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गुजरात में आम आदमी पार्टी बीजेपी को बेदखल कर बड़ा उलटफेर कर पाएगी?

हंसा बेन भरत भाई परमार राजकोट में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रोड शो में आई हैं.

रविवार को आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने राजकोट के कोठारिया इलाक़े से रोड शो की शुरुआत की थी.

हंसा बेन एक छोटे ट्रक में क़रीब 10 महिलाओं के साथ सवार हैं. उनसे पूछा कि कौन आया है? उनका जवाब था- केजरीवाल आया है. केजरीवाल कौन हैं? इस सवाल का जवाब हंसा बेन समेत कोई भी महिला नहीं दे पाई.

ट्रक में सवार महिलाओं से पूछा कि गुजरात का मुख्यमंत्री कौन है? सबने एक स्वर में कहा- नरेंद्र मोदी. अरविंद केजरीवाल के रोड शो में भी गुजराती में जो नारा लग रहा था, उसमें कहा जा रहा था कि एक मौक़ा केजरीवाल को दीजिए. केजरीवाल किसी नायक की तरह एक खुली कार में हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ रहे थे. सड़क पर केजरीवाल के समर्थक उनके हाथ छूने को बेक़रार थे.
यह रोड शो भारत की लोकप्रिय राजनीति का मिसाल था. कारों का काफ़िला, उन पर केजरीवाल की बड़ी-बड़ी तस्वीरें, पार्टी के लंबे-चौड़े झंडे, बेतहाशा बजते ढोल-नगाड़ों के शोर और इन सबके बीच से खुली कार में खड़े होकर हाथ हिलाते केजरीवाल.

भारत की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव में इस तरह के रोड शो निकालती हैं. रोड शो में भीड़ का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है क्योंकि पूरी सड़क जाम हो जाती है और ऐसा लगता है कि जाम में खड़े लोग भी रोड शो का हिस्सा हैं.

हालांकि जिनकी गर्दनों में आम आदमी पार्टी के झंडे लिपटे थे, उससे भीड़ का अंदाज़ा लगाएं तो क़रीब एक से डेढ़ हज़ार लोग केजरीवाल के आगे और पीछे थे.

ये वही राजकोट है, जहाँ से पहली बार नरेंद्र मोदी ने 2002 में विधानसभा चुनाव जीता था. इसके बाद मोदी कभी चुनाव हारे नहीं. वो चाहे 2012 तक गुजरात विधानसभा चुनाव हो या 2014 के बाद से लोकसभा चुनाव.

गुजरात की राजनीति में पिछले चार दशकों से बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे को टक्कर देते रहे हैं, लेकिन पहली बार यहाँ के चुनाव में तीसरे दल के रूप में आम आदमी पार्टी की भी बात हो रही है.
अहमदाबाद से राजकोट के रास्ते में वढवान विधानसभा क्षेत्र है. इस विधानसभा क्षेत्र के बडौत गाँव के राजेश उघरेजिया अपनी 20 साल की बेटी और 10 साल के बेटे के साथ अमरूद बेच रहे हैं.

उनसे आम आदमी पार्टी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ”हाँ, जी सुना है. मुफ़्त में बिजली और अच्छी पढ़ाई की बात कर रही है. यह तो मेरे लिए अच्छा है. मोदी ने तो हमको सड़क पर ला दिया है.

महंगाई इतनी है कि चाहे जितना काम करो, ज़रूरतें अधूरी रह जाती हैं. बेटी की सगाई कर दी है. शादी में कम से कम ढाई लाख ख़र्च होंगे, लेकिन क़र्ज़ लेने के अलावा कोई उपाय नहीं है.”

राजेश की बेटी तेजल उघरेजिया कहती हैं, ”पैसे के अभाव में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई. मेरे भाई ने भी आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. कांग्रेस की कोई बात नहीं कर रहा है. आम आदमी पार्टी और भाजपा की चर्चा है. कई बार लगता है कि भाजपा ही जीत रही है, इसलिए उसी को वोट हम कर देते हैं.”

अरविंद केजरीवाल ने पिछले हफ़्ते शुक्रवार को गुजराती भाषा के एक न्यूज़ चैनल के लोकप्रिय एंकर ईसुदान गढवी को गुजरात में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की घोषणा की थी. केजरीवाल के साथ रोड शो में गढवी नहीं दिखे.

राजकोट के जाने-माने अमीर नेता इंद्रनील राजगुरु भी आम आदमी पार्टी के साथ ही थे. जिस दिन ईसुदान को केजरीवाल ने सीएम चेहरा बनाया, उसी दिन वह कांग्रेस में शामिल हो गए.

इंद्रनील राजगुरु पहले भी कांग्रेस में ही थे. 2012 में वह राजकोट पूर्वी विधानसभा सीट से चुनाव भी जीते थे.

शनिवार के रोड शो के लिए इंद्रनील राजगुरु के नील रिज़ॉर्ट में ही सारी तैयारी चल रही थी. रिज़ॉर्ट के हॉल में आप के चुनाव चिह्न से पूरी दीवार ढँकी थी. यहाँ काम करने वाले लोगों ने बताया कि शनिवार को पूरा रिज़ॉर्ट बुक था, लेकिन अचानक ही स्थिति 180 डिग्री बदल गई.
इंद्रनील राजगुरु से पूछा कि उन्होंने आप क्यों छोड़ दी?
उनका जवाब था, ”मैं आप में इसलिए गया था कि वह बीजेपी को हराएगी. कांग्रेस से नाराज़गी थी कि वह चुनाव को लेकर गंभीर नहीं है. मैं पिछले छह महीने से अरविंद के साथ था और मैंने महसूस किया कि वह भाजपा नहीं कांग्रेस को हराने में लगे हैं.”

वो कहते हैं, “मेरा पैसा कांग्रेस को हराने में इस्तेमाल नहीं हो सकता है. अरविंद केजरीवाल को मुझसे केवल पैसा चाहिए था. मेरा मानना है कि आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी चुनाव नहीं जीत सकता है.”

गढवी गुजराती टीवी की दुनिया में भले ही जाना-माना नाम हैं, लेकिन राजनीति में बिल्कुल नए हैं.

गढवी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के पीछे केजरीवाल की क्या रणनीति है? गुजरात के राजनीति विश्लेषक इसे बहुत परिपक्व और समझदारी भरे फ़ैसले के तौर पर नहीं देख रहे हैं.

गुजरात यूनिवर्सिटी में सामाजिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी कहते हैं, ”गुजरात में गढवी चारण-भाट जाति के होते हैं. इनकी पहचान राजाओं के दरबारों में प्रशस्ति गान करने की रही है.

इनकी आबादी गुजरात में मुश्किल से एक फ़ीसदी है. मैं इसे बहुत परिपक्व फ़ैसले के तौर पर नहीं देख रहा हूँ. ऐसा लग रहा है कि कोई नहीं मिला तो किसी को भी बना दिया.”

प्रोफ़ेसर गौरांग जानी कहते हैं, ”इससे आम आदमी पार्टी को फ़ायदा नहीं होगा. बीजेपी यहाँ 1995 से चुनाव हारी नहीं है. उनका संगठन बहुत मज़बूत है.

बीजेपी के पास चुनाव जीतने की पूरी मशीनरी है. उस पार्टी को हराने के लिए इन्हें किसी ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपनी चाहिए थी जो सामाजिक और राजनीतिक ज़मीन पर खरा उतरता हो.”
“गढवी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने से पार्टी के भीतर ही काफ़ी नाराज़गी होगी. गोपाल इटालिया पाटीदार हैं और उनके लिए यह फ़ैसला पचाना आसान नहीं होगा. ईसुदान के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से पाटीदारों का वोट मिलना मुश्किल हो जाएगा.”

ईसुदान ने अहमदाबाद स्थित गुजरात विद्यापीठ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है.

उन्हें पत्रकारिता पढ़ाने वाले एक शिक्षक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि ईसुदान औसत दर्जे के स्टूडेंट रहे हैं और बौद्धिक तो कतई नहीं हैं. उन्होंने कहा कि केजरीवाल जो कहेंगे, उसे सुनेंगे ज़रूर.

ईसुदान गढवी से पूछा कि जिस पार्टी को कांग्रेस 1995 से नहीं हरा पा रही है, उसे उनकी पार्टी किस रणनीति से हरा देगी?

गढवी कहते हैं, ”हमारी पार्टी लोगों की ज़रूरतों के एजेंडे पर चल रही है. यहाँ बीजेपी के अलावा कोई पार्टी थी ही नहीं, इसलिए गुजरात के लोग मजबूरी में उसे जिताते रहे. अब आम आदमी पार्टी आ गई है और लोगों ने बीजेपी से बचने के लिए राहत की सांस ली है.”
आम आदमी पार्टी से किसे नुक़सान?

आम आदमी पार्टी किसे नुक़सान पहुँचाएगी? बीजेपी या कांग्रेस को?

सूरत में सेंटर फ़ॉर सोशल स्टडीज़ यानी सीएसएस के प्रोफ़ेसर किरण देसाई कहते हैं, ”आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी दोनों के वोट बैंक में सेंध लगाएगी.”

“पिछले साल सूरत में नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 27 सीटें जीती थीं. सूरत में बीजेपी मज़बूत रही है. केजरीवाल और मोदी की राजनीति में समानता है, लेकिन गुजरात में इनका दिल्ली मॉडल बिक रहा है.

जैसे एक वक़्त में मोदी ने गुजरात मॉडल बेचा था. गुजरात के मध्य वर्ग में नरेंद्र मोदी अब भी काफ़ी लोकप्रिय हैं, लेकिन यहाँ के ग़रीब केजरीवाल को उम्मीद भरी नज़र से देख रहे हैं.”

प्रोफ़ेसर किरण देसाई कहते हैं, ”गुजरात के दलित, अल्पसंख्यक और ग़रीब लोगों का आम आदमी पार्टी में रुझान है. अरविंद केजरीवाल और मोदी की राजनीति में बहुत फ़र्क़ नहीं है,

लेकिन उनके पास यह बताने के लिए है कि उन्होंने दिल्ली में सस्ता इलाज, अच्छी पढ़ाई और सस्ती बिजली की व्यवस्था की है.”

“केजरीवाल मध्य वर्ग को ख़ुश करने के लिए हिन्दुत्व की राजनीति को चुनौती देते हुए नहीं बल्कि साथ दिख रहे हैं और ग़रीबों को लामबंद करने के लिए दिल्ली मॉडल बेच रहे हैं.”

गुजरात में कांग्रेस के प्रभारी रघु शर्मा आम आदमी पार्टी को बीजेपी की ‘बी टीम’ बताते हैं. वे कहते हैं, “यहाँ विपक्ष कांग्रेस है. आम आदमी पार्टी एक सीट भी नहीं जीत पाएगी.”

“यहाँ के लोगों को पता है कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी में कोई फ़र्क़ नहीं है. ये गांधीनगर को दिल्ली से हांकना चाहते हैं जो संभव नहीं है. दिल्ली से पंजाब की सरकार चल रही है और लोग अफ़सोस कर रहे हैं.”

बीजेपी के युवा नेता हार्दिक पटेल इस बात को मानते हैं कि आम आदमी पार्टी से बीजेपी को फ़ायदा होगा.

हार्दिक कहते हैं, “अरविंद केजरीवाल से बीजेपी को फ़ायदा होगा. कांग्रेस इस बार बहुत बुरा प्रदर्शन करेगी. पिछली बार पाटीदार आंदोलन के कारण कांग्रेस को अच्छी सीटें मिल गई थीं.”
जातीय समीकरण में ‘आप’ कहाँ है?

1960 में गुजरात के गठन के बाद पहली बार 1973 में चिमनभाई पटेल ग़ैर-ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने थे. इसके पहले जीवराज नारायण मेहता बनिया जाति से थे और बाक़ी के मुख्यमंत्री ब्राह्मण थे.

ऐसा तब था जब गुजरात में ब्राह्मण एक फ़ीसदी से भी कम हैं. चिमनभाई पटेल का मुख्यमंत्री बनना गुजरात और कांग्रेस के लिए बड़ी घटना थी.
80 के दशक में माधव सिंह सोलंकी ने क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमानों को खाम मंच के तहत एकजुट किया था.

इसी प्रयोग के तहत कांग्रेस ने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 1985 के विधानसभा चुनाव में 182 में से 149 सीटों पर जीत दर्ज की थी. गुजरात में इतनी बड़ी जीत नरेंद्र मोदी अब तक हासिल नहीं कर पाए हैं.

लेकिन कहा जाता है कि माधव सिंह सोलंकी के इस प्रयोग ने गुजरात में पाटीदारों को अलग-थलग कर दिया था. पाटीदार बीजेपी के खेमे में शिफ़्ट हो गए थे.

आरक्षण विरोधी आंदोलन के कारण 1985 में बड़ी जीत के कुछ महीने बाद ही माधव सिंह सोलंकी को कांग्रेस ने इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया था. माधव सिंह सोलंकी के जाते ही गुजरात में कांग्रेस भी सत्ता से बेदखल होती गई.
गुजरात में पाटीदार यानी पटेल 14 फ़ीसदी हैं. पिछली विधानसभा में पटेल विधायक 30 फ़ीसदी थे. पटेल पारंपरिक रूप से बीजेपी को वोट करते हैं.

आम आदमी पार्टी ने गुजरात में प्रदेश अध्यक्ष की कमान गोपाल इटालिया को दी है. गोपाल पटेल जाति से ही ताल्लुक़ रखते हैं.

गुजरात में ओबीसी का वोट 45 से 50 फ़ीसदी तक है. गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से ओबीसी का दबदबा 71 सीटों पर है.

दलित सात फ़ीसदी हैं और इन्हें पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थक माना जाता है. अनुसूचित जनजाति 14.75 प्रतिशत हैं और ये 37 विधानसभा क्षेत्रों में प्रभावी हैं.

एसटी वोट कांग्रेस और बीजेपी के बीच बँट जाता है.

इंडियन काउंसिल ऑफ़ सोशल साइंस रिसर्च के नेशनल फ़ेलो और जाने-माने समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर घनश्याम शाह कहते हैं कि आम आदमी पार्टी का गुजरात में कोई अतीत नहीं है, इसलिए उसे लोग नई हवा की तरह देख रहे हैं.

प्रोफ़ेसर शाह कहते हैं, ”जातीय समीकरण में आम आदमी पार्टी अभी फ़िट नहीं दिख रही है, लेकिन कांग्रेस की जगह ले सकती है और बीजेपी को भी कई इलाक़ों में नुक़सान पहुँचा सकती है.

आम आदमी पार्टी को गुजरात में तात्कालिक सफलता मिल सकती है, लेकिन वह लंबे समय तक टिकेगी, इस पर संदेह है.”

2012 में आम आदमी पार्टी बनने के बाद से अब तक दिल्ली और पंजाब में सरकार बना चुकी है. दोनों जगह कांग्रेस को हराकर केजरीवाल ने सरकार बनाई है.

अब तक बीजेपी को किसी राज्य से बेदखल करने में केजरीवाल नाकाम रहे हैं. गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला कहा जाता है.

अगर केजरीवाल यहाँ बीजेपी को मात देते हैं तो उनकी राजनीति में इससे बड़ी जीत कोई और नहीं हो सकती है, क्योंकि कांग्रेस पिछले 27 सालों से ऐसा नहीं कर पा रही है.

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