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मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी की यादें…..

डॉ राहत इंदौरी के साथ वेबवर्ल्ड के संपादक, डॉ साहब के रायपुर प्रवास पर … File photo

मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी का दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार को निधन हो गया। वे कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे, जिसके उपचार के लिए उन्हें मध्य प्रदेश के इंदौर में 10 अगस्त की देर रात अरविंदो अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। राहत इंदौरी के बेटे सतलज ने इस बात की जानकारी दी थी, बाद में खुद भी राहत इंदौरी ने इस बारे में ट्वीट किया था। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने श्री इन्दौरी का शेर ट्वीट कर उन्हें श्रधांजलि अर्पित की है। बता दें कि कोरोना संक्रमण के कारण राहत इंदौरी को अस्पताल में सुबह भर्ती किया गया था और इसकी जानकारी उन्होंने खुद अपने फेसबुक अकाउंट पर भी दी थी। शाम को अचानक उन्हें तीन दिल के दौरे आए और उन्होंने अस्पताल में ही अंतिम सांस ली। डाक्टरों के अनुसार दोनों फेफड़ों में कोरोना का संक्रमण, किडनी में सूजन थी और सांस लेने में तकलीफ होने के कारण वे अस्पताल में भर्ती हुए थे। गौरतलब है कि राहत इंदौरी मशहूर शायर हैं, साथ ही वह बॉलीवुड के लिए भी कई गाने लिखते आए हैं। इंदौरी के निधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “अपनी शायरी से लाखों-करोड़ों दिलों पर राज करने वाले मशहूर शायर, हरदिल अजीज श्री राहत इंदौरी का निधन मध्यप्रदेश और देश के लिए अपूरणीय क्षति है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी आत्मा को शांति दें और उनके परिजनों और चाहने वालों को इस अपार दु:ख को सहने की शक्ति दें।”

सुबह उन्होंने ख़ुद ट्वीट करके अपने को कोरोना होने की जानकारी दी । दरअसल उन्हें भवितव्यता अनुमान हो गया था और उन्होंने बहुत मुश्किल से सबेरे नाश्ता किया, पाँच बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा । यह तीसरा दौरा था , शाम होते होते उनके निधन की दुखद खबर फैल गई ।

राहत साहब का जन्म 1 जनवरी 1950 को इन्दौर में रिफत उल्लाह क़ुरैशी और मक़बूल उन निशा बेगम के घर में हुआ । पिता रिफत उल्लाह एक कपड़ा मिल में काम करते थे किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आई मंदी के कारण बेरोज़गार हो गए और बाद में टेम्पो चलाने लगे । राहत उल्लाह क़ुरैशी उर्फ़ राहत इन्दौरी का बचपन अभावों में बीता और वे दस साल की उम्र से ही साइनबोर्ड पेंटिंग बनाने लगे । पेंटिंग में भी उनका हाथ इतने अच्छा था कि बोर्ड बनवाने वालों को लाइन में लगना पड़ता था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया।तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
राहत इंदोरी जी ने शुरुवाती दौर में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। । वह केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी। राहत साहेब ने बहुत जल्दी ही लोगों के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बना लिया और तीन से चार साल के भीतर ही उनकी कविता की खुशबू ने उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया था। वह न सिर्फ पढ़ाई में प्रवीण थे बल्कि वो खेलकूद में भी प्रवीण थे,वे स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे।
राहत साहब ने मुन्ना भाई एमबीबीएस, मीनाक्षी, खुद्दार, नाराज, मर्डर, मिशन कश्मीर, करीब, बेगम जान, घातक, इश्क, जानम, सर, आशियां और मैं तेरा आशिक जैसी फिल्मों में गीत लिखे। वे बहुत बेलौस लिखा करते थे और इस जमाने के सैकड़ों शायरों ने राहत साहब के स्टाइल की नक़ल की । राहत साहब की दो अलग-अलग मिज़ाज की एक ग़ज़ल और एक नज़्म प्रस्तुत करते हुए उस अज़ीम शायर को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ-

-1-

अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

-2-

मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना ।

अफवाह थी कि मेरी, तबियत ख़राब है,
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया
दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं
ऐ मौत तूने मुझको ज़मीदार कर दिया ।

हयात ओ मौत की इस कश्मकश का,
अजब मफ़हूम लिखना पड़ रहा है,
जो ज़िंदा है हमारे ज़हन ओ दिल में,
उसे मरहूम लिखना पड़ रहा है।

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