Climate Change

जलवायु परिवर्तनः भारत की क्या हैं प्रतिबद्धताएं? कितना किया हासिल?

हीट वेव, तूफ़ान, अनियमित मानसून, बाढ़ और सूखा… भारत में मौसम की वजह से होने वाली ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से बहुत-सी घटनाएं जलवायु में परिवर्तन की वजह से हो रही हैं. लेकिन क्या भारत इसे रोकने के लिए पर्याप्त क़दम उठा रहा है?

जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जो पूरे साल दुनिया को परेशान करता रहा है. लेकिन इस पर सबसे ज़्यादा बात इसी समय होती है क्योंकि इस समय कॉफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ या सीओपी का आयोजन होता है.

इस साल सीओपी का 27वां सम्मेलन मिस्र के शर्म अल-शेख में 6-18 नवंबर के बीच हो रहा है.

इस साल के सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक़सान और बर्बादी और इससे निबटने के लिए उठाए जाने वाले क़दमों के लिए फंड सुरक्षित करने पर चर्चा होगी.

सीओपी में भारत ने क्या प्रतिबद्धताएं ज़ाहिर की हैं?

2015 में भारत सहित दुनिया के 200 से अधिक देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक ना बढ़ने देने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी.

इस प्रतिबद्धता के तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जाना था.

इसके तहत हर देश को अपने नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूसंश (एनडीसी) तय करने होते हैं और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पेश करने होते हैं.

इनके तहत ये परिभाषित करना होता है कि देश कितना कार्बन उत्सर्जन होने देगा और इसमें कितनी कटौती करेगा और कैसे करेगा.

भारत सरकार ने ये वादा किया है कि सरकार स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देगी और उनकी मदद करेगी. इसके अलावा अक्षय ऊर्जा के स्रोतों, कम उत्सर्जन वाले उत्पादों और इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा.

हालांकी एनडीसी लक्ष्य जारी करते हुए भारत सरकार ने ये भी कहा है कि उसके ये लक्ष्य किसी एक खास सेक्टर में कटौती के लिए बाध्य नहीं करते हैं या इस दिशा में काम करना अनिवार्य नहीं करते हैं.

भारत सरकार का कहना है कि “भारत का मक़सद समय के साथ कुल उत्सर्जन को कम करना है और अपनी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना है. इसके साथ अर्थव्यवस्था और समाज के कमज़ोर क्षेत्रों की सुरक्षा भी करनी है.”

पिछले साल ग्लासगो में हुए सीओपी26 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया था.

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक़ नेट ज़ीरो का मतलब है ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य के बिलकुल क़रीब ले जाना. कोई भी देश नेट ज़ीरो उत्सर्जन तब हासिल कर लेता है जब वो पर्यावरण में सिर्फ़ उतना ही उत्सर्जन करता है जितना वो सोख लेता है.

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारतीय रेलवे ने साल 2030 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. भारतीय रेलवे प्रत्येक वर्ष अपने कार्बन उत्सर्जन में 6 करोड़ टन की कमी करना चाहता है. इसी के साथ भारत में एलईडी बल्ब को बढ़ावा देने का अभियान चलाया जा रहा है. इससे भी सालाना चार करोड़ टन उत्सर्जन कम हो रहा है.

ऊर्जा क्षेत्र के सामने चुनौतियां?

भारत ने साल 2030 तक ऊर्जा की अपनी आधी ज़रूरतों को स्वच्छ ऊर्जा (अक्षय ऊर्जा) से हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. अगले आठ सालों के भीतर ये लक्ष्य भारत को हाइड्रोपॉवर (पनबिजली), सौर ऊर्जा और बायो ऊर्जा के ज़रिए हासिल करना है.

भारत में पिछले एक दशक में स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल में बढ़ावा देखा गया है, लेकिन अभी भी ये उस गति से नहीं हो रहा है जो लक्ष्य हासिल करने के लिए ज़रूरी है.

आज भी भारत अपनी अधिकतर ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए थर्मल पॉवर पर निर्भर है. ऐसे बिजली संयंत्र आज भी अधिकतर जीवाश्म ईंधन पर ही चलते हैं और इनमें भी सर्वाधिक इस्तेमाल कोयले का ही होता है.

कोयला मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ सितंबर 2022 में पिछले साल के मुक़ाबले कोयला उत्पादन 12 प्रतिशत अधिक हुआ है.

दुनियाभर में कोयले का इस्तेमाल कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतरामण ने अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में एक प्रेसवार्ता में इस मुद्दे को रेखांकित किया.

उन्होंने कहा, “पश्चिमी दुनिया में भी देश कोयले की तरफ़ मुड़ रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया पहले ही कह चुका है और आज से वो भी कोयले की तरफ़ जा रहे हैं. मुझे लगता है कि ग़ैस बहुत महंगी है या ये उस मात्रा में उपलब्ध नहीं है जितनी ज़रूरत है.”

सेंट्रल इलेक्ट्रिकल अथॉरिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल भी बढ़ा है और आगे भी इसके बढ़ते रहने की संभावना है.

हालांकि भारत पिछड़ रहा है. भारत ने दिसंबर 2022 तक अपनी क्षमता को 175 गिगावॉट तक बढ़ाने और अधिक मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादित करने का लक्ष्य तय किया था. लेकिन भारत अभी इस क्षमता को हासिल करने से बहुत दूर है. फिलहाल भारत 116 गिगावॉट ऊर्जा का ही उत्पादन कर पा रहा है.

भारत जैसे विकासशील देशों में ऊर्जा ज़रूरतें लगातार बढ़ती हैं, इसे सिर्फ स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करने अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.

जंगल बढ़ाने का मुद्दा

भारत पेड़ और नए जंगल लगाकर प्राकृतिक रूप से कार्बन को सोखने की क्षमता को 2.5 अरब टन से 3 अरब टन तक बढ़ाना चाहता है. सरकार दावा करती है कि नई फॉरेस्ट कवर रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में साल 2019 से 2021 के बीच 2261 वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़े हैं.

पर्यावरण और जलवायु विशेषज्ञ अतुल देवलगांवकर कहते हैं कि ये दावे काग़ज़ी ही हैं और वास्तविकता इससे बहुत अलग हो सकती है.

वो कहते हैं कि सभी हरे इलाक़े जंगल नहीं है. भारत में, जब जंगलों को मापा जाता है तब पेड़ों के घनत्व को देखा जाता है और कई बार झाड़ियों और फसलों को भी जंगल मान लिया जाता है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि जंगल प्राकृतिक रूप से स्वयं भी उगते हैं और ये एक अच्छी परंपरा है.

फॉरेस्ट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 2019 के मुक़ाबले 2021 में सदाबहार वन 17 वर्ग किलोमीटर बढ़े हैं. लेकिन क्या ये पर्याप्त हैं?
राज्यों के एक्शन प्लान का क्या?

एनडीसी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी.

सितंबर 2022 में भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने दो दिन का एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमें लगभग सभी राज्यों के पर्यावरण मंत्री शामिल हुए. इस सम्मेलन में भी राज्यों के एक्शन प्लान पर ही फ़ोकस किया गया.

लोकसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 33 प्रांतों और केंद्रशासित प्रदेशों से एक्शन प्लान मिलने की पुष्टि की थी. सभी राज्यों ने एक्शन प्लान तो बनाए हैं लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ हो नहीं सका है.

साल 2022 में बृहनमुंबई महापालिका ने घोषणा की थी कि शहर का अपना जलवायु एक्शन प्लान होगा. मुंबई साल 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करना चाहती है.
वीडियो कैप्शन,

विकासशील और ग़रीब देशों के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना कोई आसान काम नहीं है, यही वजह है कि सीओपी27 सम्मेलन में चर्चा के दौरान वित्तीय मदद अहम मुद्दा रह सकती है.

बिजली आपूर्ति की बढ़ती ज़रूरत को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा में बड़े निवेश किए जाने ज़रूरी हैं.

भारत को भी ऊर्जा का भंडार करने के लिए अपनी भंडारण क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है और ऐसा करने के लिए उसे भारी निवेश की ज़रूरत होगी. बैंक ऑफ़ अमेरिका के एक सर्वे के मुताबिक़ भारत को 401 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की ज़रूरत होगी. सीओपी 27 के दौरान नुक़सान और उसकी भरपाई का मुद्दा भी उठ सकता है.

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कोपेनहेगन में साल 2009 में हुए जलवायु सम्मेलन के दौरान विकसित देशों ने साल 2020 तक ग़रीब और विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर की आर्थिक मदद देने का भरोसा दिया था ताकि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कारगर क़दम उठाए जा सकें. हालांकि ये वादा पूरा नहीं हो सका.

पिछले साल आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 100 अरब डॉलर का लक्ष्य पूरा करना दूर की कौड़ी थी. इस साल भी तकनीकी वार्ता के दौरान ये मुद्दा उठ सकता है.

विकासशील देशों की तरफ से भारत अहम भूमिका निभा सकता है. भारत इस पैसे की मांग भी उठा सकता है.

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