राजभवन अधिकारियों का सूझ नहीं रहा कि इन पत्रों का करें क्या। कांग्रेसियों ने चार गाड़ियों में भरकर मंगलवार को सौंपा था। धान के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने किसानों और व्यापारियों से प्रधानमंत्री के नाम करीब 17 लाख पत्र लिखवाकर राजभवन को सौंप दिया है। राजभवन तक पत्र पहुंचाने के बाद अब कांग्रेस इन पत्रों से मुक्त हो गई है। वहीं राजभवन का सिरदर्द बढ़ गया है। राजभवन सचिवालय को समझ नहीं आ रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में आए पत्रों का क्या किया जाए? यही वजह है कि अब इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से मार्गदर्शन मांगने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि इस मामले में राजभवन सचिवालय के अफसरों ने किसी तरह की टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया।
दोहरी चिंता- लाखों की संख्या में पहुंचे पत्रों को लेकर राजभवन दोहरी चिंता में है। एक तो इतनी बड़ी संख्या में आए पत्रों को रखा कहां जाए और दूसरा इसका किया क्या जाए? पत्रों की वजह से एक पूरा कमरा भर गया है।
लेना ही नहीं चाहिए था-सूत्रों के अनुसार राजभवन सचिवालय का एक बड़ा वर्ग इतने बड़े पैमाने पर पत्र लिए जाने के ही खिलाफ है। उनकी राय में इतनी तादाद में पत्र लेना ही नहीं चाहिए था। बताया जा रहा है कि कांग्रेस नेताओं ने जिस वक्त इन पत्रों को राजभवन को सौंपा उस वक्त राजभवन में न तो राज्यपाल थीं और न ही सचिव।
ताकि नजीर न बने- राजभवन इस घटना के बाद ऐसे उपाय पर भी विचार कर रहा है कि जिससे यह नजीर न बने और ऐसा फिर न हो। सूत्रों के अनुसार इसकी वजह यह मानी जा रही है कि यदि यह घटना नजीर बन गई तो कल को कोई भी आ कर ऐसे ही लाखों की संख्या में पत्र सौंप जाएगा। ऐसे में राजभवन पोस्ट ऑफिस बन कर रह जाएगा।
ज्ञापन लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता- राजभवन सचिवालय के अनुसार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार के नाम का ज्ञापन लिया जा सकता है, लेकिन ज्ञापन कुछ पन्नों का हो सकता है, इतनी बड़ी संख्या में नहीं। वैसे भी किसी और का ज्ञापन कोई दूसरा कैसे दे सकता है।
यह कर सकता है राजभवन- सभी 17 लाख चिठ्ठियों को प्रधानमंत्री कार्यालय भेजने की बजाए पीएमओ को राजभवन की तरफ से केवल एक पत्र भेजा जाए और 17 लाख पत्रों की विषयवस्तु बता दी जाए। इससे इतनी बड़ी संख्या में पत्र भेजने की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी और पीएमओ तक बात भी पहुंच जाएगी।
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