बिलासपुर वन विभाग में “भयदोहन का कार्यकाल समाप्त” कर्मचारियों ने मनाया दशहरा
प्रभात मिश्रा की सेवानिवृत्ति पर कर्मचारियों में राहत, लोगों ने सेवानिवृत्ति को माना दशहरा की तरह “बुराई पर अच्छाई की जीत”
सेवानिवृत्ति के बाद खुली परतें- छत्तीसगढ़ वन विभाग के बिलासपुर वृत्त में कार्यरत रहे प्रभात मिश्रा के कार्यकाल का अंत होते ही वन कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच राहत और संतोष का माहौल है। कर्मचारियों का कहना है कि अपने अंतिम छह माह के कार्यकाल में मिश्रा ने विभाग को भय और दबाव का अड्डा बना दिया था।
भयदोहन और नोटिस की राजनीति- बिलासपुर वृत्त स्तरीय वन कर्मचारी संघ द्वारा दिए गए पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रभात मिश्रा ने अपने अंतिम दिनों में वनरक्षक, वनपाल, उपवनक्षेत्रपाल, वनक्षेत्रपाल और उपवनमंडलधिकारी तक को नोटिस, जाँच और प्रतिकूल प्रविष्टियों के माध्यम से भयभीत किया।
कर्मचारियों का आरोप है कि मिश्रा ने इन सबको आर्थिक लेनदेन और वसूली के लिए विवश करने की कोशिश की।
नोटशीट और जांच आदेशों के अवलोकन से साफ झलकता है कि मिश्रा का ध्यान मुख्य रूप से कर्मचारियों से धन वसूली और दबाव बनाने पर था।
IFS अफसर भी नहीं बचे- यह अत्याचार सिर्फ नॉन-गज़ेटेड कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहा। मिश्रा ने अपने IFS बिरादरी के अफसरों पर भी दबाव बनाने का प्रयास किया।
कई DFO मिश्रा के दबाव में रहे और कईयों को CR में प्रतिकूल टिप्पणी और मुख्यालय पोस्टिंग (लुपलाइन) का डर दिखाकर वसूली का माध्यम बनाने की कोशिश की गई। यहाँ तक कि RSS से जुड़े होने और “ऊपर पकड़” का धौंस दिखाकर भी कई अधिकारियों को धमकाया गया।
PCCF और वनबल प्रमुख भी लाचार- वनबल प्रमुख ने स्वयं DFO को यह स्वीकार किया कि “मेरे हाथ में न पोस्टिंग है, न बजट, न ही कोई विभागीय अधिकार। सब कुछ जोरा स्थित सिंह हाउस से संचालित होता है।”
जब विभाग का सर्वोच्च अधिकारी खुद असहाय महसूस करता है तो जूनियर IFS अफसरों की क्या स्थिति रही होगी, यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
कई DFO ने सोचा कि जब तक प्रभात मिश्रा सेवानिवृत्त न हो जाएँ, तब तक कोई खर्च या अकाउंटिंग कार्य न किया जाए ताकि उन्हें दबाव बनाने का मौका न मिले।
कर्मचारियों और समाज की प्रतिक्रिया- प्रभात मिश्रा के रिटायरमेंट को कर्मचारियों ने रावण वध जैसा क्षण बताया।
सिर्फ वनरक्षक, वनपाल या DFO ही नहीं बल्कि क्षेत्र के कई नेता और पत्रकार भी उनके जाने पर खुश नजर आए। कर्मचारियों के अनुसार यह पहली बार हुआ है जब किसी अधिकारी की विदाई को दशहरा की तरह “बुराई पर अच्छाई की जीत” मानकर देखा गया।
CCF के कार्य और दायित्व- मुख्य वन संरक्षक (CCF) का पद वन प्रशासन का एक उच्च पद है और इसके अंतर्गत कई जिम्मेदारियाँ आती हैं:
1. वन प्रबंधन और संरक्षण: वन क्षेत्रों में कानून का पालन, वन्यजीव संरक्षण और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
2. कर्मचारियों की देखरेख: वनरक्षक से लेकर DFO तक कर्मचारियों का मार्गदर्शन और निगरानी करना।
3. प्रशासनिक निर्णय: ट्रांसफर, CR प्रविष्टि, अनुशासनात्मक कार्रवाई आदि में निष्पक्ष निर्णय लेना।
4. वित्तीय अनुशासन: बजट का पारदर्शी उपयोग और मद परिवर्तन के नियमों का पालन।
5. संवेदनशील नेतृत्व: कर्मचारियों को भयमुक्त वातावरण देना और उन्हें प्रेरित करना।
नियम और आचार संहिता-
CCF और अन्य IFS अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे भारतीय वन सेवा आचरण नियम (Indian Forest Service Conduct Rules) और लोक प्रशासन की निष्पक्षता का पालन करें।
किसी भी प्रकार का भेदभाव, भयदोहन, व्यक्तिगत लाभ के लिए दबाव बनाना नियम विरुद्ध और गंभीर कदाचार माना जाता है।
निष्कर्ष :- प्रभात मिश्रा का कार्यकाल, विशेषकर अंतिम छह माह, वन विभाग के लिए एक भय और अव्यवस्था का प्रतीक बन गया।
कर्मचारियों ने राहत की सांस ली है कि अब वे निष्पक्ष वातावरण में काम कर पाएंगे।
यह घटना पूरे वन विभाग के लिए एक सीख है कि अधिकारी का आचरण उसकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उसकी छवि तय करता है।
हर अधिकारी को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी को संविधान, नियम और मानवता के आधार पर निभाए, न कि भय और दबाव की राजनीति से।
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