उस्मान कुरैशी ✍…
गुरूजी हीरा सिंह मरकाम अपने नाम को सार्थक कर समग्र समाज में विशाल शून्यता छोड गए जिसकी भरपायी शायद ही कभी मुमकिन हो। सचमुच वे हीरा ही थे कोहीनूर जिसकी चमक उम्र के साथ और तेज होती रही। उनकी खींची लकीर तक पहुंचना भावी पीढी के लिए कभी संभव न हो ।
कोरबा जिले के वनांचल के गांव तिवरता की माटी में 14 जनवरी 1942 को खेतिहर मजदूर किसान के यहां जन्मे और पले बढे गुरूजी ने शिक्षक नेता के रूप में उत्पीडन के खिलाफ संघर्ष का शंखनाद किया था। जुझारू शिक्षक नेता की पहचान बनाई। वनांचल के गांवों में बीस साल शिक्षक की सरकारी सेवा का त्याग कर पहली बाद पाली तानाखार विधानसभा क्षेत्र से 1980 में निर्दलीय चुनाव मैदान में कूदे और कांग्रेस प्रत्याशी को कड़ी टक्कर देते हुए पराजित हुए। इस हार ने भी उन्हे जमीनी शाख दिलाई और शायद इसी का नतीजा रहा कि पांच शाल बाद हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हे अपना प्रत्याषप्रत्यशी बनाया और लोगों के बीच गहरी पैठ बनाकर जीतने में भी कामयाब हुए। 1990 में हुए लोकसभा चुनाव में बाहरी उम्मीद्वार उतारे जाने पर पार्टी से वैचारिक मतभेद हुए और भाजपा छोड़ दी। भाजपा से बगावत कर जांजगीर लोकसभा से निर्दलीय चुनाव भी लडे़ और पराजित हुए। इसके बाद तो वे जैसे गोडवाना आंदोलन के कांतिदूत बन गए। वनांचल में समाज के लोगों तक पहुंचकर सामाजिक कांति का अलख जगाया। उन्होने गोडवाना गणतंत्र पार्टी की नीव रखी इसकी अधिकारिक घोषणा 13 जनवरी 1991 को हुई। गोगपा के ही बेनर तले 1995 में तानाखार विधानसभा से मध्यावधि चुनाव में जीत हासिल कर दूसरी बार विधानसभा पहुंचे। गुरूजी की ही मेहनत ने रंग दिखाया और साल 2003 के विधानसभा चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के तीन विधायक निर्वाचित हुए। उन्होंने गोंड आदिवासी संस्कृति को लेकर अलख जगाया।
मोती रावण से हुई मुलाकात ने बदल दी जीवन की दिशा
गुरूजी कहते थे पहली बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद नागपुर प्रवास में गोंडवाना क्लब में मेरी मुलाकात गोंडवाना सभ्यता और परंपराओं के पुरोधा मोती रावण कंगाली से हुई। वे बैंक में अधिकारी होने के साथ अपना काफी समय गोंडवाना आंदोलन को दे रहे थे। गोंड संस्कृति के बारे में तब हम कुछ नहीं जानते थे। कंगाली जी के साथ में जानने-समझने का अवसर मिला। उन्होने लार्ड मैकाले का 1882 का भाषण पढ़ने को दिया जिसमें यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने का महत्व बताया था। अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाने राजनीतिक जागरूकता की समझ विकसित हुई। समझ आ कि ब्राह्मणवाद का मुकाबला केवल राजनीति से नहीं किया जा सकता है। ढोकल सिंह मरकाम और कंगला माँजी के आंदोलनों से गोंडवाना समाज टूट गया था। गोंडवाना अपनी सांस्कृतिक विरासत खो रहा था। गाँव के लोग भाग्य और भगवान के चक्कर में अपनी जमीनें खो रहे थे कर्ज में डूबते जा रहे थे। विषम समय में गोंडी धर्म-संस्कृति का आंदोलन शुरू किया। वर्ष 1984 कचारगढ़ जतरा की शुरुआत बी.एल. कोराम, सुन्हेरसिंह ताराम, शीतल मरकाम, मोती रावण कंगाली के साथ की।
ग्रंथ और गुरू के अभाव में भटका समाज
गुरूजी कहते थे समाज की पांच मुख्य समस्याएँ भय, भूख, भ्रष्टाचार, भगवान व भाग्य और भटकाव हैं। ग्रंथ और गुरु के अभाव में पूरा गोंडवाना भटक गया। ग्रंथ तो कंगाली जी ने लिख कर दे दिया है। हमें लिंगो गुरु को स्थापित कर उनके कोया पुनेम दर्शन का प्रसार-प्रचार करना होगा। हम गोंडवाना के लोगों का लंबा जीवन चाहते हैं। पुनेम माने सच्चा मार्ग है। सच्चे मार्ग से परेशानियों से निजात पायी जा सकती। एक निडर, समृद्ध, खुशहाल, स्वस्थ गोंडवाना समाज खड़ा किया जा सकता है। बुनियादी स्तर पर गाँवों में गोंडवाना गणतन्त्र गोटुल की स्थापना करना हैं। लोगों को आधुनिक शिक्षा देकर उनको जीवन का उद्देश्य श्रम सेवा बनाना चाहिए। संपत्ति बहुत जरूरी है बिना संपत्ति के मनुष्य की कोई कीमत नहीं होती है। ‘स्वयं जियो और हजारों लाखों को जीवन दो’। बिना पीछे मुड़े युवा पीढ़ी आगे चलती रहे। शोषणविहीन समाज की रचना में सहभागी बनें।
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