“बतौर एक संस्था पारदर्शिता जिसकी पहचान है, उस सुप्रीम कोर्ट में बड़ी ज़िम्मेदारी निभा रहे जजों से इतनी उम्मीद तो की जाती है कि वे किसी केस की सुनवाई से अलग होने की वजह बताएं ताकि लोगों के दिमाग़ में ग़लतफ़हमी न पैदा हो…”
नेशनल ज्यूडिशियल एप्वॉयंटमेट्स कमीशन ऐक्ट को असंवैधानिक क़रार देने वाले जजमेंट में जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने जब ये लिखा था तो इसकी उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी एक दिन उसी सुप्रीम कोर्ट में गौतम नवलखा का मामला आएगा और ये सवाल फिर से सबके सामने होगा कि आख़िर पांच जज बिना कोई वजह बताए क्यों सुनवाई से अलग हो रहे हैं.
इसी सोमवार (30 सितंबर) को पहले चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई, मंगलवार को जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस बी सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई, और गुरुवार को जस्टिस रवींद्र भट ने भी गौतम नवलखा के केस की सुनवाई कर रही बेंच से अलग होने की घोषणा कर दी.
दिलचस्प बात ये है कि न तो जस्टिस रवींद्र भट ने और न ही चीफ़ जस्टिस गोगोई ने और न ही सुनवाई से अलग होने वाले सुप्रीम कोर्ट के बाक़ी तीन जजों ने ऐसा करने की कोई वजह बताई.
किसी मामले की सुनवाई कर रही बेंच से किसी जज के अलग होने का मतलब ये भी होता है कि अब वो मुक़दमा एक नई बेंच को भेजा जाएगा यानी गौतम नवलखा मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट जजों की नई पीठ करेगी. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी पर 15 अक्तूबर तक के लिए रोक लगा दी है.
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