Chhattisgarh State

एक छोटे से गाँव अरसनारा से राजधानी दिल्ली तक पहुंचा जय माँ कर्मा महिला स्वसहायता समूह का सफर

* – बिहान योजना से अजीता के जुनून को मिले पंख

* – छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का जादू फैला चुकी हैं केरल से दिल्ली तक

दुर्ग/ फरा और चीला, इन दो व्यंजनों को लेकर पाटन ब्लाक के अरसनारा गांव की महिलाओं ने छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की ख्याति उत्तर से दक्षिण अर्थात देश की राजधानी दिल्ली से लेकर केरल तक पहुंचा दी। दिल्ली में हुए फूड कोर्ट फेस्टिवल में फरा और चीला छाया रहा। दो हफ्ते में समूह की महिलाओं ने सवा दो लाख रुपए के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बेचे। पलक्कड़ में इन्होंने मलयाली दुभाषिये के माध्यम से एक लाख रुपए से अधिक के व्यंजन बेचे। छत्तीसगढ़ी अचार का स्वाद इन राज्यों में आयोजित फूड कोर्ट में लोगों ने चखा और खूब तारीफ की। अरसनारा की अजीता साहू उन तमाम महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं जो ग्रामीण परिवेश में रहते हुए भी अपनी एक अलग पहचान बनाने की चाहत रखती हैं। अजीता में हुनर और जुनून तो था ही इसी जुनून के चलते अजीता साहू जुड़ी एनआरएलएम की बिहान योजना से। इस योजना का लाभ उठाकर न केवल अजीता स्वावलंबी बनी अपितु अपने समूह के सभी महिलाओं को उन्होंने आत्मनिर्भर बनाया।
बिहान के माध्यम से मिला देश भर में अपना उद्यम दिखाने का अवसर
अजीता जय मां कर्मा स्व सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। उनके समूह में 20 महिलाएं हैं। बिहान योजना के माध्यम से इन लोगों ने पचास हजार रुपए की छोटी सी राशि के साथ अपने उद्यम की शुरूआत की और अब देश के हर कोने में फूड फेस्टिवल एवं अन्य माध्यमों से छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को लेकर जा रही हैं। आज उनका समूह गोमूत्र से पंचगव्य , ऑर्गेनिक कीटनाशक, वर्मी कंपोस्ट खाद अगरबत्ती अचार पापड़ और बड़ी बनाकर काफी मुनाफा कमा रही हैं। अजीता बताती हैं कि चाहे दिल्ली में स्थित फूड फेस्टिवल हो, पलक्कड़ में हो अथवा भिलाई में आयोजित सरल मेला। ऐसे हर आयोजन में सरकार आने-जाने का खर्च देती है और स्टाल उपलब्ध कराती है। फूड फेस्टिवल में हजारों लोग आते हैं और सबसे हमारे छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को खूब लुत्फ लेकर खाते हैं। बिहान योजना के अंतर्गत पाटन ब्लाक का कार्य देखने वाले अधिकारी लोचन बंजारे बताते हैं कि यह महिलाएं फूड फेस्टिवल आदि आयोजनों के माध्यम से लाभ तो कमा ही रही हैं वे छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की ब्रांड एम्बेसडर की तरह भी हैं जिनसे देश भर के लोग यह जान पा रहे हैं कि हमारी छत्तीसगढ़ी परंपरा व्यंजनों के मामले में कितनी समृद्ध है।
मैग्नेटो माल में भी मिलते हैं इनके उत्पाद
अपने अनुभव साझा करते हुए अजीता ने बताया कि दिल्ली में आयोजित फूड फेस्टिवल में उन्होंने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ी व्यंजन फरा ,चीला,चौसेला, खाजा, पपची को लोगों ने बहुत पसंद किया, 15 दिनों में उनके समूह ने सवा दो लाख रूपए कमाए। एक छोटे से गांव से दिल्ली तक का सफर अपनी मेहनत और लगन से पूरा करने वाली अजीता बताती हैं कि बिहान ऐसी महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी हैं जो आत्मिर्भर बनना चाहती हैं। जय मां कर्मा स्व सहायता समूह में 20 महिलाएं शामिल हैं, हर सदस्य को हर महीने कम से कम 5 से 6 हजार की आय होती है जिसकी मदद से वो अपने बच्चों की फीस जमा करती है। उनके लिए किताबें खरीदती हैं। समूह की महिलाएं बताती हैं कि पहले उन्हें हर छोटी-छोटी चीज के लिए अपने पति पर निर्भर होना पड़ता था। लेकिन आज बिहान योजना से जुड़ कर वह खुद भी कमाने लगी हैं। अभी इनके उत्पाद रायपुर के मैग्नेटो माल में भी उपलब्ध हैं।
कंपोस्ट खाद बना भी रही और इस्तेमाल भी कर रहीं
समूह की महिलाएं कंपोस्ट खाद बना भी रही हैं। इसे बेच भी रही हैं और खुद अपने खेतों में भी इस्तेमाल कर रही हैं। समूह की महिलाओं ने बताया कि वे उड़द, मूंग वगैरह उपजा रही हैं और बडी-बिजौरी और अन्य उत्पादों में इसे इस्तेमाल कर रही हैं। अजीता ने बताया कि वे लोग सुगंधित चावल भी लगा रहे हैं। तिल कस्तूरी और काली कुमुद जैसे चावल की अच्छी मांग बाजार में है। इसके लिए कीटनाशक उन्होंने प्राकृतिक रूप से तैयार किए हैं जिसके अवयव हैं धतूरा पत्ता, नीम पत्ता आदि।
लेड़गा बड़ी भी बाजार में उपलब्ध कराया
लोककवियों की चिंता है कि लेड़गा बड़ी के बनाने वाले छत्तीसगढ़ में खत्म हो रहे हैं।लेकिन उनके समूह ने ठानी है लेड़गा बड़ी को विलुप्त नहीं होने देंगे। इसी सोच के साथ जब उन्होंने लेड़गा बड़ी बनाकर बाजार में बेचना शुरू किया । देखते ही देखते लेड़गा बड़ी का स्टॉक ख़त्म हो गया। अजीता ने बताया कि वे लोग बिल्कुल परंपरागत छत्तीसगढ़ी व्यंजन और अचार, बड़ी-बिजौरी तैयार कर रहे हैं। लेड़गा बड़ी इन्होंने पांच किलो बनाया और बेच दिया। अजीता बताती हैं कि सबसे अच्छा उन्हें तब लगता है कि जब दूसरे राज्यों के लोग अपने खास लहजे से फरा और चीला का उच्चारण करते हैं तब लगता है कि बिहान से जुड़कर हमारे कार्यों को सार्थकता मिल गई।

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