राजनांदगांव। शिक्षा का अधिकार कानून में यह स्पष्ट है कि गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाना और शिक्षा पूर्ण कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, यानि जिला प्रशासन की है यानि कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी पूर्णतः जिम्मेदार है। कोरोना काल में बंद हुए 20 प्रायवेट स्कूलों के 1000 गरीब बच्चों को जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों ने किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं दिलाया और लगभग 25 प्रायवेट स्कूल ऐसे है, जहां सिर्फ कक्षा आठवीं तक ही स्कूल संचालित है और यहां प्रवेशित आरटीई के 200 गरीब बच्चों को आसपास के शासकीय-प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाने का प्रावधान है, लेकिन इन गरीब बच्चों को भी किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं दिलाया गया।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन इस संबंध में लगातार कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर आग्रह कर रहा है कि गरीब बच्चे निःशुल्क शिक्षा से वंचित हो गए उन्हें तत्काल किसी अन्य स्कूलों में प्रवेश दिलाने की समुचित व्यवस्था किया जाए, लेकिन अब तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने इस संबंध में कोई रूचि नही लिया। राज्य सरकार ने भी इन गरीब बच्चों को तत्काल किसी अन्य स्कूलों में प्रवेश दिलाने के संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश किया है, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने राज्य सरकार के पत्र को शायद अब तक पढ़ा तक नहीं है।
बालक कल्याण समिति ने 5 अप्रैल को जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर इन गरीब बच्चों को तत्काल किसी अन्य स्कूल में प्रवेश दिलाने का निर्देश दिया था, लेकिन शायद जिला शिक्षा अधिकारी को गरीब बच्चों के जीवन व भविष्य की चिंता नहीं है। गरीब बच्चों का एक साल पहले ही बर्बाद कर दिया गया है और 16 जनू से नया सत्र आरंभ हो चुका है, लेकिन अब तक इन गरीब बच्चों को किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं दिलाया गया है। ऐसी घोर लापरवाही और उदासीनता जिसके कारण सैकड़ों गरीब बच्चों का जीवन व भविष्य बर्बाद हो रहा है, लेकिन अब दोषी किसे माना जाए?
गरीब बच्चों के मौलिक अधिकार का हनन करने वालों पर सख्त कार्यवाही होना चाहिए। गरीब बच्चों के पालकों ने कलेक्टर के समक्ष उपस्थित होकर यह स्पष्ट मांग किया है कि उनके बच्चों का जीवन व भविष्य बर्बाद करने वाले जिला शिक्षा अधिकारी पर सख्त कार्यवाही किया जाए और उनके बच्चों के उनके उम्र के अनुरूप उन्हें किसी अन्य स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाए।
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