मध्य प्रदेश की सियासत में भूचाल: मोहन यादव की कुर्सी पर संकट गहराया, सीएम हेल्पलाइन भी हुआ ढप्प
नई दिल्ली-अक्टूबर 2025
रिपोर्टर – मज़हर इक़बाल
मध्य प्रदेश की राजनीति इस वक्त किसी थ्रिलर फिल्म के क्लाइमेक्स से कम नहीं लग रही। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार पर न सिर्फ नैतिक ग्रहण लगा है, बल्कि पर्दे के पीछे से सत्ता हस्तांतरण की एक सुनियोजित चाल चलने की खबरें सामने आ रही हैं। अफवाहों का बाजार गर्म है कि कुर्सी कभी भी डगमगा सकती है, और इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में शिवराज सिंह चौहान का परिवार और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला की खामोश कूटनीति है।
1. कुर्सी का डगमगाना और इस्तीफे की आहट
भाजपा हाईकमान की ओर से मध्य प्रदेश के आंतरिक समीकरणों और मोहन यादव की कार्यशैली पर गंभीर चिंता जताना, एक बड़े राजनीतिक भूकंप का संकेत है। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में असंतोष और अराजकता को गंभीरता से लिया है।
• विपक्ष का प्रहार: कांग्रेस ने कफ सिरप कांड में हुई मासूमों की मौतों को लेकर सरकार को घेर रखा है। यह मामला सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की विफलता नहीं, बल्कि सीधे सरकार की मानवीय संवेदनशीलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
• छवि का क्षरण: इन लगातार विवादों ने मोहन यादव सरकार की छवि को पूरी तरह से असंतुलित कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि सत्ता संयोजन की डोर किसी भी क्षण टूट सकती है, और इस्तीफा महज समय की बात है।
2. तांत्रिक-तंत्र का साया: सत्ता बचाने की अंधी दौड़?
सबसे चौंकाने वाला और सनसनीखेज पहलू तांत्रिक अनुष्ठानों की कथित चर्चा है।
• सोशल मीडिया और स्थानीय गपशप में यह जंगली आग की तरह फैल चुका है कि मोहन यादव अपने सत्ता के “ग्रहण” को टालने के लिए तांत्रिकों का सहारा ले रहे हैं।
• भले ही इस दावे का कोई ठोस प्रमाण न हो, लेकिन यह अफवाह ही बताती है कि मौजूदा राजनीतिक वातावरण कितना तनावपूर्ण और अतार्किक हो चुका है। यह अफवाहें दर्शाती हैं कि कुर्सी बचाने की जद्दोजहद अब तर्क की सीमा को पार कर चुकी है।
3. शिवराज परिवार का ‘पर्दे के पीछे’ का खेल: ‘मामा’ की वापसी की स्क्रिप्ट?
राजनीतिक हलकों में सबसे तीखी चर्चा शिवराज सिंह चौहान की पत्नी की कथित ‘रहस्यमयी भूमिका’ को लेकर है।
• महिला चाल की अटकलें: विपक्षी सर्किट का दावा है कि सत्ता हस्तांतरण को सुगम बनाने में एक ‘महिला चाल’ काम कर रही है। यह महज साधारण राजनीतिक वार्तालाप नहीं, बल्कि घर के अंदर की चर्चाओं, रिश्तेदारी के प्रभाव और सुनियोजित दबाव के माध्यम से होने वाली कूटनीति है।
• नियंत्रित प्रतिकार: यदि शिवराज की वापसी की यह रणनीति सफल होती है, तो यह केवल एक ‘नियमित’ विरोधी बदलाव नहीं होगा। यह एक नियंत्रित, सुनियोजित और गैर-पारंपरिक सियासी प्रतिकार होगा, जिसे पर्दे के पीछे से नियंत्रित किया गया है।
4. राजेंद्र शुक्ला: खामोश चाल का महारथी या डैमेज कंट्रोलर?
उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी राजेंद्र शुक्ला इस पूरे नाटक में एक निर्णायक मोहरा बनकर उभरे हैं।
• विपक्ष की मांग: कफ सिरप कांड के बाद विपक्ष ने सीधे उनकी इस्तीफे की मांग की है। लेकिन शुक्ला का यह बयान कि “यह वक्त इस्तीफा देने का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी निभाने का है,” उनकी खामोश रणनीति की ओर इशारा करता है।
• सत्ता परिवर्तन की डोर: आलोचक सवाल उठा रहे हैं: क्या शुक्ला डैमेज कंट्रोल कर रहे हैं या पर्दे के पीछे मोहन यादव को हटाने की योजना में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं? यदि उनके हाथ में समीकरणों को बदलने की शक्ति है, तो उनकी मौन चाल मध्य प्रदेश की राजनीति को किसी भी क्षण एक नई दिशा दे सकती है।
5. विवादों का बवंडर: सरकार पर चौतरफा हमला
मोहन यादव सरकार एक साथ कई मोर्चों पर घिर चुकी है, जिससे सरकार की नींव हिल गई है:
• कफ सिरप कांड: मासूमों की मौत ने सरकार को “मानवता विरोधी” करार दिया है।
• भावांतर योजना विवाद: किसानों का विरोध बता रहा है कि सरकार की कृषि नीतियां सीधे MSP की मांग को संतुष्ट नहीं कर पा रही हैं।
• मुआवजे में गड़बड़ी: खंडवा ट्रैक्टर-ट्रॉली हादसे में मुआवजे को लेकर सामने आई अनियमितताओं की खबरों ने प्रशासन पर अविश्वास पैदा किया है।
• महिला सुरक्षा: इंदौर और अन्य स्थानों पर महिला अपराधों को लेकर महिला कांग्रेस का प्रदर्शन मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा है, जो बताता है कि कानून व्यवस्था भी एक बड़ा मुद्दा है।
मध्य प्रदेश की राजनीति इस समय अनिश्चितता और रहस्य के दोराहे पर खड़ी है। यह देखना बाकी है कि मोहन यादव अपनी कुर्सी बचा पाते हैं, या फिर पर्दे के पीछे की ये ‘साइलेंट गेम्स’ उन्हें सत्ता से बेदखल कर देते हैं।
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