प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफल विदेश नीति के चलते एक बार फिर भारत ने सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए अपनी कूटनीतिक पहल को तेज कर दिया है। भारत ने इस मामले में अपने स्टैंड को साफ कर दिया है कि सुरक्षा परिषद में भारत का नहीं होना संयुक्त राष्ट्र की साख पर सवाल खड़े करता है। यह भारत का अपमान नहीं है।
नई कूटनीति में भी दावे पुराने –
इस कूटनीतिक पहल में उन दावों का जिक्र किया गया है, जो भारत अरसे से करता आया है। लेकिन इस बार विश्व परिदृष्य में भारत की स्थिति बहुत भिन्न है। यह 20वीं सदी वाला लाचार, कमजोर और आश्रित भारत नहीं है। अरसे बाद भारत में एक स्थायी और स्थिर सरकार का वजूद है। नरेंद्र मोदी सरकार ने दुनिया भर में भारत की छवि एक मजबूत राष्ट्र के रूप में पेश की है। बतौर प्रधानमंत्री यह उनकी दूसरी पारी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार छवि के कारण ही दुनियाभर में भारत की साख दक्षिण एशियाई मुल्कों में एक मजबूत राष्ट्र के रूप में पेश हुई है। इन छह वर्षों में भारत ने अपने आंतरिक एंव वाहृय मामलों को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के समक्ष बहुत मजबूती से रखा है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने हर मौके पर भारतीय दृष्टिकोण को सराहा। यह भारत की कूटनीतिक जीत थी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वाशिंगटन में अमेरिकी थिंक टैंक पर विचार रखने के बाद अमेरिका की धरती पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि यदि आपके पास ऐसा संयुक्त राष्ट्र है, जिसमें दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था वाला देश निर्णय लेने वालों में शामिल नहीं है तो इससे संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
भारत की बढ़ी कूटनीतिक साख
गत वर्षों में भारत ने कुछ ऐसे फैसले लिए, जिससे देश दुनिया में भारत की साख में बढ़ोतरी हुई है। प्रधानमंत्री माेदी के दूसरे कार्यकाल में देश करीब-करीब हर मोर्चे पर सफल रहा है। यह कार्यकाल कूटनीतिक लिहाज से भी बेहद अहम रहा है। पुलवामा आतंकी हमला हो या भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर आतंकी शिविरों पर प्रहार हो, या भारतीय अनुच्छेद 370 का मामला।
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