Chhattisgarh COVID-19

छत्तीसगढ़ के वनांचल में जिंदगी बनकर दौड़ रही बाइक एम्बुलेंस, प्रसव पीड़ा से कराहती गर्भवती को अब खटिया से स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाने की मजबूरी नहीं रही

कवर्धा। जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर अब तेजी से बदल रही है। वनांचल में दर्द से कराहते लोगों की मदद के लिए बाइक एम्बुलेंस एक तरह से जिंदगी बनकर दौड़ रही है और ऐसे में विशेषकर प्रसव पीड़ा से छटपटाती गर्भवती को अब खटिया से स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाने की विवशता तो बिल्कुल भी नहीं है। इससे वनवासियों के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान खिलने लगी है।
पहले की स्थिति में गर्भवती को प्रसव पीड़ा होने पर उसको समय से अस्पताल पहुंचाना असंभव-सा था, ऐसे में परिजन खुद को असहाय पाते थे, क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य केंद्र तक गर्भवती को पहुंचाने का कोई साधन नहीं था। ऐसी स्थिति में या तो खटिया में चार लोगों के साथ मिलकर गर्भवती को स्वास्थ्य केंद्र ले जाना पड़ता था या भगवान भरोसे घर पर ही प्रसव कराना पड़ता था। बिल्कुल ऐसी ही परिस्थिति तब भी होती थी, जब घर पर किसी को कोई स्वास्थ्यगत इमरजेंसी आ जाए।
ऐसे में बेबस होकर घरेलू उपचार और झाड़-फूंक करके ही मरीज को ठीक करने की कोशिश शुरू कर दी जाती थी। यह स्थिति उन वनांचलवासियों की भी थी, जिन तक शासन की संजीवनी-108 या महतारी-102 अथवा कोई भी चार पहिया वाहन नहीं पहुंच पाता था, लेकिन यह तस्वीर अब बदल गई है। वनांचल में बाइक एम्बुलेंस लोगों का बड़ा सहारा बनने लगा है। प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को अब खटिया से स्वास्थ्य केंद्र ले जाने की मजबूरी भी खत्म हो गई है। जंगलों और पहाड़ी इलाकों की डगमग पगडंडियों पर अनूठी बाइक एंबुलेंस वनांचल वासियों के लिए संजीवनी साबित हो रही है। संकटमोचन बनी बाइक एम्बुलेंस छतीसगढ़ के उन चुनिंदा जिलों के विकासखंडों में संचालित हैं, जहां की भौगोलिक बनावट दुर्गम है।
बाइक एम्बुलेंस सेवा के परिणाम स्वरूप एक ओर जहां गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव कराने में सफलता मिल रही है, वहीं दूसरी ओर वनांचल के लोगों को स्वास्थ्य लाभ देकर प्रचलित झाड़-फूंक और अंधविश्वास को दूर करने में मदद भी मिल रही है। यूनीसेफ ने भी इस वाहन से किए जा रहे काम की सराहना की है। राज्य के जंगल और पहाड़ी क्षेत्र में संजीवनी-108 और महतारी-102 एंबुलेंस सेवाएं नहीं पहुंच पाने की वजह से ही शासन द्वारा बाइक एम्बुलेंस सेवा शुरू करने का फैसला लिया गया। इसके लिए डिजाइन तैयार की गई और कुछ बाइक एंबुलेंस को यहां दौड़ाना शुरू किया गया। इसके बाद भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर इसके चलाने वालों को बुनियादी आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण भी दिया गया।
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कवर्धा बाइक एम्बुलेंस सेवा सबसे आगे
इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. शैलेंद्र कुमार मंडल ने बताया, शासन की जनकल्याणकारी योजनाएं बहुत-सी हैं, लेकिन क्षेत्र की जनता को उन योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ कैसे मिल सके, यह निर्भर करता है वहां के नेतृत्व करने वाले अधिकारियों पर। कवर्धा जिले में बाइक एम्बुलेंस समेत अधिकांश स्वास्थ्य योजनाओं को आमजन के लिए सुगम बनाने का श्रेय जिला प्रशासन को जाता है। यहां के कलेक्टर रमेश कुमार शर्मा ने बाइक एम्बुलेंस के लिए भी ऐसा ही प्रयास किया है। उन्होंने बताया, छतीसगढ़ में अब तक कवर्धा जिले में सर्वाधिक लोगों को बाइक एम्बुलेंस सुविधाओं का लाभ मिला है। इसकी लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। कवर्धा जिले बाइक एम्बुलेंस का सबसे ज्यादा लाभी खासकर बैगा आदिवासियों को मिला है।
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जिले में 2,171 लोगों को मिला लाभ
बाइक एम्बुलेंस सेवा सबसे पहले नारायणपुर जिले में जून 2014 में शुरू की गई। यहां 2 क्षेत्रों में सेवारत बाइक एम्बुलेंस द्वारा मई 2019 तक 867 लोगों को सुविधा का लाभ दिया गया है। इसके पश्चात अप्रैल 2017 में दंतेवाड़ा जिले में यह सुविधा आरंभ की गई थी, यहां 147 लोगों ने बाइक एम्बुलेंस सेवा का लाभ लिया है। बलरामपुर के 4 क्षेत्रों में 1 अप्रेल 2018 से यह सेवा आरंभ है और यहां अब तक 870 लोग इस सेवा का लाभ ले चुके हैं। सुकमा में मई 2018 से आरम्भ इस सेवा से 80 लोगों को जीवनदान मिला। इसी तरह 15 जुलाई 2018 को कवर्धा के तीन पीएचसी में बाइक एम्बुलेंस सेवा आरंभ की गई, इसके पश्चात मांग को देखते हुए 2 बाइक एम्बुलेंस सेवा इसमें और जोड़ी गई। इस प्रकार कवर्धा में फिलहाल 5 बाइक एम्बुलेंस सेवा आरम्भ है और राज्य में सर्वाधिक 2,171 लोगों ने अब तक इस सेवा का लाभ लिया है। इसी तरह वर्ष 2019 में अगस्त से दिसंबर तक 200 तथा वर्ष 2020 में जनवरी से अगस्त माह तक 338 लोगों को बाइक एम्बुलेंस सेवा का लाभ दिया गया है।
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बाइक एम्बुलेंस मिशन जीरो होम डिलीवरी के लिए कारगर
आंकड़ों के अनुसार, बाइक एम्बुलेंस सेवाओं में कबीरधाम सबसे अग्रणी है। बाइक एम्बुलेंस सेवाएं मिशन जीरो होम डिलीवरी के लिए काफी कारगर है। इसके कारण वनांचल में संस्थागत प्रसव में वृद्धि हुई है, मातृ व शिशु मृत्यु दर कम करने में भी इसका योगदान है। बैगा आदिवासियों द्वारा भी इस सेवा का सहर्ष लाभ लिया जाने लगा है। इस अहम सेवा की सफलता के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन, क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों व समाजसेवियों की भी मदद ली जा रही है। सभी संबंधितों के संपर्क नंबर जनसामान्य तक पहुंचाए गए हैं।

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