को खत्म करके सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य बजट को बढ़ा कर सभी डॉक्टरों को पे-रोल पर करे. मेडिकल सेवाओं को व्यापक बनाने के लिए जरूरी है कि ढांचागत सुविधाओं को बेहतर बनाया जाये. सरकार जब खुद आगे बढ़ कर काम करेगी, तभी यह संभव हो पायेगा. जहां तक सेवाओं के डिजिटलीकरण का सवाल है, तो यह समस्या डॉक्टर और मरीज दोनों के सामने है. सरकार को एमबीबीएस पाठ्यक्रम के अंदर डिजिटल एजुकेशन को भी जोड़ना होगा. इसके अलावा मरीजों को शुरुआत में बताया जाये कि ये डिजिटल कार्ड है, यह आपके पास हमेशा रहेगा. कुल मिला कर यह अच्छी सुविधा है और इसे पूरी तरह से लागू करने में तीन से चार साल का समय लगेगा. किसी भी चीज के दो पहलू होते हैं, इसमें मरीज के साथ अपनापन पहले जैसा नहीं रह जायेगा, यह कॉमर्शियल हो जायेगा. अगर डॉक्टर ही सब कुछ करेगा, तो दिक्कत हो जायेगी. इसके सरकार को अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. अगर किसी अन्य प्रोफेशनल की सेवाएं ली जायेंगी, तो उसकी लागत मरीज पर जायेगी, जिससे इलाज महंगा होगा. महंगाई बढ़ेगी, तो अपनापन खत्म होगा. देश में अच्छे डॉक्टर की काफी कमी है. इसके लिए भी सोचने की जरूरत है. अगर स्वास्थ्य और इलाज का खर्च बढ़ेगा और कानूनी अड़चनें आयेंगी, तो इससे पेशेवरों के सामने एक अलग प्रकार का संकट होगा. आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर देने के साथ बेहतर होगा कि सरकार इसे अपनी निगरानी में ले. उचित वेतन और सुविधाएं हों, इसके अलावा देश के पिछड़े और जनजातीय इलाकों से इलाज के लिए आनेवाले लोगों को अलग से सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएं ( ये लेखक के निजी विचार हैं )

डॉ राजीव मेहता, वरिष्ठ मनोचिकित्सक सर गंगाराम हॉस्पिटल, नयी दिल्ली

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