Chhattisgarh State

आदिवासी महिलाओं को सिखाई जा रही बाँस कला

नारायणपुर,4 दिसंबर 2019/ बांस कलाकृति प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में लोकप्रिय शिल्पों में से एक है। बांस शिल्प की कलाकृतियां शहर, गांव के साथ ही अधिकांश घरों में किसी न किसी रूप में देखने का मिल जाती है, यह सुलभ, सरल एवं लोकप्रिय है। स्थानीय ग्रामीण और यहां की जनजाति बांस शिल्प का उपयोग और महत्व को जानती और पहचानती है, वे बांस का काम प्रमुखता से करते है और बांस से अनेक उपयोगी एवं मनमोहक सामग्रियां तैयार करते है। बांस के प्रति यहां के लोगों की रूचि और उसका बेहतर उपयोग के कारण अविभाजित मध्यप्रदेश के समय लगभग साढ़े पच्चीस साल पहले अप्रैल 1994 में नारायणपुर में बांस शिल्प प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई थी। जिसमें प्रशिक्षण भवन, डिजाईन हॉल, कार्यशाला कक्ष, शिल्प आवास के साथ ही कर्मचारी निवास का निर्माण किया गया। इस प्रशिक्षण केन्द्र में स्थानीय निवासियों को बांस शिल्प के साथ ही बेलमेटल और काष्ठ कला का भी प्रशिक्षण देने की सुविधा है।
कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की पहल पर कौशल उन्नयन के स्वरोजगारोन्मुख कार्यक्रम चलाए जा रहे है। नारायणपुर मुख्यालय में आदिवासी महिलाओं को बाँस कला में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आदिवासी महिलाओं को बांस के निर्मित फर्नीचर, गुलदस्ते आदि बनाने की कला सिखाई जाती है। महिलाओं को बांस के द्वारा बनाई जाने वाली विभिन्न सामग्रियों का प्रशिक्षण देकर लाभान्वित किया गया जा रहा है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आदिवासी महिलाओं की विशेष तौर पर भागीदारी रही। आदिवासी महिलाओं द्वारा बांस निर्मित फर्नीचर, गुलदस्ते एवं घरेलु उपयोगी बांस से निर्मित सामग्री का निर्माण किया जा रहा है। जिन्हें वे स्थानीय बाजार, हॉट-बाजारों में बेच कर अपनी आय बढ़ा रही है। इनके द्वारा बनाई जाने वाली बॉस की सामग्रियों को अशासकीय संस्थाओं द्वारा भी क्रय किया जा रहा है। जिससे उनकी मासिक आय में वृद्धि तो हो रही है, उसके साथ ही उनके जीवन स्तर में सुधार आ रहा है ।
अधिकारियों के मुताबिक मापदण्ड के आधार पर 18 वर्ष से 30 साल उम्र के साक्षर लोगों को उनकी अभिरूचि के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान 15 सौ रूपए प्रतिमाह की छात्रवृति भी मुहैय्या कराई जाती है। प्रशिक्षण लगभग तीन माह तक चलता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें सूप, टोकरी, कंधे पर ढोई जाने वाली बहगी, मछली फंसाने वाला जाल के साथ ही घरेलू सजावट की वस्तुएं फूलदान, हैंडबैग आदि है। जिनका विक्रय इस संस्था और आसपास के बाजारों और मड़ई मेलों प्रदर्शनी के समय विक्रय किया जाता है। बांस से फर्नीचर भी बनाये जाते है, जिसमें सोफा सेट, स्टूल आदि है। केन्द्र प्रबंधक जे.एल.मेरावी ने बताया कि बांस की विभिन्न सामग्रियों के साथ ही गिलास और प्लांट गमलों के प्रशिक्षण की भी योजना है। नमूने के तौर पर अभी गिलास बनाये गये हैं। उन्होंने बताया किअभी हाल ही में पुलिस अधीक्षक नारायणपुर से बांस के स्टॉपर का भी आर्डर मिला है, वह भी बनाये गये हैं। इसके साथ ही बांस के शर्ट-पेन्टों के बटन भी बनाये जा रहे हैं। इसका आर्डर भी मंत्रालय से मिला है। श्री मेरावी ने बताया कि बांस षिल्प केन्द्र के नये कलेवर, गढ़कलेवा एवं विभिन्न कार्यों आदि के लिए 5 करोड़ रूपये का प्रस्ताव बनाकर राज्य योजना आयोग (प्लानिंग कमिशन) को भेजा गया है।
जिले के ओरछा विकासखंड में बांस काफी होता है। क्षेत्र की भौगोलिक और विषम परिस्थितियों और चारों और से घने जंगलों और पहाड़ी से घिरे होने और आवागमन के लिए सुलभ रास्ते नहीं होने के कारण यहां उपलब्ध बांस का अधिकांश उपयोग नहीं हो पा रहा है। बांस शिल्प के लिए कलेक्टर श्री पी.एस. एल्मा द्वारा इसके लिए विशेष प्रयास किए जा रहे है। उन्होंने हॉल ही में कोण्डागांव जिले के फरसगांव वन डिपो से बांस की खेप मंगाई है। जिससे बांस शिल्प केन्द्र में माह जनवरी से स्थानीय लोगों को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे उन्हें रोजगार के अवसर मिलेंगे ।

शशिरत्न पाराशर
सहायक संचालक, जनसंपर्क

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