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अंतरराष्ट्रीय कथक नृत्यांगना डॉ. अनुराधा दुबे की पर्यटन मंडल में वापसी पर मुहर

रायपुर। भूपेश बघेल सरकार ने अंतरराष्ट्रीय कथक नृत्यांगना डॉ. अनुराधा दुबे की पर्यटन मंडल में वापसी पर मुहर लगा दी है। छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थीं तब पत्रकार राजेश दुबे की पत्नी डॉ. अनुराधा दुबे को पर्यटन अधिकारी के पद से बर्खास्त कर दिया था. पूर्व सरकार के इस कारनामे को अंजाम देने में संविदा में पदस्थ सुपर सीएम के तौर पर विख्यात एक अफसर के अलावा दो अन्य अफसरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस प्रकरण की जांच करवाई और सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए डॉ. अनुराधा दुबे की सेवा को बहाल करने का फैसला किया. मुख्यमंत्री के इस फैसले से मीडिया जगत से जुड़े लोगों ने प्रसन्नता जाहिर की है।
एक दैनिक समाचार पत्र रायपुर में काम करने के दौरान राजेश दुबे ने वर्ष 2011 से 2013 तक रमन सरकार के खिलाफ लगातार कलम चलाई थीं. इनमें बहुचर्चित मीना खलको हत्याकाण्ड, एचएम स्क्वायड की वसूली व गुण्डागर्दी, रोगदा बांध का उद्योगों को बेचा जाना, मुख्यमंत्री के सुरक्षा सलाहकार बनाए गए पंजाब के सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल का बहुचर्चित साक्षात्कार सहित सैकड़ों समाचार शामिल हैं. इन खबरों की वजह से रमन सिंह की सरकार लंबे समय तक असहज रही।
वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव के दौरान जब सरकार में पदस्थ नौकरशाह खबरों को रोकने में सफल नहीं हुए तो उन्होंने अखबार से जुड़े पत्रकारों पर दबाव बनाना प्रारंभ कर दिया। तब अखबार से जुड़े हर शख्स के खिलाफ राज्य के हर जिले में एफआईआर दर्ज करवाई गई। पूर्व सरकार के इस कृत्य की थू-थू होती रही, लेकिन सरकार अनजान बनी रही। इसके बाद भी जब बात नहीं जमी तो नौकरशाह पत्रकारों के घरों की महिलाओं और बच्चों पर हमला करने लगे। किसी पत्रकार की पत्नी का तबादला किया गया तो किसी पत्रकार के बच्चे को झूठे मामले में फंसाकर जेल भिजवाया गया. इस दौरान राज्य में पांच पत्रकारों की हत्या भी हुई।
अनुराधा दुबे को हटाने के लिए सरकार के जिन अफसरों को इस काम के लिए सुपारी दी गई थी, उन्होंने मुख्यमंत्री के जनदर्शन कार्यक्रम एक झूठी शिकायत करवाई. इस शिकायत में यह लिखा गया था कि पर्यटन मंडल में डॉ. अनुराधा दुबे की नियुक्ति नियम-कायदों के विपरीत की गई है। इसकी जांच करवाई जाए व उसके बाद डॉ. दुबे व संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित हो। शिकायत मिलते ही खुन्नस निकालने को तैयार बैठी रमन सरकार हरकत में आ गई और इस बात का परीक्षण किए बिना कि शिकायतकर्ता का कोई वजूद है या नहीं, जांच के आदेश दे दिए और महज पंद्रह से बीस दिनों के भीतर जांच पूरी हो गई. जल्द ही इसकी रिपोर्ट मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को सौंप दी गई। इस बीच पत्रकार राजेश दुबे ने शिकायत करने वाले की खोजबीन की, लेकिन कोई नहीं मिला। बाद में किसी अज्ञात शख्स ने दुबे के निवास स्थान पर पत्र भेजकर यह जानकारी दी कि आपकी पत्नी को नौकरी से निकाले जाने की योजना मंत्रालय के एक कमरे में बनी थीं जिसमें संविदा में पदस्थ और खुद को देश का सबसे पावरफुल अफसर बताने वाले सुपर सीएम ने बनाई थीं। उनके साथ इस कृत्य दो अन्य लोग शामिल थे. वैसे संविदा में पदस्थ इस अफसर की नियुक्ति खुद ही संदिग्ध थी। इस नियुक्ति को लेकर कुछ लोगों ने अदालत की शरण भी ली थी, लेकिन अफसर की प्रतापगढ़िया शैली वाली गुंडई के चलते लोग पीछे हट गए। जो लोग नियुक्ति की वैधानिकता को लेकर चुनौती देते रहे उनके परिजनों को झूठे मामलों में फंसाया जाता रहा. अफसर ने अपने बचाव के लिए तरह-तरह की जुगत भी कर रखी थी। उसने कुछ पत्रकारों को वेबसाइट खोलकर सरकार के पक्ष में माहौल बनाते रहने के लिए भरपूर आर्थिक सहायता दी थी और नियम विरुद्ध विज्ञापन भी दिलवाया था। वैसे तो संविदा में पदस्थ इस कथित सुपर सीएम का विरोध आईएएस अफसर भी करते थे, लेकिन लूप लाइन में फेंक दिए जाने के चलते वे मुखर नहीं हो पाए।
बताना लाजिमी होगा कि छत्तीसगढ राज्य पर्यटन मंडल एक स्वायत्तशासी संस्था है और उसके संचालक मंडल को सभी प्रकार के फैसले करने का अधिकार है, लेकिन डॉ. अनुराधा दुबे के मामले में पूर्ववर्ती सरकार ने मंडल के अधिकारों पर अतिक्रमण किया और संचालक मंडल को भरोसे में लिए बगैर उन्हें सेवा से पृथक करने का एकतरफा आदेश जारी कर दिया था, जबकि अनुराधा दुबे की नियुक्ति मंडल के नियम-कायदों के अनुरूप की गई, जिसका अनुमोदन तत्कालीन पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल व तत्कालीन सचिव, पर्यटन आरपी जैन ने भी किया था। परंतु इन सबको नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर विभाग के तत्कालीन सचिव केडीपी राव व तत्कालीन प्रबंध संचालक संतोष के मिश्रा ने 7 अगस्त 2012 को डॉ. अनुराधा दुबे को सेवामुक्त करने का आदेश जारी किया था। हालांकि यह दोनों अफसर महज निर्देशों को मानने के लिए बाध्य थे। भूपेश सरकार बनने के बाद एक अफसर ने यह माना कि डाक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में सुपर सीएम के चलते सभी भयभीत रहते थे। वे जिस काम को करने के लिए बोलते थे उसे हर हाल में करना ही होता था चाहे वह कितना ही गलत क्यों न हो। अफसर ने माना कि राजेश दुबे की पत्नी को नौकरी से निकाले जाने को लेकर बेहद दबाव था।
भूपेश बघेल जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे वे तब से इस प्रकरण से वाकिफ थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस प्रकरण में विशेष रुचि दिखाई और पूरे मामले की नए सिरे से जांच करवाई. मामले की पूरी छानबीन के बाद उन्होंने इस मामले को राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष रखा और सदस्यों को बताया कि पत्रकार की पत्नी अनुराधा दुबे के साथ पूर्व सरकार ने जो कुछ किया वह मानवीय नहीं है। मुख्यमंत्री की पहल पर मंत्रिमंडल के सदस्यों ने डॉ. अनुराधा दुबे की छत्तीसगढ राज्य पर्यटन मंडल में वापसी के प्रस्ताव पर मुहर लगाकर यह संदेश भी दिया है कि भूपेश सरकार में अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान बरकरार रहने वाला है। मुख्यमंत्री बघेल के इस फैसले पर राज्य के मीडिया जगत ने हर्ष जाहिर करते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त किया है.।
वैसे जब अनुराधा दुबे नौकरी से हटाई गई तब अखबार ने थोड़े समय तक पत्रकार राजेश दुबे का साथ दिया, लेकिन उसके बाद उनका तबादला कभी कोलकाता, कभी भोपाल तो कभी जगदलपुर किया जाता रहा। सरकार विरोधी खबर लिखने की वजह से अन्य पत्रकारों को भी तबादले में इधर-उधर भेजा जाता रहा। अखबार के मालिक और प्रधान संपादक जब भी रायपुर आते तो प्रेस में कार्यरत सभी पत्रकारों के समक्ष नैतिकता का कंबल ओढ़कर कहते थे- देखिए…. रमन सिंह के लोग खबरों में समझौते के लिए प्रेशर बना रहे हैं, लेकिन न तो मैं झुकूंगा और न ही मेरा अखबार। अफसर मुझसे मिलकर कहते है कि सरकार से समझौता कर लीजिए…खबरों का टोन डाउन कर दीजिए…. लेकिन मैंने भी तय कर लिया है कि जब तक राजेश दुबे की पत्नी की नौकरी वापस नहीं होगी तब तक कोई समझौता नहीं होगा। वैसे अखबार ने जब छत्तीसगढ़ से अपना प्रकाशन प्रारंभ किया था तब खबरों को छापने में बड़ी हिम्मत दिखाई थी, लेकिन वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले अखबार ने अपने तेवर बदले। धीरे- धीरे यह अखबार भगवा लोगों का प्रमुख पत्र बन गया। अब भी अखबार के सभी संस्करणों में भगवा संस्कृति को बढ़ावा देने वाले संपादक और पत्रकार कार्यरत है। छत्तीसगढ़ से निकलने सभी संस्करणों की खबरों से रू-ब-रू होने के बाद यह साफ दिखता है कि अखबार के संपादक और पत्रकार भगवा सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अखबार के मालिक, संपादक और रिपोर्टरों ने जबरदस्त ढंग से भगवा लहर को बढ़ावा देने का काम किया था। शायद अखबार के मालिक से लेकर पत्रकार सभी को यह भरोसा था कि चौथीं बार भी छत्तीसगढ़ में पुरानी सरकार रिपीट हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। केन्द्र में सरकार रिपीट हुई तो अखबार के मालिक ने अपने एक लेख में बड़ी बेशर्मी से यह ऐलान भी किया कि उनके अखबार का हर संस्करण मोदी की सेवा के लिए समर्पित रहेगा। अखबार मालिक के इस भयानक किस्म के संकल्प की हर मंच से तीखी आलोचना हुई। सबने यह माना कि शरणागत होने की दौड़ में अखबार ने सबको पीछे छोड़ दिया

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