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दुनिया में सबसे आगे भारत इंटरनेट पर रोक लगाने के मामले में

नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) राज्यसभा से पारित हुआ. इस दौरान असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर भारत में बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शनों को देखते हुए राज्य सरकारों ने इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगा दी. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 12 दिसंबर को किया गया ट्वीट है. इसके साथ बस एक समस्या है. वो ये कि जिस दिन प्रधानमंत्री ने असम के लोगों के लिए इंटरनेट के माध्यम से यह संदेश दिया, उस दिन वहां पर इंटरनेट ही नहीं था.
त्रिपुरा सरकार के अतिरिक्त सचिव ने तो 10 दिसंबर को दोपहर 2 बजे से ही 48 घंटों के लिए एसएमएस सेवाओं पर रोक लगा दी थी. यह क़दम लोकसभा में बिल के पारित होने के तुरंत बाद उठाया गया था. पूर्वोत्तर के राज्यों में ही नहीं, उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में भी सीएबी के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों की ख़बर आने के बाद 13 दिसंबर शाम पांच बजे के बाद इंटरनेट रोक दिया गया. इन्हें मिलाकर, 2019 के आख़िर तक पूरे भारत से 91 मौक़ों पर इंटरनेट बंद किए जाने के केस सामने आए हैं.
इंटरनेट शटडाउन्स वेबसाइट के अनुसार, 2015 में इंटरनेट बंद किए जाने के मात्र 14 ही मामले थे जबकि 2016 में ये बढ़कर 31 हो गए. 2017 में 79 और 2018 में 134 बार इंटरनेट बंद किया गया. इन 134 में से 65 बार तो जम्मू-कश्मीर में ही इंटरनेट बंद किया गया. 2019 के 91 मामलों में भी 55 मामले जम्मू-कश्मीर के ही हैं.
अकेले 2018 में ही भारत में इंटरनेट बंद करने के 134 मामले रिपोर्ट किए गए थे जो पूरी दुनिया में सबसे अधिक थे. स्टेट ऑफ़ इंटरनेट शटडाउन्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत इस सूची में सबसे ऊपर था और दूसरे नंबर पर पाकिस्तान था, जहां इंटरनेट बंद किए जाने के मात्र 12 मामले थे. भारत और पाकिस्तान के बाद जिन देशों में इंटरनेट बंद किए जाने के सबसे अधिक मामले सामने आए, उनमें इराक़ (7), यमन (7), इथियोपिया (6), बांग्लादेश (5) और रूस (2) हैं. भारत में सीएबी के विरोध में प्रदर्शन शुरू होने से पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से अयोध्या मामले में फ़ैसला सुनाए जाने के दौरान कई हिस्सों में इंटरनेट बंद किया गया था.
सबसे लंबी पाबंदी – इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर के अनुसार, सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन भारत के जम्मू और कश्मीर में दर्ज किया गया था. यह आठ जुलाई 2016 से 19 नवंबर 2016 तक जारी रहा था. आठ जुलाई, 2016 को बुरहान वानी की सुरक्षा बलों के हाथों मौत के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों के कारण यह रोक लगाई गई थी. पोस्टपेड इस्तेमाल करने वालों का इंटरनेट तो 19 नवंबर को शुरू हो गया था मगर प्रीपेड नंबरों पर इंटरनेट जनवरी 2017 में शुरू हुआ था. इस तरह लगभग छह महीनों के लिए वहां इंटरनेट बंद था. इसी तरह से इस साल भी चार अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट रोका गया. यह क़दम उस समय उठाया गया जब भारत ने विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फ़ैसला उठाया था. तबसे 100 दिन से अधिक का समय हो गया है जब भारत प्रशासित कश्मीर के कुछ इलाक़ों में इंटरनेट अभी तक बहाल नहीं हुआ है. जम्मू और कश्मीर से इतर, पश्चिम बंगाल ने भी लंबे समय तक इंटरनेट बंदी का दौर देखा है. 18 जून, 2017 से 25 सितंबर 2017 तक दार्जिलिंग में इंटरनेट सेवाएं रोक दी गई थीं. यह क़दम अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर हो रहे प्रदर्शनों के दौरान उठाया गया था. दार्जिलिंग लगभग 100 दिनों तक बिना इंटरनेट रहा था. 2012 से लेकर अब तक इंटरनेट बंद किए जाने के कुल 363 केस हैं. जम्मू और कश्मीर में ही 180 बार इंटरनेट रोका गया है. इसके बाद नंबर आता है राजस्थान का जहां 67 बार इंटरनेट रोका गया. फिर उत्तर प्रदेश में 2012 से लेकर अब तक 18 बार इंटरनेट रोका गया.
क़ानून क्या कहता है – भारत में इंटरनेट सेवाएं रोकने के लिए अभी दो क़ानूनी प्रावधान और एक नियमावली है. ये हैं- कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रसीज़र 1973 (सीआरपीसी), इंडियन टेलिग्राफ़ एक्ट 1885 और टेंपररी सस्पेंशन ऑफ़ टेलिकॉम सर्विसेज़ (पब्लिक इमर्जेंसी या पब्लिक सेफ़्टी) रूल्स 2017. इनके आधार पर ही सरकारी एजेंसियां भारत के जिलों या राज्यों में इंटरनेट बंद करने का फ़ैसला करती हैं. सीआरपीसी में ही ‘शांति बनाए रखने के लिए उठाने जाने वाले अस्थायी क़दमों’ में धारा 144 काफ़ी अहम है.
इससे सरकारों को ‘ख़तरे और उपद्रव जैसी स्थिति से निपटने के उद्देश्य से त्वरित निदान के लिए आदेश जारी करने की शक्ति मिलती है.’

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